हार कर भी उठकर खड़े होना कोई हरीश रावत से सीखे!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
पता नही हरीश रावत में ऐसा कौन सा आकर्षण है,जो उनका आभामंडल मुझे अपनी तरफ खींचता है।कई लोग मुझसे पूछते है,तुम्हे हरीश रावत ने दिया ही क्या है?वे चाहते तो तुम्हे किसी बड़े ओहदे से नवाज़ सकते थे,लेकिन उन्होंने तुम्हें कुछ नही दिया फिर भी तुम उनके अंधभक्त क्यों बने हुए हो?लेकिन मैं यह बात साफ कर देना चाहता हूं कि मैं उनका अंधभक्त नही ,उनके सद्गुणों का प्रशंसक हूं और रहूंगा।मुझे लगता है नारायण दत्त तिवारी के बाद उत्तराखंड में हरीश रावत से बड़ा व सक्रिय नेता कोई दूसरा नही है।मेरी हरीश रावत से पहली मुलाकात उनके उत्तराखंड में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर पहली बार नारसन पहुंचने पर हुई थी।नए बने पीसीसी चीफ के स्वागत में हम गिनती के सात-आठ लोग थे,जिनमे पूर्व प्रमुख मेघराज सिंह,ज्ञान सिंह सकौती आदि थे,दरअसल नारसन क्षेत्र में कभी भी कांग्रेस का दबदबा नही रहा।इंदिरा गांधी के समय भी नारसन के अधिकांश लोग चौधरी चरण सिंह के समर्थक थे और आज भी उनके परिवार के प्रति वफादार है,अलबत्ता कुछ लोग काजी मोहिउद्दीन समर्थक भी रहे है।मुझे सतपाल महाराज ने नारायण दत्त तिवारी सरकार में बीस सूत्रीय कार्यक्रम का राज्य सदस्य बनाया तो मैंने सरकार के लिए कड़ी मेहनत की और दो डॉक्यूमेंट्री पुस्तकें सरकार के कामकाज व उपलब्धियों पर तैयार करने के साथ ही वन गुर्जरों के पुनर्वास पर काम किया ,जिसकी बाबत 119 पेज की रिपोर्ट को स्वयं मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने सराहा था।उन्होंने मुझे शासन स्तर पर सम्मानित भी किया।लेकिन फिर भी मैं तिवारी जी का अंधभक्त नही बन पाया।उनके व्यक्तिगत जीवन की कई खामियां मुझे नही भाती थी,जबकि हरीश रावत जननेता के रूप में मुझे बहुत प्रभावित करते थे।सन 2009 में जब हरीश रावत ने हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ा तो मैंने उनके लिए जमकर काम किया।चुनाव प्रचार के लिए मैंने प्रत्याशी से कभी घोड़ा-गाड़ी नही ली,न ही उनसे गाड़ी में कभी तेल डलवाया और न ही कभी प्रत्याशी की ओर से भोजन ग्रहण करने की चेष्टा की।सामुहिक प्रयास से हरीश रावत हरिद्वार से जीते तो उम्मीदों के द्वार खुल गए।हरीश रावत केंद्र में पहले राज्य मंत्री और फिर केबिनेट मंत्री हो गए थे,उन्होंने अपना प्रवक्ता मुझे घोषित कर मुझे सम्मान भी दिया।मैंने भी अपनी क्षमता से उनके लिए मीडिया की सेवाएं दी और उनके मुख्यमंत्री बनने पर भी यह सिलसिला अनवरत चला।यह सच है मुझे कोई सरकारी सुविधा उनके दौर में नही मिल पाई लेकिन मेरे माध्यम से हरिद्वार जिले के पीड़ितों का दर्द हर लेने व उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का जो काम हरीश रावत ने किया,वह कोई दूसरा नेता आज तक नही कर पाया है।कोरोना के समय मेरी पत्नी के सगे भतीजे मोहन को जौलीग्रांट अस्पताल में भर्ती कराकर हरीश रावत व उनकी बेटी अनुपमा रावत ने जो जीवनदान मोहन को दिया है,उसके लिए कृतज्ञता के शब्द भी कम पड़ जाते है।सबसे बड़ी बात भरोसे की है,हरीश रावत जो भरोसा मुझ पर करते है,उस पर खरा उतरने की मेरी कोशिश मुझे उनके निकट ले आती है।कुछ लोग यह सवाल उठाते है कि हरीश रावत ओलाद के मोह में आ गए है,लेकिन ऐसा नही है,उन्होंने मुझे ही नही मुझ जैसे अनेकों को अपनी ओलाद से पहले आगे बढाने का काम किया है।उनकी जो ओलाद राजनीति में सक्रिय है,वह उनकी अपनी मेहनत का फल है।आनंद रावत से लेकर अनुपमा व वीरेंद्र तीनो लंबे समय से बतौर कांग्रेस कार्यकर्ता सेवा करते रहे है,यहां तक कि उनकी पत्नी रेणुका रावत की खुद की राजनीतिक पकड़ उनके मायके के समय से है।मेरे लिए हरीश रावत कभी अनुपलब्ध नही रहे,केंद्रीय मंत्री पद पर रहते हुए भी और इसके बाद मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी उनका मुझे खुद फोन करना और मुझे सम्मान देना ,उनके बड़प्पन की निशानी है।हरीश रावत 24 घण्टे में से शायद 18 घण्टे केवल और केवल आमजनता के हितों को लेकर न सिर्फ सोचते है बल्कि जनता के बीच जाकर जन समस्याओं का समाधान भी खोजते है।हरीश रावत पहले मुख्यमंत्री रहे जो पूरा दिन काम करने के बाद सोने से पहले अपने घर की चौखट पर जाकर यह देखते थे,कि कोई फरियादी तो नही खड़ा है,इतना सब होने पर भी उन्हें कई बार चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा,लेकिन वे जब भी हारे तभी एक नई ऊर्जा के साथ फिर उठ खड़े हुए नया मार्ग बनाने के लिए ,रोते हुए को हंसाने के लिए।यही सक्रियता उन्हें बड़ा बनाती है और मंझे हुए जननेता की पहचान कराती है।

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