व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा
इसी को कहते हैं–प्रत्यक्षम् किम प्रमाणम् यानी हाथ कंगन को आरसी क्या? चुनाव प्रचार खत्म हो गया, वोटर अंतिम चरण की सीटों पर वोट डाल रहे थे और मोदी जी मौन रहकर भी इसका डिमॉन्स्ट्रेशन कर रहे थे कि उनकी पिछली पारी में जबर्दस्त विकास हुआ है और वह भी इधर-उधर वाला नहीं, चौतरफा विकास हुआ है, चौतरफा। अब इससे बढक़र चौतरफा विकास क्या होगा कि पांच साल में मोदी जी के ध्यान का लगभग 300 फीसद विकास हो गया है, जी हां 300 फीसद।
पांच साल पहले ताबड़-तोड़ चुनाव सभाएं, रोड शो, वगैरह करने के बाद और विपक्ष को जम कर लताड़ने, फफेड़ने और भंभोड़ने के बाद, जब मोदी जी ने केदारनाथ की रुद्र ध्यान गुफा में जाकर ध्यान लगाया था, ध्यान कुल सत्रह घंटे चला था। लेकिन, पांच साल बाद ही, अब जब उससे भी ज्यादा ताबड़-तोड़ चुनाव सभाएं, रोड शो, वगैरह करने और विपक्ष को और भी जम कर गरियाने, लतियाने और लठियाने के बाद, मोदी ने कन्याकुमारी में विवेकानंद ध्यान मंडपम में जाकर ध्यान लगाया है, ध्यान पूरे पैंतालीस घंटे चला है।
पांच साल में ध्यान ही विकास कर के तीन गुना हो गया। और इतना विकास तो ध्यान का हुआ है, फिर छोटी-मोटी चीजों के विकास का तो कहना ही क्या? और विपक्ष वाले पूछते हैं कि दस साल में क्या विकास हुआ है?
गिनीज बुक वालों से रिकार्ड निकलवा कर देख लीजिए, मजाल है, जो और कोई भी पीएम/ राष्ट्रपति वगैरह, हमारे मोदी जी के आस-पास भी पहुंच जाए। बाकी दुनिया अभी घुटनों चल रही है, जबकि हमारे पीएम जी का योग कुलांचें मारकर आगे बढ़ रहा है। पहले योग और अब ध्यान, और किसी में हो न हो, इनमें विश्व गुरु के आसन पर अपना दावा पक्का है — चार सौ पार की तरह!
हमें पता है, विरोधी योग के इस विकास में भी पख लगाने आ जाएंगे। दुनिया में भारत का डंका बजे, यह इन्हें बर्दाश्त जो नहीं है। और भारत का डंका बजना तो एक बार को इन्हें बर्दाश्त भी हो जाए, मगर मोदी जी के बजाए भारत का डंका बजे, यह इन्हें किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं है। और कुछ नहीं मिला, तो कैमरों का ही सवाल ले आए — ध्यान में कैमरों का क्या काम? पहली बात तो यह है कि अगर उन्होंने मोदी जी के ध्यान करने के वीडियो ध्यान से देखे होंगे, तो उन्हें पता चल गया होगा कि पांच साल में कैमरा कोणों का यानी कैमरों की संख्या का भी समुचित विकास हुआ है। कैमरों की ठीक-ठीक संख्या बताना भले ही राष्ट्रहित में संभव नहीं हो, मगर इतना तो तय है कि रुद्र गुफा वाले ध्यान की तुलना में, विवेकानंद ध्यान मंडपम वाले ध्यान के बीच, दर्ज करने वाले कैमरों की संख्या का भी कई गुना विकास हुआ है। वैसे भी कहां तंग सी गुफा और कहां विशाल मंडपम, ध्यान को दर्ज करने में कैमरों का जबर्दस्त विकास तो होना ही था।
सिर्फ कैमरों का ही क्यों, विकास तो सुरक्षा प्रबंधों समेत हर चीज का ही हुआ है। कन्याकुमारी के साढ़े तीन हजार सुरक्षाकर्मियों के मुकाबले में, केदारनाथ में कितने सुरक्षाकर्मी रहे होंगे। और कन्याकुमारी में मोदी जी के ध्यान की सुरक्षा के लिए समुद्र में जो चार स्तरीय सुरक्षा खड़ी की गयी थी, वैसी सुरक्षा हिमालय के पहाड़ में तो क्या ही खड़ी की गयी होगी। और रही बात उन दुष्ट अधर्मियों की जो इस तरह के सवाल उठा रहे हैं कि ध्यान तो व्यक्ति का चरम एकांतिक मामला है, उसमें कैमरों से लेकर सुरक्षाकर्मियों तक का क्या काम है, वे मोदी जी को जानते ही नहीं हैं। मोदी जी कोई भी काम सिर्फ अपने लिए नहीं करते हैं। जाहिर है कि ध्यान भी वह लोक-कल्याण और देश कल्याण के लिए ही करते हैं। फिर क्यों न उनका ध्यान सामूहिक भी हो। यानी ध्यान में एकांतिकता और सामूहिकता दोनों का योग। कैमराकर्मी कहीं ध्यान लगाए हैं, सुरक्षाकर्मी कहीं ध्यान लगाए हैं, पर सब अलग-अलग ध्यान लगाते हुए भी, एक साथ ध्यान लगाए हुए हैं। यानी मोदी जी ने ध्यान की हमारी प्राचीन परंपरा में भी, सामूहिकता की आधुनिकता का कमाल का तड़का लगा दिया है।
प्राचीन परंपरा में आधुनिकता का तड़का है, इसीलिए विरोधी उसी तरह बेकार के आब्जेक्शन पर आब्जेक्शन उठा-उठाकर थक गए हैं, जैसे चुनाव संहिता के उल्लंघन के लिए मोदी जी और उनके संगियों के खिलाफ शिकायतें कर-कर के थक गए थे ; पर न चुनाव आयोग की नींद खुली और न भक्तों की भक्ति का खुमार उतरने वाला है। विपक्षी पूछ रहे हैं कि मोदी जी उधर ध्यान लगाए हुए हैं, तो इधर ट्विटर उर्फ एक्स पर उनके ट्वीट पर ट्वीट कैसे आ रहे हैं? असली मोदी जी कौन से हैं — ध्यान लगाने वाले या ट्वीट करने वाले? कहीं मोदी जी ध्यान के लिए बॉडी डबल का तो उपयोग नहीं कर रहे हैं? ये लोग क्यों भूल जाते हैं कि मोदी जी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। अब तो उन्होंने अपने मुंंह से भी कह दिया है कि वह हम इंसानों की तरह मां के गर्भ से पैदा नहीं हुए हैं। बल्कि इस मामले में भी तो जबर्दस्त विकास हुआ है, जो विकास के चौतरफापन की हद्द का सूचक है।
पांच साल पहले वाले चुनाव के समय तक मोदी जी को भी लगता था कि वह भी शायद मां के गर्भ से पैदा हुए होंगे। पर इस बार के चुनाव प्रचार तक उन्हें पक्का यकीन हो गया कि वह पैदा नहीं हुए हैं, उन्हें तो भेजा गया है; परमात्मा द्वारा भेजा गया है, अपने आदेश पूरे करने के लिए। एक पांच साला ध्यान से दूसरे के बीच, बंदा रूपांतरित होकर, परमात्मा का दूत बन गया और विरोधी हैं कि उसे इंसानों वाली सीमाओं में बांधने की कोशिश कर रहे हैं — मोदी अगर ध्यान कर रहा है, तो मोदी ट्वीट कैसे कर रहा है! परमात्मा का दूत क्या दो-चार काम भी एक साथ नहीं कर सकता है! हमारे यहां देवी-देवताओं के इतने सारे हाथ सिर्फ शो के लिए बनाए जाते हैं क्या? हमारे यहां तो सिर तक एक से ज्यादा लगाए जाते हैं, रावण के ही नहीं, ब्रह्मा-विष्णु-महेश की त्रिमूर्ति के भी।
इन विरोधियों की तुच्छता देखिए। कहां मोदी जी देश को आध्यात्म की ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं और कहां विरोधी पूछ रहे हैं कि ध्यान के पैंतालीस घंटे में मोदी जी ऑन ड्यूटी माने जाएंगे या छुट्टी पर? मोदी जी छुट्टी तो कभी लेते नहीं हैं, तब ध्यान के बीच ड्यूटी कैसे बजा रहे हैं? यानी देश की सुरक्षा, एटमी बटन, वगैरह। सिंपल है — जैसे समय-समय पर ट्वीट कर रहे हैं, वैसे ही, और क्या? खैर, विपक्ष वालों को तो मोदी जी किसी गिनती में लेते ही नहीं हैं, पर पब्लिक को ध्यानस्थ मोदी जी ने टीवी पर साफ-साफ चेता दिया है। चुनाव के नाम पर परमात्मा के आदेश के खिलाफ जाने का पाप हर्गिज नहीं करे। सीधे परमात्मा का आदेश है कि मोदी जी 2047 तक विकसित भारत के लिए काम करते रहें। तब तक मोदी जी के रहने की परमात्मा की गारंटी है। अब बस पब्लिक को मोदी जी के 2047 तक गद्दी पर रहने की गारंटी करनी है। मोदी जी को अपने लिए कुछ नहीं चाहिए, वह तो सिर्फ परमात्मा के दूत हैं ; यह तो ईश्वरीय आदेश है जी, जो नहीं मानेगा, सीधे ईश्वर के कोप को न्यौता देगा।
*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)*