अमर श्रीकांत।
देहरादून/ नयी दिल्ली। केदारनाथ विधानसभा की सीट भी वहां की विधायक शैला रानी रावत की मृत्यु के बाद रिक्त हो गया है। निश्चित रूप से निकट भविष्य में उप चुनाव होंगे। ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या भाजपा केदारनाथ की सीट निकाल पाएगी। उत्तराखंड के लोगों के जेहन में यह सवाल है। क्योंकि जिस तरह से मंगलौर और बद्रीनाथ विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है उससे यह बात भी साफ हो गई है कि केदारनाथ सीट भी निकालना भाजपा के लिए अब टेढ़ी खीर ही दिख रहा है हालांकि राजनीति में कब क्या होगा,यह बताना काफी मुश्किल होता है। फिर भी उत्तराखंड के लोगों के मन में अब अनगिनत सवाल जन्म लेने लगे हैं। कुछ माह पहले ही उत्तराखंड की लोकसभा की पांचों सीटें भाजपा ने जीती हैं। कायदे से यह तो उप चुनाव था,भाजपा को जीतना चाहिए था लेकिन विडंबना यह है कि भाजपा दोनों ही सीटें हार गई है। हां,लोग बेशक यह कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चला था। केंद्र में सरकार बनाने के लिए मोदी जी वोट मांगा और जनता ने मोदी जी को उत्तराखंड की पांचों सीटें सौंप दी।तो सवाल यह उठ रहा है कि आखिर उप चुनाव भाजपा क्यों हार गई। जबकि राज्य में भाजपा की ही सरकार है। मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकारी इश्तिहारों ,खासकर सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञापनों में विकास कार्यों की बखान करते दिख रहे हैं। उत्तराखंड सरकार के विज्ञापन अन्य प्रदेशों में भी देवभूमि के विकास कार्यों का लेखा जोखा निरन्तर पेश कर रहे है। विज्ञापनों से लगता है कि उत्तराखंड में राम राज्य आ गया है लेकिन विधानसभा उप चुनाव ने विकास कार्यों की कलई खोल कर रख दी है। इसका मतलब सरकार का विकास कार्य केवल और केवल विज्ञापनों में है। जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। यदि विकास कार्य हुए होते तो भाजपा उप चुनाव कतई नहीं हारती। इन दोनों उप चुनावों को जीतने के लिए सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी थी। सूचना विभाग तो विज्ञापनों के जरिए सरकार की छवि चमकाने में जुटा रहा लेकिन जनता-जनार्दन ने सरकार के विकास कार्यों की हवा निकाल दी है।