-ममता सिंह, पूर्वोत्तर मामलों की जानकार
पूर्वोत्तर का सियासी मिजाज देश के अन्य भागों से एकदम अलग रहा है। यहां का राजनीतिक गणित भी यहां की घुमावदार पहाड़ियों और घाटियों जितना ही जटिल है। इसका एक बड़ा कारण यहां के 250 से ज्यादा जनजातीय समूह, हर समूह की खास पहचान, और अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने की जद्दोजहद रहा है। जहां देश के अन्य हिस्सों में जातिगत समीकरण के आधार पर चुनाव लड़े जाते हैं, वहीं पूर्वोत्तर में जनजातीय पहचान आधारित राजनीति का चलन रहा है। लेकिन 2014 के बाद यहां की राजनीति ने भी एक नई करवट लेनी शुरू की। लुक इस्ट से आगे बढ़कर एक्ट ईस्ट का विजन लेकर मोदी सरकार ने इन राज्यों को प्राथमिकता में रखकर करोड़ों-अरबों की धनराशि से आधारभूत ढ़ाचे में अभूतपूर्व बदलाव लाते हुए कई ऐतिहासिक विकास कार्यों की शुरूआत की। जिसका परिणाम रहा कि आजादी के बाद दशकों बाद यहां भाजपा या भाजपा समर्थित सरकारें हैं। उक्त बातों से इतर इस बार जो नई बात असम के परिप्रेक्ष्य में साफतौर पर देखने को मिल रही है वो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार या सीएए का विरोध नहीं, बल्कि परिसीमन है। जी हां, परिसीमन ने यहां कांग्रेस का गढ़ रहे संसदीय सीटों पर सीधे तौर पर असर डाला है जिससे सर्वाधिक मुश्किल पूर्व मुख्यमंत्री तरूण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
वैसे देशभर में लोकसभा चुनाव 2024 कुल 7 चरणों में पूरा होगा जिसमें पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को और आखिरी चरण की वोटिंग 1 जून को। विशेष तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल, नगालैंड, सिक्किम की बात करें तो यहां के अधिकतर राज्यों में पहले दो चरणों में ही वोटिंग हो जाएगी। पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में से असम में लोकसभा की सबसे ज्यादा यानी कुल 14 सीटें हैं। यानी असम महासमर का बड़ा मैदान है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा ने नौ सीटें जीती थीं, वहां परिसीमन के बाद सामाजिक-जातिगत समीकरणों के साथ कुल 14 संसदीय सीटों की चैसर भी बदल चुकी है।
इस बार भगवा खेमे ने पूर्वोत्तर
राज्यों की 25 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और यह तभी हासिल किया जा सकता है जब बीजेपी असम में 12-13 सीटें जीत ले। हालांकि, लंबे समय से असम के मुख्यमंत्री उक्त लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं।
इसके अलावा मणिपुर, मेघालय, अरूणाचल और त्रिपुरा की दो-दो सीटों, सिक्किम, मिजोरम और नागालैंड की एक-एक सीटों पर चुनाव कई चरणों में होने हैं। इसके तहत असम में 19 अप्रैल और 7 मई को चुनाव होंगे, अरुणाचल प्रदेश में 19 अप्रैल को, मणिपुर में 19 अप्रैल और 26 अप्रैल, मेघालय-मिजोरम-नागालैंड और सिक्किम में 19 अप्रैल को, त्रिपुरा में 19 और 26 अप्रैल को वोट पड़ेंगे। साथ ही, अरुणाचल और सिक्किम में भी साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं।
चूंकि, यहां विधानसभा चुनाव का कार्यकाल 2 जून 2024 को समाप्त हो रहा है, इसी कारण यहां वोटों की गिनती दो दिन पहले यानी 2 जून को होगी, जबकि लोकसभा चुनाव की मतगणना तय तारीख यानी 4 जून को होगी। यह बात भी काबिले गौर है कि भाजपा मणिपुर, मेघालय और नगालैंड में लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी से उम्मीदवार नहीं उतारेगी। भाजपा ने फैसला किया है कि इन राज्यों की रीजनल पार्टियों को अपना समर्थन देगी। इन तीनों राज्यों की 5 सीटों पर 19 अप्रैल को वोटिंग होने हैं।
असम में परिसीमन का खेला
भाजपा, कांग्रेस, असम गण परिषद (अगप) और आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल हैं। इस बार लोकसभा चुनाव सात चरणों में होंगे। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होगा। चार जून को परिणामों की घोषणा होगी। यहां कुल 96.8 करोड़ मतदाता हैं। यहां 14 लोकसभा सीटों हैं जिसमें से 11 पर भाजपा और 12 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा ने नौ सीटें जीती थीं, वहां परिसीमन के बाद सामाजिक-जातिगत समीकरणों के साथ कुल 14 संसदीय सीटों की चैसर भी बदल चुकी है। वैसे गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ और जोरहाट उन नौ प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में से हैं, जिन पर असम में आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान फोकस रहेगा। वर्तमान में असम में पूर्वोत्तर के चाणक्य कहे जाने वाले, भाजपा के प्रखर राष्ट्रवादी और हिंदुत्व चेहरा बने हिमंता ।
विश्वशर्मा की अगुआई में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट यानी बीपीएफ और असम गण परिषद यानी अगप का कोई उम्मीदवार नहीं जीत पाया था। लेकिन असम में 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा, अगप और बीपीएफ ने मिलकर चुनाव लड़ा और साल 2001 से असम की सत्ता पर लगातार काबिज कांग्रेस को हराया था। और माजुली के पूर्व विधायक और वर्तमान केंद्रीय मंत्री सबार्नंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने। मौजूदा समय में पूर्वोत्तर के मिजोरम राज्य को छोड़कर अन्य सात राज्यों में या तो भाजपा की सरकार है या उसके सहयोगी नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस यानी नेडा की।
असम में 2024 का लोकसभा चुनाव इन मायनों में अलग है कि यहां संसदीय और विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद होने वाला यह पहला चुनाव है. असम में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन सीटों की संख्या पहले जितनी ही है, क्रमश: 14 और 126, लेकिन सीमा, आबादी का स्वरूप और स्थानीय शक्ति समीकरणों के हिसाब से बड़े बदलाव हो गए हैं। मालूम हो कि पिछले लोकसभा चुनावों में, असम में कांग्रेस के तीन उम्मीदवार, नागांव से प्रद्युत बोरदोलोई, कलियाबोर से गौरव गोगोई और बरपेटा निर्वाचन क्षेत्र से अब्दुल खालिक जीते थे। परिसीमन के बाद तीनों संसदीय क्षेत्रों में काफी बदलाव हो गया है। सबसे बड़ी बात कि परिसीमन प्रक्रिया के बाद गोगोई का कलियाबोर निर्वाचन क्षेत्र अब अस्तित्व में ही नहीं है। यानी मतदाताओं की बदली हुई जनसांख्यिकी के साथ अब एक नई काजीरंगा लोकसभा सीट है। यानी इस सीट के कई हिस्से नवसृजित काजीरंगा सीट में मिला दिए गए हैं तो कुछ क्षेत्र नौगांव लोकसभा सीट में मिल गए। इसमें वह क्षेत्र भी था, जो कलियाबोर लोकसभा सीट पर कांग्रेस को अप्रत्याशित बढ़त दिलाता था।
जयप्रिय गौरव का संकट बढ़ा!
परिसीमन के बाद गोगोई का कलियाबोर निर्वाचन क्षेत्र अब अस्तित्व में ही नहीं है। ऐसे में निवर्तमान संसद में विपक्ष के उपनेता गौरव गोगोई ने जोरहाट सीट से दावेदारी प्रस्तुत की है, जहां उनका मुकाबला भाजपा सांसद टॉपोन कुमार गोगोई के साथ है। ऐसे में नि:संदेह गौरव की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जहां एक ओर परिसीमन को लेकर भाजपा खेमे में उत्साह देखा जा रहा है। भाजपा नेताओं का मानना है कि वे नई सीट आसानी से जीत सकते हैं और गौरव गोगोई के वहां जीतने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन जानकार बताते हैं कि साफ सुथरी छवि वाले और संसद में क्षेत्र की समस्याओं पर बेबाक बोलने वाले गौरव जनप्रिय नेता हैं और परिसीमन जैसी अग्नि परीक्षा को भी वो आसानी से पार कर लेंगे। ऐसे ही बदलाव से बरपेटा सीट भी प्रभावित हुई है। 70-80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले बरपेटा के कुछ विधानसभा क्षेत्रों को अब धुबरी सीट में मिला दिया गया है। दूसरी तरफ बरपेटा में ऐसे क्षेत्र शामिल हो गए हैं, जहां असमिया आबादी अधिक है, जिसका झुकाव बीते चुनावों में भाजपा-एजीपी गठबंधन की ओर दिखाई दिया है। सिलचर, सोनितपुर (पूर्व में तेजपुर), दीफू (पूर्व में स्वायत्त जिला), लखीमपुर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट जैसी सीटों में ज्यादा बदलाव नहीं किया गया है। हां, सिलचर को सुरक्षित सीट जरूर बना दिया गया है।
11 पर भाजपा और 12 पर कांग्रेस मैदान में
असम में इस बार भाजपा 11 पर, एजीपी दो पर लड़ेगी, जबकि राजग में शामिल नई पार्टी यूपीपीएल के लिए एक सीट छोड़ी है। वहीं, कांग्रेस ने 12 सीटों पर लड़ने का निर्णय किया है। डिब्रूगढ़ एजेपी को दी है, जबकि लखीमपुर अभी होल्ड पर है (खबर लिखे जाने तक )। यहां मैदान में कूद पड़ी टीएमसी, आम आदर्मी पार्टी और सीपीआई (एम) ने कांग्रेस और एआइयूडीएफ के समीकरणों पर घात लगा दी है।
अजमल की तगड़ी घेराबंदी
धुबरी लोकसभा सीट से तीन बार चुनाव जीत चुके बदरुद्दीन अजमल फिर से चुनाव मैदान में हैं। लेकिन परिसीमन और उनके सामने खड़े भाजपा उम्मीदवार एवं पूर्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रॉकीबुल हुसैन उनकी एकतरफा जीत की राह में रोड़ा बन गए हैं। मूल रूप से परफ्यूम कारोबारी रहे बदरुद्दीन अजमल विधायक भी रह चुके हैं। अपने बयानों से विवादों में रहने वाले अजमल ने जनवरी में मुसलमानों राम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान ट्रेन से यात्रा न करने की सलाह दी थी। साथ ही, वे मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सरकार के फैसलों पर लगातार मुखर रहे हैं। असम सरकार ने बहुविवाह और लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने का वादा किया था। फरवरी के विधानसभा सभा में बाल विवाह के खिलाफ कानून पारित किया जा चुका है। अब सरकार ,क से ज्यादा शादी करने वालों के खिलाफ कानून बनाने जा रही है। साथ ही, एनआरसी और सीएए, जैसे कानून भी हैं जिनको लेकर अक्सर अजमल प्रतिक्रिया देकर सुर्खियां बटोरते रहते हैं। मालूम हो कि कश्मीर के बाद आबादी में सबसे ज्यादा मुस्लिम हिस्सेदारी वाले राज्य असम ही है। इसलिए यहां नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन यानी एनआरसी ज्वलंत मुद्दा रहा है। वैसे एआईयूडीएफ का असम के कुछ जिलों में खासा जनाधार है। असम की कुल जनसंख्या में मुस्लिम आबादी 33 फीसद से ज्यादा है। मौजूदा समय में असम के 33 जिलों में, 9 से बढ़कर 14 जिले ऐसे हो गए हैं, जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। लेकिन परिसीमन के बाद, धुबरी संसदीय सीट के पहले के इलाकों को बरकरार रखा गया है, लेकिन इसमें कुछ नए इलाकों को शामिल किया गया है, जिसमें ज्यादातर पुरानी बरपेटा सीट से हैं। इसके साथ ही तीन बार से यहां से जीत रहे एआईयूडीएफ प्रमुख बदरुद्दीन के सामने कांग्रेस की तरह एनडीए ने भी यहां से मुस्लिम प्रत्याशी लड़ा रहा है। ऐसे में निश्चित तौर पर अजमल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लेकिन पहले धुबरी समेत करीमगंज, कोकराझार और बरपेटा सीट भाजपा के विरोधी दलों के लिए तुलनात्मक रूप से सुरक्षित मानी जा रही थीं। लेकिन इस बार समीकरण बदले हैं। इसके अलावा कोकराझार, बरपेटा, लखीमपुर और सिलचर पर तृणमूल कांग्रेस भी मैदान में है। बरपेटा से सीपीआई (एम) भी मैदान में है। इसी तरह तीन प्रत्याशी पहले घोषित कर चुकी आम आदमी पार्टी ने आईएनडीआईए के लिए गुवाहाटी से प्रत्याशी वापस ले लिया है, लेकिन अब वह डिब्रूगढ़ और सोनितपुर पर दावा कर रही है।
डिब्रूगढ़ बनी हॉट सीट
केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल के मैदान में आने से डिब्रूगढ़ निर्वाचन सीट हॉट सीट हो गई है। यहां दो बार के भाजपा ने मौजूदा सांसद तेली और केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली की जगह सोनोवाल को मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला असम जातीय परिषद के अध्यक्ष और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार लुरिनज्योति गोगोई से है।
केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री, आयुष मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल आज सिर्फ असम का चेहरा नहीं हैं, बल्कि केंद्र में अहम विभागों को संभालते हुए उन्होंने जो काम किया है, उससे उनकी छवि पूर्वोत्तर के अन्य सांसदों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर हुई है। पिछले दिनों भारत के पहले कोचीन शिपयार्ड द्वारा विकसित एएसटीडीएस टग (बड़े जहाजों को खींचने वाली छोटी नाव) ओशन ग्रेस और एक मेडिकल मोबाइल यूनिट का उद्घाटन किया जो समुद्री इंजीनियरिंग की बेहतरीन देन है। साथ ही, सामुदायिक कल्याण के लिए बंदरगाह के समर्पण को रेखांकित करता है। इस तरह चाहे शिपिंग हो या आयुष, दोनों ही विभागों में कई बड़े कार्य हुए हैं जो उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
एक बेहद गरीब परिवार से आने वाले सर्बानंद असम की बाढ़ की पीड़ा को करीब से देखा। यही वजह रही कि उन्होंने बाढ़ और भू कटाव से हर साल डूब रही माजुली को अपना विधानसभा क्षेत्र चुना, चुनाव लड़ा और जीते। इस तरह वे 24 मई 2016 को असम में भाजपा के पहले और सोनोवाल कछारी जनजाति से दूसरे मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने माजुली को भारत का पहला नदी द्वीप जिला बनाया और बाढ़-भूकटाव रोकने की दिशा में कई कदम उठाए और एक विकास सम्मत पर्यावर्णीय प्रोटोकाल भी बनाया। यह बात भी काबिलेगौर है कि पीएम मोदी एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जो पहली बार सर्बानंद के चुनावी प्रचार के लिए माजुली आए थे। साफ-सुथरी छवि वाले बेहद शांत और मुदुभाषी सोनोवाल पीएम मोदी के सबसे पसंदीदा सांसदों में से एक माने जाते हैं।
असम गण परिषद छोड़ने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए सर्बानंद ने असम में बीजेपी के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का नेतृत्व किया था और पहली बार ऐसा हुआ कि असम में 7 सीटें भाजपा की झोली में आईं। इस बार केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल डिब्रूगढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में मजबूत दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं।