भारतीय ज्ञान परंपरा परंपरा अतुलनीय है : प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल

वैज्ञानिक अवधारणा युक्त भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रम का निर्माण पूर्णतया राष्ट्र एवं सामाजिक हित में उपयोगी।डी ए वी (पीजी) कॉलेज, देहरादून के ठाकुर पूरन सिंह नेगी मेमोरियल ओएनजीसी ऑडिटोरियम में भारतीय ज्ञान प्रणाली और भविष्य की संभावनाएं विषय के ऊपर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ दून विश्वविद्यालय देहरादून की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल, एसपीजी ओएनजीसी के सचिव श्री एस के शर्मा, एसपीजी ओएनजीसी के श्री ए के नौरियाल, यू कोस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत, दून विश्वविद्यालय प्रबंध संकाय के संकयाध्यक्ष प्रोफेसर एच सी पुरोहित, प्राचार्य प्रोफेसर सुनील कुमार तथा आयोजन सचिव डॉ रवि शरण दीक्षित, संयोजक डॉक्टर गुंजन पुरोहित के द्वारा दीप प्रज्वलन करके किया गया।

मुख्य अतिथि दून विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि पूरे विश्व में भारत की ज्ञान परंपरा के महत्व को पहचाना जा रहा है और वर्तमान में भी यह देखा गया है कि वैज्ञानिक आधार पर जो बातें पश्चिमी वैज्ञानिकों ने कही है वह हमारी प्राचीन संस्कृति में भी वर्णित है l प्रोफेसर डंगवाल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को लेकर डीएवी कालेज ने जो कदम उठाया है वह प्रसंशनीय है, प्रदेश में नई शिक्षा नीति को आगे बढ़ाने के लिये यह एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाएगा। इसके लिये पाठ्यक्रम निर्माण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि यूकोस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने अपने वक्तव्य ने कहा इंडियन नॉलेज सिस्टम के महत्व ने पूरी दुनिया को सजक कर दिया है इस कांफ्रेंस के प्रकाशित शोध पत्रों से निश्चित भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए एक आधारभूत संरचना तैयार की जाएगीl
विशिष्ट अतिथि एस पी जी ओएनजीसी के सचिव डॉ एस के शर्मा ने कहा कि छात्र के रूप में उन्होंने इस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की है, के साथ यह भी उन्होंने अपने वक्तव्य में कहां की वैज्ञानिक छात्र-छात्राएं ओएनजीसी का भी सहयोग ले सकते हैंl विशिष्ट अतिथि एस पी जी ओएनजीसी के उपाध्यक्ष डॉ ए के नौरियल ने अपने वक्तव्य में कहा कि. वैज्ञानिक की तरीकों से किया जा रहे शोध और भारतीय को जोड़कर देखने की आवश्यकता हैl मुख्य वक्ता के रूप में दून विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एच सी पुरोहित ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक समाज आज इस बात से सहमत है कि भारतीय ज्ञान परंपरा एक पुरानी विरासत है जिस पर विस्तार से अध्ययन एवं शोध की आवश्यकता है, इसी ज्ञान परंपरा के आधार पर वैश्विक स्तर पर शांति, सद्भाव एवं भाईचारा स्थापित करने की दिशा में सहायता मिलेगी।
कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर सुनील कुमार ने संबोधित करते कॉलेज की प्रगति यात्रा का वर्णन करते हुए महाविद्यालय ककी ऐतिहासिक उपलब्धियां पर प्रकाश डालते हुए संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया। डॉ गुंजन पुरोहित डॉ रवि शरण दीक्षित तथा आयोजन समिति को बहुत-बहुत शुभकामनाएं दी। कॉलेज के डॉ प्रदीप कोठियाल ने अपने वक्तव्य में सभी का बहुत धन्यवाद व्यक्ति करते हुए प्रथम सत्र को समापन किया l आयोजन सचिव डॉ आर एस दीक्षित ने देश के कई हिस्से से आए प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया और कहा कि निश्चित ही इस संगोष्ठी के ज्ञान परंपरा को वह देश और प्रदेश में आगे बढ़ाएंगे l संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन प्रोफेसर वी चौरसिया द्वारा किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में वाडिया संस्थान के प्रोफेसर शर्मा सहित शिक्षकों तथा शिक्षिकाओं ने अपने शोध पत्र पढ़े l संगोष्ठी के द्वितीय सत्र का संचालन प्रोफेसर गीतांजलि तिवारी द्वारा किया गया गुप्ता द्वारा अपना मुख्य वक्तव्य दिया गया इस सत्र में 17 से भी ज्यादा शोध पत्र पढ़े गए l प्रथम दिन के कुल शोध पत्रों की संख्या 47 रही l
संगोष्ठी में डॉ प्रदीप कोठियाल ने आए हुए सभी मेहमानों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में इस अवसर पर कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक एसजीआरआर कॉलेज के प्राचार्य डॉ प्रदीप सिंह जी, डॉ वी के दीक्षित , डॉ रमाकांत श्रीवास्तव,प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक, भगवती प्रसाद राघव जी, डॉ अंजलि वर्मा, डॉ प्रशांत सिंह, डॉ डंग, डॉ कौशल, डॉ अतुल सिंह , प्रोफेसर देवना शर्मा, डॉ पारूल दिक्षित, डॉ हरी ओम, डॉ पीयूष, डॉ पाठक,डॉ सत्यम, शाहिद बड़ी संख्या में शिक्षक तथा शोधार्थी उपस्थित रहे।

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