राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य

1. आने भी दो यारो!

यूपी वाले योगी जी इन दिनों गजब फॉर्म में हैं। विधानसभा तक में ऊंची सोच के चौके-छक्के जड़े जा रहे हैं और वह भी पूरी तरह से स्वावलंबी तरीके से। विपक्ष वालों की गेंद आने तक के मोहताज नहीं हैं, बस ऊंची सोच के चौके-छक्के जड़े जा रहे हैं। पिछले हफ्ते यूपी को गरीब मुक्त बनाने और देश के सभी राज्यों में सबसे पहले गरीब मुक्त बनाने का बीड़ा उठाया था, तो इस हफ्ते यूपी को बेरोजगार मुक्त बनाने का। बल्कि बेरोजगारों के मामले में योगी जी की प्लानिंग यूपी को बेरोजगार-मुक्त कराने से भी काफी आगे की है। प्लानिंग तो इसकी है कि सारी दुनिया नौकरी के लिए यूपी आएगी। यानी योगी जी यूपी को बेरोजगार-मुक्त कराने पर संतुष्ट होकर नहीं बैठ जाएंगे। दुनिया भर से बेरोजगारों को पकड़-पकड़क़र लाएंगे और उन्हें रोजगार-युक्त और इस तरह पूरी दुनिया को बेरोजगार-मुक्त कराएंगे। बात भी लॉजिकल है। जब ईश्वर ने योगी जी को बेरोजगार-मुक्त बनाने का मंतर दे ही दिया है, तो उसका प्रयोग कर के सिर्फ यूपी को ही बेरोजगार-मुक्त करने पर ही क्यों रुक जाएं? क्यों न अपनी सोच को बड़ा करें और पूरे विश्व को ही बेरोजगार-मुक्त बनाएं। आखिरकार, विश्व गुरु का भी तो फर्ज निभाना जरूरी है।

अब प्लीज कोई यह मत पूछने लगना कि यूपी और दुनिया को बेरोजगार-मुक्त बनाने के बीच, योगी जी भारत को तो बेरोजगार-मुक्त बना ही देंगे! ऐसे सवाल योगी जी और मोदी जी के बीच झगड़ा लगाने वालों की ही खोपड़ी की उपज हो सकते हैं। वर्ना योगी जी को अच्छी तरह से पता है कि अगर भारत को भी बेरोजगार-मुक्त योगी जी ही करेंगे, तो मोदी जी क्या करेेंगे? मोदी जी के कार्यक्षेत्र में योगी जी दखल हर्गिज नहीं देंगे ; यूपी को बेरोजगार-मुक्त कराने के उपरांत, सीधे सारी दुनिया को बेरोजगार-मुक्त कराएंगे। जहां तक बाकी इंडिया वालों का सवाल है ; मोदी जी जानें या इंडिया वाले जानें।

और हां! योगी जी के इस तरह ऊंची सोचने और दूर तक फेंकने का, यूपी की उनकी कुर्सी हिलने वगैरह से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। माना कि पिछले लोकसभा चुनाव में भगवा पार्टी को बहुत तगड़ी पटखनी लग गयी थी। इतनी तगड़ी पटखनी कि उसके बाद से यूपी में कुछ भी सामान्य नहीं हुआ है। और तो और, सीएम और डिप्टियों के बीच ठंडी कम और गर्म ज्यादा जंग जारी है। केशव प्रसाद मौर्य बाकायदा बादशाह अकबर के करैक्टर में हैं और फिल्म मुगले आजम में अनारकली को सुनाया गया डॉइलॉग योगी जी को सुना रहे हैं — अनारकली, संघ तुम्हें हटने नहीं देगा और हमारे मोशा तुझे चैन से इस गद्दी पर बैठने नहीं देेंगे!

यह सब अपनी जगह सही है, पर इसका योगी जी के दुनिया को बेरोजगार-मुक्त बनाने से कुछ लेना-देना नहीं है। यह आइडिया तो योगी जी की एकदम ऑरीजिनल सोच से निकला है। बल्कि सुना है कि योगी जी अब तो खुद को कोस रहे हैं कि गरीब-मुक्त बनाने के एजेंडे को भी सिर्फ यूपी तक की सीमित क्यों रखा? उस समय भी बेरोजगारी वाला फार्मूला क्यों नहीं लगाया, यूपी के साथ पूरी दुनिया को भी गरीब-मुक्त क्यों नहीं बनाया? करना क्या था, अस्सी करोड़ को तो पांच किलो अनाज मुफ्त दे ही रहे हैं ; चालीस-पचास करोड़ को और सही। बाकी तो सिर्फ ऊंचा सोच चाहिए था और चाहिए था मुंह खोलकर यह कह देने का हौसला कि दुनिया को गरीब-मुक्त, बेरोजगार-मुक्त वगैरह हम ही करेंगे। और बेशक पब्लिक से इसका भरोसा तो खैर चाहिए ही चाहिए था कि अपने घर का हाल देखना छोड़क़र, दुनिया को रोजगार देने के डॉयलाग पर तालियां बजाएगी और परदेश में बजते डंके के सपनों में खो जाएगी। सो दुनिया को नौकरियों के लिए यूपी आने भी दो यारो!

वॉर रुकवा दो पॉ पॉ

भगवान ऐसा अपोजीशन तो किसी दुश्मन को भी नहीं दे। बताइए, मोदी जी वॉर रुकवाने के लिए कभी रूस, तो कभी युक्रेन तक दौड़ लगा रहे हैं। कभी पूतिन को झप्पी डाल रहे हैं, तो कभी जेलेन्स्की के कंधे पर हाथ रखकर उसे संभाल रहे हैं। बुद्घ-बुद्घ का जाप कर रहे हैं, सो ऊपर से। और ये अपोजीशन वाले बेचारे का मजाक उड़ा रहे हैं — वॉर रुकवा आए पॉ पॉ! घर पर मणिपुर तो मणिपुर, जम्मू तक की वॉर तो रुकवायी नहीं गयी और चले हैं, योरप में वॉर रुकवाने, पॉ पॉ!

काश इन अपोजीशनियों में हमारे सनातन ज्ञान का लेशमात्र भी आया होता। इनके हिस्से में भी पुराने लोगों का यह ज्ञान आया होता कि घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्घ। यानी अगर मोदी जी मणिपुर में या जम्मू में वॉर नहीं रुकवा पाए हैं, तो इसका मतलब यह हर्गिज नहीं है कि पॉ पॉ और कहीं वॉर रुकवा ही नहीं सकते हैं। उल्टे इससे तो यही पता चलता है कि घर में जोगड़ा माने जाने वाले पॉ पॉ के योरप में सिद्घ माने जाने की पूरी-पूरी संभावना है। बल्कि चूंकि योरप में वॉर है, इसलिए यूक्रेन-रूस के बीच वॉर को कोई योरप वाला और अमरीका वाला भी तो रुकवा नहीं सकता है। उसे घर का जोगड़ा जो माना जाएगा। वॉर रुकवाने के लिए तो कोई आन गांव का सिद्घ ही चाहिए। और इसके लिए अपने पॉ पॉ से योग्य कैंडीडेट विश्व भर में नहीं मिलेगा। भावार्थ यह कि वॉर चाहे यूक्रेन-रूस की हो या फिलिस्तीन-इस्राइल की, आज के टैम पर वॉर तो अपने वाले पॉ पॉ ही रुकवा सकते हैं ; फिर वॉर चाहे कुछ घंटे के लिए ही रुकवानी हो या फिर वॉर पक्के तौर पर।

फिर मणिपुर की वॉर भी कोई वॉर है लल्लू, जो पॉ पॉ उसे रुकवाते फिरें! पॉ पॉ के रुकवाने के लिए, वॉर भी तो, वॉर जैसी हो। माना कि मणिपुर के सीएम भी बम मारते हैं, जिसकी तस्दीक खुद अमित शाह ने की है। फिर भी सिर्फ हजार-पांच सौ मौतों से, बॉर्डर खिंचने से, युद्घ के मोर्चे सजने से, यहां तक कि बम मारने से भी, हरेक लड़ाई वॉर नहीं हो जाती है, जिसे पॉ पॉ रुकवाने जाएं। लोकल वॉर को रुकवाया भी तो क्या रुकवाया, पॉ पॉ तो ग्लोबल वॉर रुकवाएंगे। ग्लोबल वॉर रुकवाएंगे, तभी तो पॉ पॅा विश्व गुरु कहलाएंगे।

एक माफ़ी का सवाल है, बाबा!
आखिर ये विपक्ष वाले चाहते क्या हैं? हमेशा तो मोदी जी के पीछे पड़े रहते थे कि माफी मांगो, माफी मांगो। कभी किसानों के साल भर से लंबे आंदोलन में सात सौ किसानों की मौतों के लिए माफी, तो कभी किसानों से लेकर छात्रों तक की आत्महत्याओं के लिए माफी। हिंडनबर्ग से देश की बेइज्जती कराने के लिए माफी। प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक से लेकर भूख सूचकांक तक पर देश को रसातल में पहुंचा देने के लिए माफी। गौरक्षा वगैरह के नाम पर बढ़ती मॉब लिंचिंग के लिए माफी। डेमोक्रेसी का दम निकाल देने के लिए माफी। धारा-370 हटाने के बाद भी, आतंकवादी हमलों में आए दिन वर्दीवालों की शहादत के लिए माफी। लद्दाख बार्डर पर ना कोई घुसा है वाले बयान के लिए माफी। नयी संसद से लेकर राम मंदिर तक के टपकने के लिए माफी। और तो और, कंगना राणावत के मुंह खोलने के लिए भी माफी।

और हमेशा इसकी शिकायत करते थे कि मोदी जी कभी माफी क्यों नहीं मांगते? 2002 के गुजरात के नरसंहार तक के लिए माफी नहीं मांगी! और भी न जाने किन-किन माफियों की उधारी गिनाते थे, जो नहीं मांगी गयीं।

पर अब जब मोदी जी ने महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की मूर्ति के टूटकर गिरने के लिए माफी मांगी है, बाकायदा चरणों में शीश नवाकर माफी मांगी है, शिवाजी महाराज से ही नहीं, उनकी पूजा करने वालेे आगामी विधानसभा चुनाव के करोड़ों वोटरों से भी माफी मांगी है, तो विरोधी इसे माफी मानने में भी नखरे कह रहे हैं। कहते हैं कि ये माफी मांगना तो कोई माफी मांगना नहीं है, बच्चू!

हम पूछते हैं कि मोदी जी की माफी में कमी क्या थी? क्या यही कि माफी मांगी शिवाजी की मूर्ति के धराशायी होने की और उसके साथ सावरकर का नाम जोड़ दिया। लेकिन, सावरकर का नाम जोड़ना तो हर तरह से बनता है। और माफी मांगने के प्रसंग में तो सबसे ज्यादा बनता है। मोदी जी पहली बार माफी मांग रहे थे, तो जाहिर है कि इस मौके पर झिझक भी होगी, संकोच भी होगा। ऐसे मौके पर सावरकर को नहीं याद करते, तो किस को याद करते? सावरकर ने अंगरेजों को सात-सात माफीनामे भेजे थे। एक तरह से माफी मांगने के एक्सपर्ट ही थे। संघ के प्रात:स्मरणीयों में माफी मांगने का इस दर्जे का एक्सपर्ट दूसरा कौन होगा? माफी के मौके पर मोदी जी सावरकर का स्मरण नहीं करते, तो क्या एक इमरजेंसी के मौके पर ही इंदिरा गांधी को माफी की चिट्ठियां लिखने वाले, तब के आरएसएस के सरसंघचालक, देवरस का स्मरण करते। कहां सात-सात माफियां और कहां एक माफी, दोनों में कोई वास्तविक च्वाइस भी बनती है क्या?

और रही सावरकर की माफियों का शोर मचाने के लिए, अपने विरोधियों से माफी मंगवाने की मोदी जी की मांग, तो उसमें गलत क्या है? मोदी जी ही अकेले माफी क्यों मांगें? मोदी जी ही सबसे पहले माफी क्यों मांगें? दीवार फिल्म याद है, अमिताभ बच्चन ने क्या कहा था? जाओ पहले उससे दस्तखत लेकर आओ और उससे और उससे! दीवार फिल्म हिट हुई थी कि नहीं, पब्लिक को पसंद आयी थी कि नहीं। फिर पब्लिक की पसंद का ख्याल कर, मोदी जी भी क्यों पब्लिक से इसकी डिमांड नहीं करते कि पहले उस राहुल से माफी मंगवा के आओ, जिसने सावरकर को माफी वीर की गाली दी थी। पर मोदी जी ने, पहले माफी मंगवाकर आओ, की मांग की? नहीं की। उल्टे राहुल माफी मांगना तो दूर, सावरकर को माफी वीर कहने के लिए अदालत तक चले गए। मोदी जी ने फिर भी बाकायदा माफी मांगी या नहीं!

ये तो माफी नहीं है, माफी नहीं है करने वालों से, हम एक बात पूछना चाहते हैं। क्या यह मोदी जी की मेहरबानी ही नहीं है कि उन्होंने माफी मांगी है। पहले माफी नहीं मांगी थी। एक बार भी माफी नहीं मांगी थी। कहने वालों के बार-बार कहने के बाद भी माफी नहीं मांगी थी। किसी एक बात के लिए भी माफी नहीं मांगी थी। तब क्या किसी ने उनका कुछ बिगाड़ लिया था? उल्टे उनका तो पद बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों माफी मांगने से इंकार किया उन्होंने। पद बढ़ता गया और छाती का साइज भी। शुरू में छप्पन इंच थोड़े ही रही होगी। छप्पन इंच के साइज के बावजूद, इस बार मोदी जी ने माफी मांगी है। इस बार भी नहीं मांगते, तो क्या कोई कुछ उखाड़ लेता। फिर भी उन्होंने माफी मांगी है। इसके बावजूद, उनका शुक्रिया अदा करने के बजाए, विरोधी उनकी माफी पर ही सवाल उठा रहे हैं। इतना नाशुक्रापन कहां से लाते हैं ये लोग।

फिर सच पूछिए तो इस मामले मेें मोदी जी की माफी तो किसी भी तरह बनती ही नहीं थी। मूर्ति शिवाजी की। लगायी गयी सिंहदुर्ग में मालवन फोर्ट में, वह भी नौसेना दिवस के मौके पर। मूर्ति गिरायी हवाओं ने। इस सब में बेचारे मोदी जी कहां से आ गए? सिर्फ इसलिए कि करीब नौ महीने पहले बाकी हर चीज के उद्घाटन की तरह, इस मूर्ति का भी अनावरण मोदी जी ने ही किया था, मूर्ति के गिरने के लिए मोदी जी माफी क्यों मांगते? सीएम शिंदे ने तो मूर्ति के गिरने की खबर मिलते ही कहा भी था — सारा कसूर तेज हवाओं का था। आखिर, नौ महीने से मूर्ति खड़ी ही हुई थी। हवाएं अचानक इतनी उग्र क्यों हो गयीं कि मूर्ति गिर ही गयी। और सिर्फ गिरी ही नहीं, गिरकर कई-कई टुकड़ों में टूट गयी? इसके पीछे कोई बड़ी साजिश भी तो हो सकती है, महाराष्ट्र और देश को बदनाम करने की।

और, हवाओं के बाद अगर किसी का कसूर बनता था, तो नौसेना का, आखिर नेवी डे पर यह मूर्ति खूब तड़क-भड़क के साथ लगायी गयी थी। तड़क-भड़क तो खूब थी, पर क्या मुहूर्त भी शुभ था? नहीं तो मूर्ति बनाने का आर्डर देने वाले निकाय का कसूर होगा। या फिर मूर्ति बनाने वाला का। या फिर मूर्ति में लगी समग्री का। या फिर मूर्ति खड़ी करने वालों का। या फिर मूर्ति की जगह की साफ-सफाई करने वाले का या चौकीदार का। माफी मांगनी ही थी, तो वे मांगते। पर माफी मांगी है, मोदी जी ने।

चुनाव मोदी जी से क्या-क्या नहीं करा सकता है! माफी तक मंगवा सकता है, वह भी तेज हवाओं की गलती के लिए। इसीलिए तो मोदी जी एक देश एक चुनाव चाहते हैं। माफी भी मांगनी पड़े, तो भी पांच साल में सिर्फ एक बार मांगनी पड़े। कम से कम बार-बार माफी मांगने के चक्कर में, माफी वीर कहलाने का खतरा तो नहीं होगा।

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