डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
उत्तराखंड में गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर अतिवृष्टि के बाद से भूस्खलन में फंसे लोगों का रेस्क्यू जारी है। अभी तक करीब 150 लोगों से आपदा टीम का संपर्क नहीं हो पा रहा है। अब तक 6,980 लोगों का रेस्क्यू हो चुका है। 599 लोगो को हेलिकॉप्टर से बचाया गया है।प्रभावित इलाके में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण आपदा में फंसे लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। इसलिए कितने लोग लापता हैं, सीधे तौर पर नहीं बताया जा सकता है, रेस्क्यू पूरा होने पर ही स्थिति साफ होगी। पुलिस ने मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है। जिसकी मदद से लोग अपनों के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
हालांकि अधिकारियों का दावा है कि केदारनाथ से लेकर पैदल मार्ग तक सभी यात्री सुरक्षित हैं और उन्हें रेस्क्यू किया जा रहा है। पहले दिन 4000 लोगों को पैदल मार्ग से रेस्क्यू किया गया था। वही हेलिकॉप्टर से 602 और पैदल मार्ग से 1,700 यात्रियों का रेस्क्यू किया जा चुका है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपदा राहत कार्यो के बारे में बताया कि प्रदेश में राहत-बचाव अभियान जारी है, सभी विभाग अलर्ट पर हैं। वे खुद भी लिनचोली और गुप्तकाशी गए थे। अब तक 5,000 लोगों को बचाया गया है और 1000 लोग धाम पर अभी भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि आपदा के समय वे उत्तराखंड के साथ हैं। सभी संभव सहायता हो रही है। हेलिकॉप्टर भी भेजा गया है। गृहमंत्री भी लगातार संपर्क में हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी लगातार जानकारी ले रहे हैं। हम हर एक श्रद्धालु, आपदा पीड़ित की सहायता के लिए प्रतिबद्ध हैं।हकीकत यह है कि उत्तराखंड को भू-जल विज्ञान संबंधी आपदाओं के लिहाज से सबसे कमजोर बताया गया है। देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के जिलों को भू-जल विज्ञान संबंधी आपदाओं के लिए सबसे अधिक संवेदनशील माना गया है, जिनमें भूस्खलन, अचानक बाढ़, बादल फटना, मलबा बहना, चट्टानों का गिरना, चरम मौसम और भूमि का जलमग्न होना शामिल है।
इस तरह की घटनाएं हिमालयी राज्य उत्तराखंड में बहुत सक्रिय तथा अक्सर होती रहती हैं, मुख्य रूप से मॉनसून के दौरान ये घटनाएं और अधिक सक्रिय हो जाती हैं।
उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में आपदाओं को देखें तो, इस साल की शुरुआत में चमोली जिले के जोशीमठ में भूमि धंसने के कारण यह इलाका सुर्खियों में रहा, जिसकी वजह से सैकड़ों परिवारों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है। उत्तरकाशी जिले में हाल ही में सिल्कयारा सुरंग के ढहने की घटना ने लोगों का ध्यान इस और आकर्षित किया। पिथौरागढ़ जिले में भी नियमित रूप से भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं, खासकर मॉनसून के दौरान इनमें बढ़ोतरी देखी जा सकती है। मिजोरम विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया कि सन 2020 से 2023 तक भू-जल विज्ञान संबंधी खतरों के आंकड़ों के विश्लेषण में उत्तराखंड के बंदाल घाटी और सोंग नदी घाटी, दोनों पर आपदाओं के प्रभाव पर एक अनुभव आधारित अध्ययन भी शामिल किया गया है।जिसमे दोनों घाटियां बादल फटने के कारण अचानक आई बाढ़ और मलबे के प्रवाह से बुरी तरह प्रभावित हुई। वहीं, बंदाल घाटी के तीन गांवों में भारी बाढ़ और मलबा बहने से हुए नुकसान का घरेलू स्तर पर सर्वेक्षण किया गया।सन 2020 से 2023 तक की चार साल की अवधि में, हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भारी नुकसान हुआ, जिसमें 213 लोग हताहत हुए, 5,275 लोग प्रभावित हुए, 553 पशु मारे गए, 301 घर ढह गए, 68 गांव प्रभावित हुए, 40 पुल ढह गए और 4,990 मीटर सड़कें क्षतिग्रस्त हुई है।
उत्तर भारत के कई राज्यों में दो मौसम प्रणालियां सक्रिय हैं। इनमें से एक पश्चिमी विक्षोभ है और दूसरी बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं हैं। पश्चिमी विक्षोभ वो हवाएं हैं, जो अरब सागर से अपने साथ नमी लाकर बारिश कराती हैं।इसी के चलते उत्तराखंड व हिमाचल राज्यों में भारी बारिश देखने को मिल रही है। इसी कारण नदियों का जलस्तर बढ़ गया है और जगह-जगह जलभराव और भूस्खलन से लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दस साल पहले यानी सन 2013 में भी दो वेदर सिस्टम उत्तराखंड में आपस मिले थे। उसी से केदारनाथ में भीषण आपदा आई थी। मौसम विज्ञानिकों का कहना है दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग जैसे-जैसे बढ़ेगी, मौसम प्रणालियों के मिलने की घटनाएं भी बढ़ेंगी। इसके चलते बारिश की तीव्रता भी और ज्यादा बढ़ सकती है। एक सप्ताह पहले हिमाचल प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवा का मिलन हुआ था। इस वजह से उत्तर भारत में जमकर बारिश हुई है।देवभूमि में पिछले दिनों लगातार बरसात की वजह से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। नदी नालों और नहर का पानी उफान पर है पर्वतीय इलाकों में हो रही बरसात की वजह से सड़कों के बीच में बहने वाले रपटे भी जानलेवा साबित हो रहे हैं। प्रशासनिक अमला सभी संवेदनशील इलाकों में लगातार निरीक्षण कर रहा है।उत्तराखंड में एक तरफ जहां बारिश के चलते आम जनजीवन प्रभावित हुआ है,तो वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि बारिश का अलर्ट हमेशा से प्रदेश के लिए एक चुनौती भरा रहता है, बारिश की वजह से कई मार्ग जहां बाधित हो गए हैं, तो वहीं कई जगहों पर जलभराव की समस्या देखने को मिल रही है, सड़कें खोलने और जलभराव की स्थिति से निपटने के लिए संबंधित विभागों और अधिकारियों को अलर्ट मोड पर रखा गया है ताकि आम जनता की समस्याएं कम हो।सीएम धामी का कहना है कि प्रदेश में जहां एक तरफ चार धाम यात्रा तो वहीं दूसरी तरफ कावड़ यात्रा से चुनोतियां बढ़ी है।उन्होंने कहा कि जब तक मौसम ठीक नहीं हो जाता है तब तक बहारी राज्यो से यात्रा पर न आए और मौसम की जानकारी लेने के बाद ही उत्तराखंड की यात्रा को करें क्योंकि कई जगहों पर सड़क बाधित होने की वजह से यात्रियों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
हिमाचल के कई जिलों व उत्तराखंड के चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ बागेश्वर के कई गांवों में गिरते शिलाखंडों, मलबे, दरकती जमीनों से लोग भयभीत हैं। पहाड़ की सड़कें बेहतर भविष्य की आस तो जगाती हैं वहीं सड़कों के बनने के बाद आसपास की जमीनों के भाव भी बढ़ जाते हैं।
चौड़ी सड़कें बनाने के लिए पहाड़ों को ज्यादा गहराई तक काटना पड़ता है। उन्हें ज्यादा विस्फोटों से उड़ाना होता है। ऐसे में सड़कजनित आपदाएं भी ज्यादा गहराने और पसरने लगती हैं। जगह-जगह ऐसे लिखे बोर्ड लगे हैं कि सड़कों के इन हिस्सों में रुके रहना भी खतरनाक है। वाहन चालकों को सलाह रहती है कि वे चलते रहें, रुके नहीं। ऐसी घटनाएं हुई हैं जब खड़े वाहनों व चलते लोगों पर ऊपर से आकर मलबा-पत्थर गिरे हैं और लोगों की मौतें हुई हैं।
सड़कों पर मलबा आने से तीर्थयात्रियों व पर्यटकों का सड़क अवरुद्ध होने से सड़क पर फंसना आम समस्या बन गया है। उत्तराखंड में सड़कों का नुकसान मुख्य मार्गों से हटकर, शाखा मोटर सड़कों पर भी बहुत होता है। तत्कालिक सड़कों को खोलने के लिए जो उपाय किये जाते हैं, उनसे भी समस्याएं बढ़ रही हैं। बड़ी-बड़ी मशीनें तेजी से गहराई तक पहाड़ों को काटकर तत्कालिक रास्ता तो साफ कर देती हैं, परन्तु पहाड़ कमजोर हो जाते हैं । ऐसी स्थितियों में पहाड़ टूटकर भारी बोल्डर्स सड़को पर लुढ़कते रहते हैं। सड़कों के समीप रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि सड़कों को पहाड़ से सुरक्षित करने के लिए सुरक्षा दीवार बनाई जानी चाहिए। सड़कों के साथ साथ पहाड़ों में खेत, मकान, दुकान तक आपदा से प्रभावित होते है। खराब सड़कों के कारण किसानों व बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। ठीक उस समय जब फलों की या खेती की अन्य नकदी फसलें तैयार रहती हैं और उनको बेचने का समय रहता है, उसी समय मोटर सड़कें, कई-कई दिनों तक अवरोधित हो जाती हैं। चमोली जिले में सड़कों के बाद भूस्खलन में बढ़ोतरी की बात तस्वीरों व आंकड़ों से दशकों से बताते रहेे हैं। पहाड़ में सड़कें कहां बनाई जा सकती हैं, कैसे बनाई जानी चाहिए, इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
पहाड़ों में सड़कों के पास अनियोजित ढंग से और बिना जल निकासी प्रणाली का ध्यान रखते हुए, कई बार बरसाती नालों के मुहाने पर भी जब मकान व दुकानें बनने लगती हैं, तो पहले जिन जगहों पर आबादी विहीन होने के कारण जान-माल हानि का संभावनाएं न के बराबर रहती थीं, वहां भी तबाही आनी शुरू हो गई है।उत्तराखंड में बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता सन 1970 के बाद से चार गुना तक बढ़ गई है। इसी तरह, भूस्खलन, बादल फटने, ग्लेशियल झील के प्रकोप आदि से संबंधित बाढ़ की घटनाओं में भी चार गुना वृद्धि हुई है, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। राज्य के चमोली, हरिद्वार, नैनीताल, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले बाढ़ से अत्यधिक ख़तरे में हैं।उत्तराखंड में हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ बाढ़ इस बात का सबूत है कि जलवायु संकट को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पिछले 20 वर्षों में, उत्तराखंड ने 50,000 हेक्टेयर से अधिक वन को खो दिया है, जिससे इस क्षेत्र में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं। इससे राज्य में चरम जलवायु घटनाओं में वृद्धि हुई है। भूमि उपयोग आधारित वन बहाली पर ध्यान देने से न केवल जलवायु असंतुलन को दूर किया जा सकता है बल्कि राज्य में स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है। चरम जलवायु घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के कारण राज्य में विकेंद्रीकृत, संरचित, समयबद्ध डिजिटल आपातकालीन निगरानी और प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।हाल ही में उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में हुई मूसलाधार बारिश ने चारों तरफ हाहाकार मचा दिया है।लगातार हुई बारिश की वजह से अरबो रुपये का नुकसान हुआ है।
(लेखक ज्वलंत मुद्दों को उठाने वाले वरिष्ठ पत्रकार है)