प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की याचिका को सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत खारिज कर दिया। कोर्ट ने खुली अदालत में फैसला सुनते हुए केवल आदेश के मुख्य भाग को पढ़ते हुए कहा कि हिंदू उपासकों और देवता के वादों परिसिमा अधिनियम या पूजा स्थल अधिनियम आदि के तहत रोक नहीं है।
इस निर्णय के साथ न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने सभी 18 मुकदमों को विचारणीय पाया जिससे उनकी योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। मालूम हो कि गत 6 जून को कोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें मुकदमों की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया गया था।
इसके साथ ही कोर्ट ने प्रबंध ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, मथुरा समिति द्वारा दी गई प्राथमिक दलील को खारिज कर दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमे उपासना स्थल अधिनियम, 1991 , परिसीमा अधिनियम, 1963 और विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के तहत वर्जित है। वहीं दूसरी ओर हिंदू पक्षकारों के अधिवक्ता ने दलील दी थी कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई भी संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उसे पर अवैध रूप से कब्जा है। अगर संपत्ति वक्त की संपत्ति है तो वक्त बोर्ड को यह बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है।
उन्होंने यह भी दलित दी थी कि इस मामले में उपरोक्त अधिनियम लागू नहीं होते हैं। याचिका में मूल वाद संख्या 6, 9, 16 और 18 की स्वीकार्यता को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया था कि वादी ने अपने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया है और इस तथ्य को भी स्वीकार किया है की भूमि (जहां ईदगाह बनी है) का कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है और इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम के साथ-साथ उपासना स्थल अधिनियम द्वारा भी वर्जित होगा, क्योंकि वादों में इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है कि संबंधित मस्जिद का निर्माण 1669-70 में हुआ था।
महत्वपूर्ण बात यह है की मस्जिद समिति ने यह भी तर्क दिया था कि स्थाई निषेधाज्ञा की प्रार्थना केवल उस व्यक्ति को दी जा सकती है जो मुकदमे की तारीख पर संपत्ति पर वास्तविक कब्जा रखता हो। चूंकि वादी के पास मस्जिद नहीं है, इसलिए वे स्थाई निषेधाज्ञा के लिए प्रार्थना नहीं कर सकते हैं।