व्यंग्य, राजेंद्र शर्मा
मोदी जी की पार्टी गलत नहीं कहती है। ये जॉर्ज सोरोस तो इंडिया के पीछे ही पड़ गया है। मोदी जी की पार्टी ने दिखाया और सबने देखा कि कैसे बंदे ने संसद के सर्दी के सत्र में ताप इतना बढ़ा दिया कि संसद जो ठप्प हुई, सो हुई, बेचारी सरकार के पसीने छूट गए। और चौरासी साल के बूढ़े रिटायर धन्नासेठ ने वहीं सात समंदर पार बैठे-बैठे यह सब किया कैसे?
सिंपल है! अगले ने साजिश कर के अमरीका की एक अदालत से हमारे राष्ट्र सेठ के खिलाफ घूसखोरी से लेकर धोखाधड़ी तक के अभियोगों में गिरफ्तारी का वारंट निकलवा दिया। और यह सब किया, संसद का सत्र शुरू होने से ठीक पहले। फिर क्या था, भारत में विपक्ष बने बैठे सोरेस के चेलों ने राष्ट्र सेठ के अमरीकी मुकद्दमे की चर्चा की मांग को लेकर संसद ही ठप्प कर दी। वह तो मोदी जी की सरकार थी, न डरी, न झुकी। साफ कह दिया कि संसद चले तो और रुकी रहे तो, राष्ट्र सेठ के मामले पर संसद में कोई चर्चा नहीं होगी। इतना भी काफी नहीं हुआ, तो दोनों सदनों के सभापतियों ने संपादन मशीन को स्थायी आदेश दे दिया — जब भी राष्ट्र सेठ का नाम आवेगा, रिकॉर्ड पर कुच्छौ नहीं जावेगा। राम-राम कर के सर्दी वाला सत्र पार हुआ। लेकिन, तब तक पट्ठे सोरोस ने बजट सत्र में हंगामे का पूरा इंतजाम कर भी दिया है।
नहीं, नहीं, हम निर्मला ताई के बजट की वजह से हंगामे की बात नहीं कर रहे हैं। हम किसी महंगाई, बेरोजगारी, पब्लिक की बदहाली की वजह से हंगामे की बात नहीं कह रहे हैं। हम किसानों की एमएसपी वगैरह की मांगों, मजदूरों की सही मजदूरी समेत अधिकारों की मांगों, आम पब्लिक की करों का बोझ घटाए जाने, पेट्रोल-डीजल के दाम नीचे लाए जाने की मांगों, वगैरह पर हंगामे की बात नहीं कर रहे हैं। हम रुपए के डालर के मुकाबले घिसकर और छोटा हो जाने और पिचासी रुपये से ज्यादा में एक डॉलर आने की आफत पर किसी हंगामे की बात भी नहीं कर रहे हैं। इन सब पर मोदी जी के भारत में अब कहां कोई हंगामा होता है। वैसे भी ये सब तो हमारे घरेलू मामले हैं। हम तो विदेशी हाथ की हमारी संसद में हंगामे की तैयारियों की बात कर रहे हैं। संसद के पिछले सत्र से ठीक पहले राष्ट्र सेठ पर अमरीका में मुकद्दमे का मामला था, तो शीत सत्र से फौरन बाद यानी बजट सत्र से पहले, पेगासस की जासूसी का मामला लाकर खड़ा कर दिया गया है।
हुआ यह है कि एक अमरीकी अदालत ने, जाहिर है कि जॉर्ज सोरोस के ही इशारे पर, पेगासस बनाने वाली इस्राइली कंपनी एनएसओ को लोगों की अवैध जासूसी कराने का दोषी करार दे दिया है। बेचारी इस्राइली कंपनी इसकी दलीलें ही देती रह गयी कि उसने किसी की जासूसी नहीं करायी है, उसने तो सिर्फ अपने ग्राहकों को जासूसी उपकरण बेचा था। उस जासूसी उपकरण का उपयोग वैध था या अवैध था, किस पर किया गया, इस सब से उनका क्या लेना? कुछ भी गलत हुआ है, तो इसकी जिम्मेदारी ये जासूसी उपकरण खरीदने वाले ग्राहकों की है, वगैरह। पर अदालत नहीं मानी। अदालत ने उसे बंदूक बनाने, बेचने का ही नहीं, चलाने का भी जिम्मेदार ठहराया है। अमरीकी अदालत के हिसाब से तो पेगासस खरीदने वाली सरकारों या सरकारी एजेंसियों ने तो सिर्फ जासूसी का निशाना बनाए जाने वालों के सैलफोन के नंबर दिए थे! सारा कसूर जासूसी की सुपारी लेने वालों का, सुपारी देने वालों का फिलहाल जिक्र ही नहीं।
खैर, अब होगा ये कि पेगासस का मामला तो चलेगा वहां अमरीकी अदालत में और हंगामा होगा यहां मोदी जी के विकसित होते भारत में। मोदी जी ने कितनी मुश्किल से पेगासस के हंगामे को दबाया था। सरकार तो सरकार और संसद तो संसद, सुप्रीम कोर्ट तक को इस काम पर लगाया था। असत्य, अर्द्ध-सत्य, ध्यान बंटाने के पैंतरे, सब कुछ आजमाया था, तब कहीं जाकर यह शोर थमने में आया था। और यह मुश्किल क्यों न होता। दुनिया भर में जिन करीब 1400 लोगों के फोन में जासूसी साफ्टवेयर रोपे जाने का पता चला था, उनमें से 300 फोन नंबर अकेले भारत के ही थे। उनमें भी शीर्ष विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर, दो केंद्रीय मंत्रियों तक के नंबर शामिल थे। यह सब अब दोबारा उठेगा और इसके साथ ही इसका शोर भी कि सरकार ने कैसी तिकड़मों से 2021 में इस मामले को दबाया था। पेगासस खरीदने या सरकारी एजेंसियों से खरीदवाने की बात से साफ-साफ मना भी नहीं किया था और हर बात का खंडन भी किया था। यानी फिर हंगामा। यानी फिर संसद ठप्प। और यह तो तब होगा, अगर जार्ज सोरोस ने खालिस्तान-समर्थक पुन्नू, निज्जर वगैरह के मामले में मुकद्दमों को और आगे नहीं बढ़वा दिया। वर्ना नये साल में अपनी संसद का न जाने क्या हो?
और हां! संसद का शीतकालीन सत्र आखिर में डा. अम्बेडकर के मान-अपमान के जिस मुद्दे पर पर हंगामे की भेंट चढ़ा, वह बेशक घरेलू था। आखिरकार, मान-अपमान जो भी किया, इक्कीसवीं सदी के चाणक्य ने किया था और वह तो शुद्ध देशी मामला हुआ। पर विपक्ष ने इस मामले को लेकर जो हंगामा किया, उसमें सोरोस के या किसी और के विदेशी हाथ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हां! सरकार की जांच में ही हाथ की राष्ट्रीयता शुद्ध भारतीय सिद्ध हो जाए, तो हम भी मान लेंगे। वैसे सरकारी पक्ष के सांसद षडंगी और राजपूत के घायल मानकर के आईसीयू पहुंचा दिए जाने और संसद का सत्र समय से पहले खत्म हो जाने का सीधा कनेक्शन है और वैसा ही सीधा यानी सीसीटीवी फुटेज मुक्त कनेक्शन राहुल गांधी के धक्के और इन सांसदों के घायल होने का है। और राहुल गांधी के धक्के और जार्ज सारोस का वैसा सीधा कनेक्शन न सही, पर कुछ न कुछ कनेक्शन तो जरूर है। आखिरकार, राहुल गांधी को अपने डौले दिखाने और उसके लिए संसद में टीशर्ट पहनकर जाने के लिए, प्रोत्साहन कहां से मिल रहा है? टीशर्ट तो स्वदेशी परिधान नहीं है। टीशर्ट के पीछे क्या विदेशी हाथ ही नहीं है? फिर राहुल गांधी की तो भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका भी अदालत में विचाराधीन है। यानी देशी-विदेशी हाथ, मोदी जी और उनके राष्ट्र सेठ को रोकने के लिए आए साथ।
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*2. जरा धक्के से बच के/ धक्के से बचिओ!*
लीजिए, अब मोदी जी के विरोधियों को इसका भी सबूत चाहिए। कह रहे हैं कि इसका कोई सबूत ही नहीं है कि रुपया गिरकर, एक डालर के पचासी रुपये से ज्यादा के रेट पर खुद ब खुद नहीं पहुंच गया है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने जब से हर मौसम में टी-शर्ट का योग साधा है, कुछ ज्यादा ही अपने डौले दिखाने लगे हैं। बेचारे अडानी जी के खिलाफ तो अपनी यात्राओं के पहले दिन से ही पड़े हुए थे। मोदी जी अपने यार सुदामा को कुछ भी दें, इन महाशय के पेट में दर्द उठने लगे। तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे। हवाई अड्डे दें, तो भी दर्द, बंदरगाह दें तो भी दर्द, सीमेंट कारखाने दें, तो भी दर्द, अनाज गोदाम दें तो भी दर्द, फल-वल की खरीद का ठेका दें, तब भी दर्द। अडानी से जरा सा ध्यान हटा, तो लगे सत्तापक्ष के सांसदों को धक्का मारने। दो गरीब सांसदों को तो धक्का मारकर, सीधे आइसीयू में पहुंचा दिया। और उस पर भी चैन नहीं पड़ा तो, खामखां में बेचारे रुपए को ही धक्का मार कर, पचासी रुपए से नीचे लुढक़ा दिया। आइसीयू में तो बेचारा पहले ही था, अब पता नहीं क्या होगा?
पर विरोधियों को तो इसका भी सबूत चाहिए। षडंगी और राजपूत को सीधे आइसीयू पहुंचाने वाले धक्के के लिए सीसीटीवी फुटेज का सबूत पहले ही मांग रहे थे। अब इन्हें रुपए को धक्का मारकर गिराने का भी सबूत चाहिए। पर सबूत-सबूत की रट लगाने वाले यह भी बताएं कि उन्हें कैसा सबूत चाहिए। सांसद धक्का कांड के लिए भी सीसीटीवी फुटेज की मांग कितनी सही है कितनी नहीं, हम नहीं कह सकते। मामला कानूनी है। राहुल गांधी के खिलाफ एफआइआर हो चुकी है। पर इतना पक्का है कि रुपए को धक्का मारकर गिराने में वैसा सीसीटीवी वाला सबूत नहीं मिल सकता है। हर चीज इस तरह नहीं होती है कि कैमरे उसे दर्ज कर ही लें। और सीसीटीवी के सबूत को छोडक़र, रुपए को धक्का देकर लुढक़ाए जाने के दूसरे सभी साक्ष्य मौजूद हैं। विपक्ष वाले संसद में जब हो-हल्ला कर रहे थे, राहुल गांधी उसमें आगे-आगे थे कि नहीं। जार्ज सोरोस के इशारे पर, विपक्ष वाले अडानी घोटाले से लेकर, मणिपुर तक को लेकर शोर मचा रहे थे कि नहीं। और जब मोदी जी, अडानी जी को धक्के से नहीं गिरा पाए तो अमित शाह से माफी मंगवाने का शोर। पीछे से धक्का आया। राहुल गांधी आगे को गिरे। राहुल गांधी का धक्का रुपए को लगा। पर उसके आगे कोई नहीं था, जो उसके धक्के को झेल लेता; बस इधर षडंगी और राजपूत आइसीयू में पहुंच गए और उधर रुपया लुढक़ कर डालर में पचासी से नीचे।
अब सिर्फ राहुल गांधी को बचाने के लिए, प्लीज यह सवा चतुराई की दलील मत देने लगिएगा कि रुपया गिरा तो है ही नहीं, वह तो ऊपर चढ़ा है। राहुल गांधी के धक्के से पहले डालर में चौरासी रुपए और कुछ पैसे आते थे, अब पिचासी रुपए और कुछ पैसे आ रहे हैं। यह अगर गिरावट है, तो ऊपर चढऩा क्या है? ऐसे तो दो-दो सांसदों के आइसीयू में पहुंचने में भी सरकार का फायदा है–अमित शाह के इस्तीफे का शोर अब संसद में नहीं सुनाई देगा। पर यह सब गलत है। हां! इतना जरूर है कि रुपया भले न गिरा हो, पर डालर ऊपर जरूर चढ़ गया है। पर जार्ज सोरोस के जरिए, राहुल गांधी के धक्के का ही तो कमाल है।
********** *3. शाह तुम डटे रहो!*
इसी को कहते हैं, होम करने गए थे, हाथ जलाकर आ गए। बेचारे अमित शाह की क्या गलती थी। वह तो नादां अम्बेडकर प्रेमियों को स्वर्ग जाने का सच्चा रास्ता बता रहे थे। एकदम मुफ्त स्वर्ग यात्रा एडवाइज और वह भी बिना मांगे। शुद्ध परोपकार की भावना और उसकी भी इच्छा इतनी उत्कट कि बंदा आ बैल मुझे मार तक के लिए तैयार। पात्र-कुपात्र भी नहीं देखे, लगे समझाने कि अम्बेडकर का नाम जपने में कुछ नहीं धरा है, बस इतना ही भगवान का नाम जप लेगा तो स्वर्ग पा लेगा। और हां! मोदी जी का नाम जप लेगा तो यह भूलोक पा लेगा। पर बदले में शाह जी को क्या मिला? मुर्दाबाद का शोर और माफी से लेकर इस्तीफे तक की मांग! दूसरों को स्वर्ग का रास्ता दिखाया और अपना इहलोक तक खतरे में डलवा लिया। योगी जी मन ही मन में जरूर हंस रहे होंगे।
पर हमारी समझ में ये नहीं आ रहा कि शाह जी डिफेंसिव पर क्यों पड़ रहे हैं? छाती ठोक कर कहते क्यों नहीं हैं कि उन्होंने गलत क्या कहा था? क्या अम्बेडकर का नाम लेने से स्वर्ग मिल सकता है? सात जन्म के लिए छोड़ो, एक जन्म के लिए बल्कि एक जन्म भी नहीं एक दिन के लिए, एक पल के लिए भी स्वर्ग मिल सकता है? हर्गिज नहीं। कागज में आरक्षण लिखा है, तब भी मामूली लोगों की इस दुनिया में एक मामूली नौकरी तो आसानी से मिलती नहीं है। फिर स्वर्ग कैसे मिल जाएगा? वहां कम से कम यहां वाला आरक्षण तो नहीं ही चलेगा। वहां तो दूसरा ही आरक्षण चलेगा। आखिर, भगवान जी कोई चुनाव नहीं लडऩा होता है, जो सबको प्रतिनिधित्व का वादा करते फिरेंगे। उनकी गद्दी पक्की है, कोई नाराज होता हो तो हो। और अल्ला वाले अपने अलग स्वर्ग में होंगे, हमारे स्वर्ग में न वो टांग अड़ाने आएंगे और न उनसे बचाने के लिए अंबेडकर वाले सिर पर चढ़ाए जाएंगे। तो सच कहने में क्या डर-स्वर्ग तो भगवान का नाम रटने से ही मिलेगा।
रही बात शाह जी के इहलोक की तो, मोदी जी की दोस्ती बनी रहे, उन पर कोई खरोंच भी नहीं आ सकती है। माफी और इस्तीफे के तो शब्द भी मोदी जी की डिक्शनरी में नहीं हैं। उल्टे सांसदों के साथ हिंसा के इतने मुकद्दमे लाद दिए जाएंगे, कि माफी की मांग करने वाले खुद माफी मांगते नजर आएंगेे!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक है।)