डॉ रवि शरण दीक्षित, एसोसिएट प्रोफेसर
इतिहास में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपनी जन्मभूमि के लिए विदेश में रहते हुए भी बेहतरीन योगदान दिया है, और जिनको मातृ भूमि से जोड़ने के लिए भारत सरकार द्वारा 2003 मे इस तरह की एक पहल शुरू की गई थी l जिसकी परिणीति अब राज्य स्तर पर भी रूप ले रही हैं |
उत्तराखंड ने अपना पहला कदम उठा दिया है, जिसमें 12 जनवरी से होने वाले सम्मेलन में 17 से अधिक देश के प्रतिनिधि प्रवासी भाग ले रहे हैंl इतिहास में कई ऐसे नाम है जिन्होंने मातृभूमि के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है l महात्मा गांधी जिनका योगदान पूरा विश्व जानता है, इसी कड़ी में बाबा रामचंद्र भी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्होंने 12 वर्ष फिजी में रहने के बाद भारत लौटने पर 1919 मे किसानों के लिए संघर्ष किया और अवध किसान सभा के गठन में सहयोगी रहे और 14 बिंदुओं का सरकार के सामने अपना मांग पत्र भी प्रस्तुत किया था l1920 में आश्चर्यजनक है, कि 40000 से ज्यादा लोगों ने इकट्ठा होकर उनकी रिहाई की मांग की थी और उन्होंने अपने आंदोलन की कृषक हितों को 300 से ज्यादा शाखाएं खड़ी कर दी थी |
वर्तमान परिवेश में इस तरह के कई ऐसे महत्वपूर्ण हमारे प्रवासी भारतीय हैं जो भारत की प्रगति में भारत के हितों की रक्षा करने के लिए तत्पर भी है, और उनका सहयोग लेकर सरकार भारतीय संस्कृति को विश्व में और मजबूती से पहुंचा सकती है साथ ही साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी 2024 की एक रिपोर्ट में भारत विश्व मे पहला देश बन गया है जहां प्रवासियों द्वारा एक साल में 100 अरब डॉलर से अधिक की रकम भेजी गई है|
वर्तमान परिवेश में इस तरह की गतिविधियां किसी भी प्रदेश देश के लिए बहुत ही प्रभावित होती हैं, जिसके माध्यम से अपनी संस्कृति सभ्यता और विरासत को रीति-रिवाज को पूरे विश्व के सामने रखने का अवसर मिलता है, साथ ही साथ स्थानीय युवाओं को भी प्रेरित करने में प्रभावी भूमिका रहती है कि वह एक किस तरह आगे बढ़कर एक समय बाद अपने देश और प्रदेश के लिए योगदान करने में एक महत्वपूर्ण सहायक हो सकते हैं |
विदेश में रहने वाली प्रवासी उत्तराखंडी हर क्षेत्र में नाम कमा रहे हैं, उनके पास ज्ञान, विज्ञान,तकनीकी,उद्यमशीलता का विपुल अनुभव है, जिस अनुभव का उत्तराखंड के युवा उठा पाएंगे, और अपने लिए नए अवसर का निर्माण करेंगे, उत्तराखंड सरकार का यह प्रयास है कि प्रवासी अपने इन अनुभवों से प्रदेश और गांव का भी विकास करें, जिसकी परिणीति कुछ प्रवासी भारतीयों ने उत्तराखंड के गांव को गोद लेकर कर दी है |
उत्तराखंड सरकार का यह पहला कदम एक मील का पत्थर साबित होगा l