बैसाखियों के सहारे पूरा हुआ तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मोदी का सपना!
पांचों सीट जीतने के बावजूद उत्तराखंड के हिस्से में आया केवल एक राज्य मंत्री पद
-डॉ श्रीगोपाल नारसाल एडवोकेट, देहरादून/ नई दिल्ली।
नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में 9 जून की शाम 7.15 बजे 71 मंत्रियों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई हैं। उससे पहले नरेंद्र मोदी ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। वे अटलजी की समाधि और नेशनल वॉर मेमोरियल गए।
नरेंद्र मोदी को जवाहर लाल नेहरू की बराबरी पर लाने के लिए कुछ लोग प्रचारित कर रहे है कि “नेहरू के बाद तीसरी बार शपथ लेने वाले दूसरे प्रधानमंत्री बने मोदी!” जबकि यह पूरी तरह गलत है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजाद भारत में 4 बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्होंने साल 1947, 1952, 1957 और 1962 में प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया। इसके बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने 3 बार प्रधानमंत्री पद की शपथ साल 1967, 1971 व 1980 में ली थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 3 बार प्रधानमंत्री पद की शपथ साल 1996, 1998 और 1999 में ली थी। जिसके बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार 2014, दूसरी बार 2019 और अब तीसरी बार प्रधान मंत्री पद की शपथ ली है।
नरेंद्र मोदी ने जिन्हें मंत्री बनाया उन्हें अपने आवास पर चाय पर बुलाया था। इन नए मंत्रियों में अमित शाह, राजनाथ सिंह, निर्मला रमण, जयशंकर, शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर, कुमारस्वामी, नितिन गडकरी, पीयूष गोयल, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अर्जुन राम मेघवाल आदि शामिल है। उत्तर प्रदेश से 8 मंत्री बनाये गए हैं, जबकि उत्तराखंड से अल्मोड़ा सुरक्षित से अजय टम्टा को मंत्री बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह, अपना दल (एस) प्रमुख अनुप्रिया पटेल, रालोद प्रमुख जयंत चौधरी, पीलीभीत से सांसद जितिन प्रसाद, राज्यसभा सांसद बीएल वर्मा, महाराजगंज से सांसद पंकज चौधरी, आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल और बांसगांव से सांसद कमलेश पासवान शामिल हैं। मोदी मंत्रिमंडल में कुछ नाम एकदम चौंकाने है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लोगों को चौंका दिया है। इनमें नवसारी सीट से 7.77 लाख वोटों के अंतर से जीत कर आए सीआर पाटिल को मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी गई हैं। पाटिल भाजपा की गुजरात इकाई के अध्यक्ष हैं। सीआर पाटिल का जन्म महाराष्ट्र के जलगांव में हुआ था।
पाटिल 2009 के चुनाव से पहली बार नवसारी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और एक लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2014, 2019 और 2024 के चुनाव में भी उन्होंने इसी सीट से बंपर जीत हासिल की। पाटिल की जीत का अंतर हर चुनाव में बढ़ जाता है।यही उनके मंत्री बनने का आधार बना है। मोदी के करीबी नेताओं में गिने जाने वाले सीआर पाटिल ने आईटीआई करने के बाद गुजरात पुलिस बल में कांस्टेबल की नौकरी भी की थी। 1984 में नौकरी छोड़ खुद का बिजनेस शुरू किया। साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हो गए। 1989 में भाजपा में शामिल हुए। दक्षिण गुजरात में भाजपा की मजबूती का श्रेय पाटिल को दिया जाता है।
इसी तरह भावनगर लोकसभा सीट से 4.55 लाख वोटों से जीत कर संसद पहुंची निमुबेन बंभानिया को भी मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली है। निमुबेन तलपड़ा कोली समाज से आती हैं। वे पेशे से अध्यापक रही हैं और साथ में सामाजिक कार्यकर्ता भी है। 8 सितंबर,साल 1966 को जन्मीं निमुबेन बाभंणिया ने गणित व विज्ञान विषयों से बीएससी और बीएड किया है। निमुबेन के पति का नाम जयंती भाई बाभंणिया है।
वह अपने पति के साथ स्कूल चलाती हैं। निमुबेन की छवि शांत, आदर्श और सरल स्वभाव वाले नेता के तौर पर है। मेयर चुने जाने के बाद निमुबेन ने सरकारी वाहनों के इस्तेमाल के खिलाफ फैसला दिया था। उनके परिवार के सदस्यों को भी उनके कार्यालय में आने की इजाजत नहीं थी। निमुबेन साल 2009 से साल 2010 और साल 2015 से साल 2018 तक भावनगर की मेयर रहीं। गोरखपुर जिले के बांसगांव लोकसभा सीट से भाजपा सांसद कमलेश पासवान को मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी है। कमलेश साल 2009 से लगातार जीतते आ रहे हैं। कमलेश पासवान के पिता ओम प्रकाश पासवान भी राजनीति में थे, उन्हें एक रैली को संबोधित करने के दौरान मार दिया गया था। कमलेश पासवान की मां सुभावती पासवान भी सांसद रह चुकी हैं। कमलेश पासवान के छोटे भाई विमलेश पासवान भी बांसगांव सीट से भाजपा के दूसरी बार विधायक हैं। पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएट कमलेश की पत्नी का नाम रितु पासवान है। उनके दो बच्चे- एक बेटा और बेटी है। वही यूपी की गोंडा लोकसभा सीट से लगातार तीसरी बार भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भैया ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। वह पांचवीं बार सांसद चुने गए हैं। साल 1998 और साल 2004 में वह सपा के टिकट पर सांसद चुने गए थे।
लखनऊ विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले राजा भैया को पावर्ड हैंग ग्लाइडर केवी के खासा शौकीन हैं। उनकी पत्नी का नाम मधु श्री सिंह है और उनके बेटे का नाम जयवर्धन सिंह। जयवर्धन सिंह फिलहाल पढ़ाई कर रहे हैं। राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली है। बिहार की राजनीति में ठाकुर एक जाना-पहचाना नाम है और वह नीतीश कुमार के करीबी भी माने जाते हैं। रामनाथ ठाकुर ने राज्य मंत्री के तौर पर शपथ ली है। रामनाथ बिहार के पूर्व सीएम और भारत रत्न से सम्मानित कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं। कर्पूरी ठाकुर जब तक राजनीति में रहें, उन्होंने अपने बेटे को राजनीति से दूर रखा। वह नहीं चाहते थे कि बेटा नेता बने। भाजपा के राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र दुबे को भी मोदी ने अपना मंत्री बनाया है। सतीश को उत्तर बिहार का मजबूत ब्राह्मण नेता माना जाता है। सतीश वाल्मीकि नगर सीट से 2014 से 2019 तक लोकसभा के सांसद रह चुके हैं। 2019 में उनका टिकट कट जाने के बाद भाजपा हाईकमान ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया था। सांसद बनने से पहले वह चनपटिया और नरकटिया विधानसभा सीट से विधायक भी रह चुके हैं। मंत्री बनने पर सबसे अधिक जिस नाम ने चौंकाया है, वह नाम है मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुनकर संसद पहुंचने वाले डॉ. राजभूषण चौधरी निषाद का।
राजभूषण कुछ महीने पहले ही वीआईपी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा के टिकट पर वह चुनाव लड़े थे। पेशे से चिकित्सक राज भूषण का मोदी सरकार में मंत्री बनना बिहार में मुकेश सहनी के लिए झटका माना जा रहा है, जोकि निषादों की राजनीति करते हैं। अभिनेता से नेता बने केरल की त्रिशूर सीट से भाजपा सांसद सुरेश गोपी को भी मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया है। सुरेश गोपी ने केरल में भाजपा का खाता खोला है। सुरेश गोपी का जन्म केरल के अलप्पुझा में 26 जून साल 1958 को हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई कोल्लम से हुई। बाद में जूलॉजी से बीएससी और अंग्रेजी पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल की। साल 1965 से एक बाल कलाकार से अभिनय की शुरुआत की। टीडीपी के सांसद किंजरापू राम मोहन नायडू मोदी कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री बने हैं।
36 वर्षीय राम मोहन नायडू आंध्र प्रदेश की श्रीकाकुलम सीट से तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। राम मोहन नायडू टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू के बेहद करीबी माने जाते हैं। राम मोहन को राजनीति विरासत में मिली है। राम मोहन के पिता येरन नायडू भी टीडीपी के बड़े नेताओं में शुमार रहे थे। सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो जाने के बाद राम मोहन ने राजनीति में कदम रखा।गुंटूर सीट से तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीतकर आए टीडीपी के सांसद चंद्रशेखर पम्मसानी भी मोदी टीम के हिस्सा बन गए हैं। उन्होंने राज्य मंत्री के तौर पर शपथ ली है। चंद्रशेखर पम्मसानी के पास कुल 5,705 करोड़ रुपये की संपत्ति है। चंद्रशेखर ने साल 1999 में एमबीबीएस किया। बाद में साल 2005 में अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से एमडी की उपाधि प्राप्त की। मांड्या लोकसभा से 2.84 लाख वोटों से जीतकर सांसद चुने गए एनडीए के सहयोगी दल जनता दल सेक्युलर के एचडी कुमारस्वामी ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली है। कुमारस्वामी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे हैं और दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। कुमारस्वामी लोगों के बीच कुमारन्ना के नाम से पहचाने जाते हैं। एचडी कुमारस्वामी राजनीति के साथ ही फिल्म निर्माता और व्यवसायी भी हैं।
बुलढाणा लोकसभा सीट से लगातार चौथी बार सांसद चुने गए एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के प्रतापराव जाधव ने भी शपथ ली है। वह एनडीए की सहयोगी पार्टी शिवसेना के सांसद हैं। 25 नवंबर, साल1960 को जन्मे प्रतापराव जाधव तीन बार विधायक और चौथी बार सांसद चुने गए हैं। रांची लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद चुने गए संजय सेठ को मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली है। संजय सेठ को वैश्य समुदाय और जनजातीय समाज का प्रमुख चेहरा माना जाता है। संजय सेठ संघ के करीबी नेता माने जाते हैं अजमेर सीट से 3.29 लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र चौधरी को हराकर संसद पहुंचे भागीरथ चौधरी को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली है। भागीरथ दूसरी बार सांसद चुने गए और पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बने हैं। वह भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष हैं। पेशे से अध्यापक भागीरथ का जाट समाज से है, वे इससे पहले, किशनगढ़ से दो बार विधायक रह चुके हैं।
राजधानी की पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से बंपर वोटों से जीतकर सांसद बने हर्ष मल्होत्रा को मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया है। हर्ष मल्होत्रा का पूरा नाम हर्ष दीप मल्होत्रा है। हर्ष पूर्वी दिल्ली से मेयर भी रहे हैं। पूर्वी दिल्ली के इलाके में हर्ष मल्होत्रा की खासा अच्छी पकड़ मानी जाती है। साल 2012 में हर्ष मल्होत्रा ने पूर्वी दिल्ली के वेलकम कॉलोनी से पार्षद का चुनाव जीता था। मोदी मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण समारोह 2 घण्टे से ज्यादा चला। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मंत्रियों को शपथ दिलाने के दौरान 144 बार ‘मैं’ बोलना पड़ा और वे 72 बार मंत्रियों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए खड़ी हुई। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अधिकांश शीर्ष मंत्रियों यहां तक कि दक्षिण भारत के गैरहिंदी भाषी मंत्रियों ने भी हिंदी में शपथ ली। लेकिन निर्मला सीतारमण,एस जयशंकर समेत कई मंत्रियों ने अंग्रेजी में शपथ ली। चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत का अंग्रेजी में शपथ लेना सभी को अखरता रहा।
लोकसभा चुनाव के परिणाम मनमाफिक न आने पर भी देश की सबसे बड़ी पार्टी बने रहने में कामयाब रही भाजपा के वाराणसी सांसद नरेंद्र मोदी को तीसरे कार्यकाल का प्रधानमंत्री चुने जाने की इतनी जल्दी रही,कि उन्होंने भाजपा के चुनकर आए सांसदों से पहले मिलकर बैठक तक नही की और सीधे एनडीए घटक दलों से सम्पर्क साधकर कर बिहार से नीतीश कुमार और आंध्रप्रदेश से चंद्रबाबू नायडु के साथ सत्ता समझौता कर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर तीसरी बार बैठने में कामयाब हो गए। इसके लिए न संघ को और न ही भाजपा के निर्वाचित होकर आए सांसदों को विश्वास में लिया गया। इसी कारण चर्चा है कि मोदी से न सिर्फ संघ नाराज़ है बल्कि गडकरी भी आंखे टेढ़ी किए हुए है। लोकसभा चुनाव के नतीजों से बीजेपी बड़े सदमे में है, जहां पार्टी का उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में सत्ता होने के बावजूद प्रदर्शन खराब रहा है। 2019 और 2014 के चुनाव में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली भाजपा 2024 में कैसे बहुमत से दूर रह गई…यह सवाल भाजपा को परेशान किये हुए है। भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतीं, जबकि 2014 के चुनाव में वह बहुमत का आंकड़ा पार करने में कामयाब रही थी, वही भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा छू भी नहीं सकी है। बीजेपी ने एनडीए के लिए ‘400 पार’ और खुद के दम पर 370 से ज्यादा सीटें जीतने का टारगेट रखा था लेकिन 4 जून के नतीजे इसके विपरीत आए। बीजेपी मौजूदा चुनाव में अपने दम पर 240 सीटें ही जीत सकी, जो बहुमत के आंकड़े से 32 सीटें कम हैं, लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 292 सीटें जीती हैं, जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की 12 और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी की 16 सीटें शामिल है।
बीजेपी को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में सत्ता होने के बावजूद झटका लगा है। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पार्टी के खराब प्रदर्शन से लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बीजेपी से कहां गलती हो गई? बीजेपी के कई नेता अपने आकलन के हिसाब से मानते हैं कि जातीय समीकरण में गड़बड़ी की वजह से उत्तर प्रदेश में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा है। ना सिर्फ गैर-यादव ओबीसी वोट बीजेपी से छिटक गया, बल्कि गैर-जाटव दलित वोट भी पार्टी के हाथ से निकल गया और इंडिया गठबंधन में शिफ्ट कर गया है। गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं में भी खटीक और कुर्मी वोटर्स ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया। इंडिया गठबंधन के पूरे चुनाव में ‘मोदी जीते तो संविधान बदल देंगे’ वाले नैरेटिव से भी बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है, जहां पार्टी विपक्ष के दावों या आरोपों को काउंटर करने में नाकाम रही है।
राहुल गांधी अपनी सभी रैलियों में संविधान की एक लाल किताब लहराते नजर आए और दावे करते नजर आए कि अब अगर मोदी प्रधानमंत्री बने तो वह देश का संविधान बदल देंगे। राहुल गांधी का ‘संविधान बदल देंगे’ वाला नैरेटिव असल में बीजेपी के एक नेता की तरफ से ही निकलकर सामने आया था, कर्नाटक से बीजेपी के एक सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने कहा था कि बीजेपी को इसलिए संसद में बहुमत चाहिए, ताकि संविधान में बदलाव किया जा सके।बहुजन समाज पार्टी के अपने वोटर्स ने भी खुद की पार्टी का साथ छोड़ दिया, और पार्टी इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-समाजवादी गठबंधन का वोट काटने में नाकाम रही।माना जाता है कि ‘संविधान बदल दिया जाएगा’ वाले नैरेटिव की वजह से दलित मतदाताओं ने एकमुश्त रूप से इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया, जिसकी वजह से गठबंधन ने उत्तर प्रदेश की 80 में 43 सीटें अपने पाले में करने में सफल हुई है।
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को उत्तर प्रदेश में 36 सीटें ही मिल सकी। सरकार और बीजेपी सदस्यों के बीच तालमेल की कमी को भी एक वजह बताई जा रही है, जिससे पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा है। पार्टी कार्यकर्ता खासतौर पर महाराष्ट्र में नाराज नजर आए, जो यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें सरकार से साइडलाइन किया गया है। ज्यादातर सीटों पर मौजूदा सांसदों को दोबारा से टिकट देना भी पार्टी के लिए गलत फैसला साबित हुआ। इनके अलावा बीजेपी द्वारा दलबदलुओं को पार्टी में स्वागत करना और उन्हें उम्मीदवार बनाने के फैसले ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं-नेताओं के बीच गलत संदेश भेजा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार बीजेपी के चुनाव अभियान के प्रति उदासीन रहा और चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की एक टिप्पणी से नाराज था,उन्होंने आरएसएस को एक “वैचारिक मोर्चा” या ‘आइडियोलॉजिकल फ्रंट’ बताया था और कहा था कि बीजेपी “अपने आप चलती है।”
वही किंगमेकर बन कर उभरे नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने तो पहले ही कह दिया है, उनकी पार्टी अग्निवीर योजना व यूसीसी की पुनः समीक्षा चाहती है। टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू भी किंगमेकर बने हैं, और उनकी भी सहमति का साथ मिल गया है। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की संभावना पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनी हाई लेवल कमेटी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
समिति की तरफ से बताया गया है कि सभी पक्षों, विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद रिपोर्ट तैयार की गई है।इसमें आने वाले समय में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ ही नगर पालिका और पंचायत चुनाव भी करवाने की सिफारिशें शामिल हैं। इस रिपोर्ट में 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर बाकी 32 दलों ने एक साथ चुनाव कराने का सपोर्ट किया है, साथ ही सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए ये विकल्प अपनाये जाने की जोरदार पैरवी भी की है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वाले एजेंडे में तीन मुद्दे प्रमुख रहे हैं जिनमे अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना व पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 तो मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू होते ही खत्म कर दी गई थी, और मोदी के दूसरे कार्यकाल के आखिर तक अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन भी हो गया था। राम मंदिर उद्घाटन समारोह को लेकर राजनीति भी खूब हुई, लेकिन बीजेपी को राम मंदिर मुद्दे का बिल्कुल भी लाभ नहीं मिला है।
अयोध्या की फैजाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार इसका सबसे बड़ा सबूत है।यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड, राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील होने के कारण इसे लागू करना पाना मोदी सरकार के लिए बेहद मुश्किल हो सकता है। देश के 22वें विधि आयोग ने 14 जून, 2023 को यूसीसी पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के विभिन्न पक्षों से एक महीने के भीतर अपनी राय देने को कहा था। राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर महत्वपूर्ण भूमिका में आ चुके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अब यूसीसी को लेकर नरम रुख अपना लिया है। पहले तो बीजेपी के साथ रहते हुए भी बिहार में यूसीसी लागू करने से मना कर दिया था, लेकिन अब जेडीयू का कहना है कि यूसीसी के मुद्दे पर हरेक पक्ष की राय ली जाये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिटारे में और जो कुछ भी हो, लेकिन यूसीसी उनमें से एक तो है ही और इस मामले में मोदी सरकार कोई कदम बढ़ाती है और अंजाम तक पहुंचाती भी है, तो ये सबसे बड़ा फैसला होगा,लेकिन विपक्ष यह सब करने देंगा, इसमें संशय है। लोकसभा चुनाव कैंपेन में अग्निवीर का मुद्दा छाया रहा है,राहुल गांधी सहित विपक्षी दलों के नेताओं के भाषण में बार बार इसका जिक्र सुनने को मिला है, सभी के जबान पर एक ही बात थी, इंडिया गठबंधन ने सत्ता में आने पर अग्निवीर स्कीम को खत्म कर दी जाएगी।
इंडिया ब्लॉक की सरकार तो नहीं आई, लेकिन बीजेपी के अंदर चुनावी प्रदर्शन पर चर्चा में अग्निवीर योजना तो आएगी ही,जिसे लेकर नाराजगी तो है ही लोगों में, खासकर युवाओं में जो स्थायी नौकरी चाहते हैं। सेना की तरफ से सर्वे के जरिये अग्निवीरों सहित अग्निपथ भर्ती योजना से जुड़े तमाम पक्षों से फीडबैक इकट्ठा किया जा रहा है। ऐसे लोगों में भर्ती प्रक्रिया और ट्रेनिंग से जुड़े अफसर और कमांडर शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, फीडबैक के लिए 10 सवालों का एक फॉर्म सभी के पास भेजा गया है, अग्निवीरों से सेना में भर्ती के लिए उनका मोटिवेशन के साथ साथ ये जानने की भी कोशिश है कि नौकरी के लिए पिछले प्रयास क्या थे? और क्या वे मानते हैं कि स्थाई तौर पर उनको सेना में रख लिया जाये?हो सकता है कि कृषि कानूनों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अग्निवीर योजना वापस ही ले लें।जब से अयोध्या में भाजपा लोकसभा का चुनाव हारी है,तभी से कुछ अंधभक्त अयोध्या की भोली लेकिन जागरूक जनता को बुरा भला कहने में लगे है।ये वो लोग है जो न राम को ठीक से जानते है और न ही अयोध्या को।
दरअसल अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भारतीय जनता पार्टी को अयोध्या में प्रचंड जीत की उम्मीद थी।भाजपा को लगता था कि अयोध्या की वजह से उसे पूरे उत्तर प्रदेश ही नही देशभर में फायदा होगा, लेकिन कैसरगंज और गोंडा सीट को छोड़कर अयोध्या के आसपास भाजपा एक-दो नहीं बल्कि 15 से ज्यादा सीटें हार गई है। फैजाबाद सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद 54,567 वोटों से जीत कर सांसद बने हैं। उन्हें कुल 5,54,289 वोट मिले,जबकि भाजपा के लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट हासिल हुए है। 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के मात्र चार महीने बाद अयोध्या में भाजपा हार गई है।
अयोध्या में भाजपा की हार की वजह जमीन अधिग्रहण और उसके मुआवजे को बताया जा रहा है,साथ ही कई लोगों के घर-दुकान तोड़े गए, जिनका मुआवजा तक नहीं मिल पाया। यही नाराजगी चुनाव परिणाम में साफ नजर आई है, जिसने विपक्ष को भाजपा पर हमला करने का मौका दे दिया और भाजपा अपनी अयोध्या सीट नहीं बचा पाई। फैजाबाद में भाजपा की हार की एक और बड़ी वजह कार्यकर्ताओं की अनदेखी मानी जा रही है। जिसके चलते पार्टी से सच्चिदानंद पांडेय जैसे युवा नेता पार्टी छोड़ गए। चुनाव की घोषणा के 6 दिन पहले 12 मार्च को सच्चिदानंद ने बसपा ज्वॉइन कर ली और उन्होंने भाजपा के वोट में सेंध लगाकर 46,407 वोट पा लिए और अयोध्या में भाजपा की हार का खेल हो गया। फैजाबाद लोकसभा सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र दरियाबाद, बीकापुर, रुदौली, अयोध्या और मिल्कीपुर में से अखिलेश ने दो विधानसभाओं मिल्कीपुर और बीकापुर में रैलियां की थी। यहां उन्होंने जमीन अधिग्रहण, मुआवजे का मुद्दा, युवाओं को नौकरी जैसे मुद्दों को जनता तक पहुंचाया था। यहां इंडिया गठबंधन को शहर से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में वोट मिले है।
बीकापुर क्षेत्र में बीजेपी को 92,859 वोट मिले, वहीं सपा को 1,22,543 वोट मिले है। इंडिया गठबंधन को मिल्कीपुर में 95,612 दरियाबाद में 1,31,177 और रदौली में 1,04,113 वोट मिले है। फैजाबाद की 5 में से 4 ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में इंडिया गठबंधन भाजपा पर हावी रहा और अयोध्या शहर में इंडिया गठबंधन के मुकाबले ज्यादा वोट मिलने पर भी भाजपा फैजाबाद का चुनाव हार गई।फैजाबाद सीट पर अखिलेश यादव ने नया प्रयोग किया था, सामान्य सीट होने के बावजूद सपा ने यहां से अयोध्या की सबसे बड़ी दलित आबादी वाली पासी बिरादरी से अपने सबसे बड़े चेहरे अवधेश प्रसाद को उम्मीदवार बनाया, जिसके बाद यहां नारा चल पड़ा- ‘अयोध्या में न मथुरा न काशी, सिर्फ अवधेश पासी’, इसके अलावा सपा-कांग्रेस गठबंधन भाजपा के वोट बैंक को बांटने में भी कामयाब रहा। इस सीट पर करीब पांच लाख मुस्लिम वोटर हैं, वो भी इंडिया गठबंधन की ओर लामबंद हो गए और इस तरह सपा की जीत हुई। फैजाबाद से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह ने बयान दिया था कि भाजपा को संविधान बदलने के लिए 400 सीट चाहिए। फैजाबाद में 26 फीसदी दलितों को शायद ये रास नहीं आया और भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।
भाजपा ने लल्लू सिंह के बयान से हुए नुकसान को रोकने की भरकस कोशिश की लेकिन नाकाम रही। चित्रकूट लोकसभा सीट में 62 सालों से महिलाओं को कोई अवसर नहीं मिला है। इस बार समाजवादी पार्टी ने कृष्णा पटेल को प्रत्याशी बनाया तो आम मतदाताओं ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाकर संसद भवन तक पहुंचाने का काम किया है। चुनाव जीतने वाली वाली कृष्णा पटेल जिले की दूसरी महिला सांसद होंगी। इससे पहले 1962 में कांग्रेस की सावित्री निगम ने जीत हासिल की थी। 32 चक्रों में हुई मतगणना के बाद जो परिणाम मिले उसके मुताबिक समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार कृष्णा पटेल को 4 लाख 5 हजार 455 वोट मिले, जबकि भाजपा के मौजूदा सांसद और उम्मीदवार आरके पटेल को 3 लाख 34 हजार 400 मत मिले। वहीं बसपा के मयंक द्विवेदी को 2 लाख 45 हजार 26 वोट मिले। कृष्णा पटेल ने भाजपा उम्मीदवार आरके पटेल को 71 हजार 55 वोटों से करारी शिकस्त देकर शानदार जीत हासिल की है। जिस नासिक के पंचवटी में भगवान राम रहे वहां की लोकसभा सीट पर पिछले कई दशक से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टी का ही कब्जा रहा है। साल 1989 में इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।इस 2024 के लोकसभा चुनावों में यह सीट मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना को मिली है। नासिक को शिवसेना का गढ़ माना जाता है।
शिवसेना बनाम शिवसेना की लड़ाई में यहां पर उद्धव ठाकरे भारी पड़े और शिवसेना यूबीटी कैंडिडेट राजाभाऊ वाजे ने हेमंत गोडसे को हराकर जीत हासिल की है। नासिक लोकसभा सीट पर कुल 31 प्रत्याशी मैदान में थे। इसी तरह रामनाथपुरम लोकसभा क्षेत्र में आईयूएमएल के के. नवसकानी विजेता बने हैं। चुनाव आयोग के अनुसार के. नवसकानी ने कुल 509,664 वोटों से जीत हासिल की है। वही रामटेक में कांग्रेस प्रत्याशी श्याम कुमार बरवे विजेता बनकर उभरे हैं, उन्हें 76768 वोटों के अंतर से जीत मिली है।जिससे हम कह सकते है कि इस बार मतदाताओं ने राम मंदिर मुद्दे को चुनावी मुद्दा नहीं बनने दिया बल्कि विकास और जनसमस्याओं के आधार पर यह चुनाव निर्णायक रहा। इस चुनाव पर दुनिया भर के देशों की नज़र थी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में और बड़े बहुमत से लौटने की उम्मीद कर रहे थे।लेकिन कम सीटें आने और भाजपा के बहुमत से दूर रह जाने के कारण अब बीजेपी को अपने घटक दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्णायक तरीके से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण क्या अब भी कर पाएंगे।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की जोड़ी ने भाजपा की उम्मीदों से कहीं ज्यादा सीटें लाकर भाजपा को हैरान कर दिया है। उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट वाराणसी में कांग्रेस नेता अजय राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत मुश्किल कर दी थी। बीजेपी वाराणसी में पहले ऐतिहासिक जीत दर्ज करने का दावा कर रही थी। हालांकि वह चुनाव जीत भी गई लेकिन जीत का मार्जिन 2019 के मुकाबले काफी कम हो गया है। जिस सीट पर भाजपा ने ऐतिहासिक वोटों से जीत दर्ज करने का एक लक्ष्य रखा था, उसे कहीं न कहीं इंडिया गठबंधन ने ध्वस्त कर दिया है। वाराणसी से कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय चुनाव हार गए हैं, लेकिन उन्होंने दो बार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर दी है। मोदी ने सिर्फ डेढ़ लाख वोट से जीत दर्ज की है। 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट से एक तरफ जीत दर्ज करने वाले बीजेपी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को 6 लाख 12 हजार 970 वोट मिले हैं। वहीं कांग्रेस कैंडिडेट अजय राय को 4 लाख 60 हजार 457 वोट मिले हैं। इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार अजय राय वोटिंग शुरू होने के बाद काफी देर तक बीजेपी प्रत्याशी नरेंद्र मोदी से आगे चल रहे थे। काउंटिंग शुरू होने के करीब 2 घंटे तक अजय राय बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन उसके बाद नरेंद्र मोदी ने बढ़त बनाई और बढ़त को बरकरार रखा।
अजय राय मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष है। जब से अजय राय प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, तब से यूपी कांग्रेस में जान आ गई है। यही वजह है कि कांग्रेस ने न केवल वाराणसी में पीएम मोदी को कड़ी टक्कर दी है। वाराणसी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय ने कहा कि सत्ता बल की धौंस और भारी धन बल के निवेश के मुकाबले काशी की महान जनता ने विपुल जन समर्थन का जितना आशीर्वाद मुझे दिया है। वह सत्ता के शीर्ष दुर्ग के खिलाफ मेरी नैतिक जीत है। बाबा विश्वनाथ की कृपा और शिवस्वरूप काशीवासियों से मिले इस प्रेम का मैं जीवन की अंतिम सांस तक ऋणी रहूंगा और मेरा जीवन काशी की सेवा को सतत समर्पित रहेगा। अजय राय ने कहा कि काशी ने मुझे जिस तरह दस लाख पार के दंभी नारे को औंधे मुंह कर भारी जनसमर्थन दिया है। वह मेरी हार में भी जीत है। अजय राय ने कहा कि मैं और इंडिया गठबंधन के हमारे साथी इस लोकतांत्रिक युद्ध में निहत्थे पैदल थे। दूसरी ओर सत्ता की चकाचौंध और संसाधनों का सैलाब था। मंत्रियों से लेकर राज्यपाल तक की फौज मेरे खिलाफ काशी में घर-घर घूम रही थी। धन एवं सत्ता शक्ति के जबरदस्त निवेश के बावजूद संकीर्ण जीत पाने में शीर्ष सत्ता नायक के दांत काशी की जनता ने खट्टे कर दिए।
इंडिया गठबंधन के जांबाज कार्यकर्ता साथियों के साथ वाराणसी की जनता ने मेरा चुनाव खुद को ही अजय राय मानकर लड़ा। उन्होंने कहा कि जनता के इस विश्वास का मैं ऋणी हूं और हर सुख दुख में उनके साथ खड़ा रहूंगा। अजय राय ने आगे कहा है कि हम मां गंगा की संतान हैं और इस चुनाव में मां गंगा का संकेत साफ है कि काशी के सम्मान और हितों के विरुद्ध राजनीति काशी को गंवारा नहीं है। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “यह मोदी की नैतिक हार है,जो हर जगह अपने नाम से वोट मांगते थे, हमने प्रतिकूल माहौल में चुनाव लड़ा है, हमारे बैंक खाते सील कर दिए गए थे, नेताओं को जेल में डाला गया था, शुरू से आखिर तक कांग्रेस पार्टी का कैंपेन सकारात्मक था। हमने महंगाई, रोज़गार जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा।” खडगे ने कहा, “प्रधानमंत्री ने जिस तरह से कैंपेन किया, वह लंबे समय तक याद किया जाएगा।राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा सफल रही। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच झूठ फैलाया है।”
खड़गे ने कहा, “भाजपा ने संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश की है,साथ ही लोगों को धमकाया, नहीं माने तो जेल में डाला और पार्टी भी तोड़ दी। लोगों को पता चल गया था कि अगर मोदी को बहुमत मिला, तो उसका दुरुपयोग होगा। मुझे खुशी है कि भाजपा अब इस षड्यंत्र में सफल नहीं हो पाएगी।” खड़गे ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी समेत देश के करोड़ों कार्यकर्ताओं,इंडिया गठबंधन के सभी साथियों और समर्थकों का शुक्रिया अदा किया है।खडगे ने कहा, “अभी हमारी लड़ाई अंजाम तक नहीं पहुंची है, अभी हमें लोगों के लिए, संविधान की सुरक्षा और विपक्ष के मुद्दों के लिए लड़ते रहना होगा।”
राहुल गांधी ने कहा, “यह लड़ाई संविधान को बचाने की थी।जब इन्होंने बैंक अकाउंट सीज किए, पार्टियां तोड़ीं, तब मेरे माइंड में था कि हिंदुस्तान की जनता एकजुट होकर लड़ जाएगी। संविधान को बचाने का पहला और सबसे बड़ा कदम हमने लिया है।” आप बता दे कि लोकसभा चुनाव में इस बार 64.2 करोड़ लोगों ने वोट किया है। ये अब तक दुनिया के किसी भी देश में होने वाला सबसे अधिक मतदान है। इस चुनाव में 31 करोड़ महिला और 33 करोड़ पुरुषों ने मतदान किया है। लोकसभा चुनाव कराने में करीब चार लाख वाहन, 135 विशेष रेलगाड़ियां और 1,692 हवाई उड़ानों का इस्तेमाल किया गया है। दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया में 68 हजार से अधिक निगरानी दल व डेढ़ करोड़ मतदान और सुरक्षाकर्मी शामिल रहे है।
फिलहाल एनडीए व इंडिया दोनो ही गठबंधन अपनी अपनी बैठके करके भविष्य की रणनीति तैयार कर रहे है। सरकार किसकी बनेगी यह तो अभी तय नही है लेकिन इतना अवश्य है कि लोगो ने मोदी की गारंटी पर पूरा भरोसा नही किया है,तभी तो अबकी बार चार सौ पार का नारा ध्वस्त हो गया और भाजपा अपने गठबंधन दलों के भरोसे चलने पर मजबूर हो गई है।