लिफाफे का नया चलन….

-अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

हम भारतीयों के जीवन में लिफाफे का महत्व किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं है। शादी हो, सालगिरह हो, बच्चे का जन्म हो, या फिर कोई और खास मौका, शगुन का लिफाफा हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। लेकिन जरा सोचिए, क्या हो अगर ये परंपरा सिर्फ खुशी के मौकों तक सीमित न रहे, बल्कि जीवन के कठिन समय में भी लोगों की मदद के लिए इस्तेमाल की जाए ?

जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ उन लिफाफों की जिनमें रूपए-पैसे रखकर अक्सर हम शादी या किसी और मंगल कार्य में भेंट के रूप में देते हैं। लेकिन अगर यही लिफाफा हम किसी के अस्पताल में भर्ती होने पर, किसी की मृत्यु के समय, या फिर किसी आकस्मिक घटना के समय भी देने लगें, तो समाज में कितनी सकारात्मकता आ सकती है। क्या आपने इस पर कभी विचार किया है? आखिर मुश्किल समय में ही पैसों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तो सिर्फ मंगल कार्यों में ही हम अपने परिजनों के साथ क्यों रहें? मुसीबत की घड़ी में भी हमें उनके साथ खड़ा रहना चाहिए।

मान लीजिए, आपका कोई मित्र अचानक बीमार हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। अस्पताल में इलाज का खर्च आसमान छू रहा है। ऐसे समय में अगर हर मिलने वाला उसके लिए एक लिफाफा भी लेकर जाए, तो यकीन मानिए, वह व्यक्ति न सिर्फ अपने प्रियजनों की दरियादिली का कायल हो जाएगा, बल्कि उसकी आर्थिक समस्या भी थोड़ी कम हो जाएगी। यह छोटा सा बदलाव उसके भावनात्मक और आर्थिक दोनों पहलुओं को मजबूत करेगा, जो उसे इस मुश्किल घड़ी से निकलने में मदद करेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि अस्पताल का खर्च किसी शादी के खर्च से कम नहीं होता, और कभी-कभी तो उससे भी ज्यादा होता है। मंगल कार्यों के खर्च में एक बार कटौती की भी जा सकती है, लेकिन मुश्किल के समय में वह भी संभव नहीं हो पाता। तो क्यों न ऐसे वक्त में भी लिफाफे के जरिए अपने प्रियजनों की मदद की जाए?

बचपन में मैंने अपने बड़ों से सुना था, “किसी के सुख में साथ रहो या न रहो, पर दुःख में साथ रहना चाहिए।” मेरा खुद का मानना भी यही है। कई बार दुःख की घड़ी में हम अपने प्रियजनों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन सही अवसर नहीं मिल पाता, या फिर हम समझ नहीं पाते कि कैसे मदद की जाए। ऐसे में एक छोटा सा लिफाफा हमारी उस भावना को व्यक्त करने का साधन बन सकता है। यह लिफाफा केवल कुछ पैसों का नहीं, बल्कि हमारे स्नेह, सहयोग और सांत्वना का प्रतीक होगा।

शगुन का लिफाफा देना एक पुरानी परंपरा है, जिसके पीछे का कारण यही है कि खुशी के मौके पर हम अपने प्रियजनों के साथ अपनी खुशी साझा करना चाहते हैं, और उनके जीवन की नई शुरुआत में अपना योगदान देना चाहते हैं। आमतौर पर शादी के बाद नए जोड़े के पास इतना धन होता है कि वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।

लोग दुःख में हैं कैसे पता लगेगा, कई लोग अपना दुःख बताते है कई लोग अपना दुःख नहीं बता पाते हैं ।इसलिए अपनों के संपर्क में बनें रहें और जहाँ जरुरत लगे आर्थिक मदद का एक लिफाफा जरुर भेंट करें। यह न केवल हमारी पुरानी परंपरा को नए रूप में जीवित रखेगा, बल्कि समाज में भी एक नया संदेश देगा कि हम एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ हैं। और आखिर में, यही तो असली इंसानियत है, है न!

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