बेड़ो । रांची जिले के बेड़ो प्रखंड मुख्यालय स्थित ऐतेहासिक महादानी बाबा मंदिर शिव आस्था व विश्वास का बड़ा केंद्र है। इस ऐतेहासिक मंदिर के बारे में झारखंड के लोगों को बहुत कम जानकारी है। इसका निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। वही कुछ इतिहासकारों के अनुसार 1048 से 1100 ईसवी के बीच महादानी मंदिर की रचना हुई। भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की अनुकृति में बना महादानी मंदिर में द्रविड़ व नागर शैली का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। पौराणिक कथा व दंत कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने खुद अपने हाथों से महादानी मंदिर की रचना की है। पुरातत्वविदों के शोध पत्र में महादानी मंदिर का निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल के शासन काल के दौरान बताया गया है। वही बेड़ो कॉलेज के इतिहास विभाग के विद्वानों ने भी मंदिर की रचना पाल वंश के समय की बताते है। जबकी यह आज भी शोध का विषय बना हुआ है। यहां जनजातीय समुदाय के द्वारा आदि देव महादेव शिव की पूजा और संबंधित परंपराओं का इतिहास है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां का पुजारी कोई पंडित न होकर गांव का पाहन है। जो आज भी आदिवासियों व स्थानीय लोगों के बीच महादानी मंदिर के प्रति आस्था व विश्वास कायम है। यहां प्रत्येक वर्ष महादानी मंदिर में शिव को नए चावल से बने पीठा का भोग चढ़ाकर ही लोग नई फसल का उपयोग करते हैं। जहां आज भी जनजातिय समुदाय का आस्था व विश्वास इस मंदिर से जुड़ा है। प्रत्येक वर्ष यहां हड़बोड़ी बूढ़ा जतरा का आयोजन होता है। इस दौरान हड़बोड़ी की परंपरा अनुसार पूजा अर्चना व पारंपरिक समाजिक नियम की अदायगी के बाद गांव के पहान की अगुवाई में ढ़ोल, ढाक, मांदर,नगाड़ा,झंडा व दीप कलश के साथ शाम के समय में एक शोभायात्रा निकाली जाती है। जो आज भी प्रासंगिक है। हड़बोड़ी जतरा के पूर्व बेड़ो में घर-घर परंपरा के अनुसार लड्डू के नाम से नए चावल से पीठा बनाकर देवी- देवताओं को भोग लगाया जाता है। गांव के सभी लोग महादानी मंदिर में गोयंदा व गोयंदी यानी शिव-पार्वती के नाम से मंदिर में महादानी बाबा को नए चावल से बने पीठा का भोग चढ़ाते है।इसके बाद ही नई फसल का उपयोग करते हैं। इतिहासकारों और पुरातत्व विभाग के लोगों ने अपनी जांच में आधिकारिक तौर पर स्थापित किया है कि यह क्षेत्र सदियों से शिव आराधना का बड़ा केंद्र था। सावन में पूरे एक महीने तक श्रृंगार पूजा के अलावे,दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, रामनवमी,हड़बोड़ी जतरा के मौके पर इस शिवालय में शिव भगवान की आस्था की बयार बहती है।इधर एक मान्यता यह भी है कि जनजातिय समुदायों का दल आखेट के दौरान यहां रात्रि में विश्राम किया था। और इस जगह का नामकरण किया गया।मुंडारी भाषा में बेड़ा का अर्थ सूर्य होता है। सूर्याेदय होने के बाद घनी जंगलों व झाड़ियों के बीच इन्होने इस जगह को देखा। इसीलिए इस क्षेत्र का नाम कालान्तर में बेड़ा यानि सुर्यादय के कारण धीरे-धीरे यह बेड़ो हो गया। वहीं महादानी मंदिर के शिवलिंग में चढ़ने वाले जल, दुध, फल फूल व अन्य पूजन सामग्री बहते हुए उत्तर की ओर स्थित डुकु तलाब में प्रवाहित होता था। लेकिन कलान्तर में मानवीय हस्तक्षेप के बाद यह श्रोत बंद हो गया।
मन्नतें पूरी करते हैं महादानी बाबा
महादानी बाबा मंदिर शिव भक्ति का बड़ा केंद्र है। आज भी यह मंदिर भगवान भोलेनाथ के प्रति आस्था व श्रद्धा की मिसाल है। यह झारखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।इस मंदिर में शिवरात्रि व सावन के मौके पर बाबा भोले के दर्शनों के लिए भक्तगणों का तांता लगा रहता है। झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों से भी लोग इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते हैं। भक्तगणों का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नत बाबा पूरी करते हैं। वहीं मंदिर परिसर में स्थापित मां पार्वती,बजरंगबली व मां संतोषी की मंदिर है।और मां दुर्गा की भव्य मंदिर अभी बन रहा है।साथ ही विशालकाय बरगद,पीपल व करम पेड़ के अलावा बहुत सारे फल फूल के अशोधीय पेड़ अत्यंत ही मनोरम है। वहीं इस मंदिर के नाम महादानी के नामकरण के पीछे लोक आस्था का पुट छिपा हुआ है। मान्यता व दंतकथा के अनुसार भगवान शंकर के दरबार में मन्नत मांगने पर मंदिर के मुहाने पर याचक को स्वंय बाबा भोलेनाथ की ओर से दिया जाता था। रात में मांगने पर सुबह में घरेलू सामग्री मंदिर परिसर में रखा हुआ रहता था। इसलिए कालान्तर में इस मंदिर का नाम महादानी पड़ा। वहीं यह भी चर्चा है कि एक आदमी द्वारा मन्नत मांगने, काम चलाने व सक्षम हो जाने के बावजूद जब इसे वापस नहीं किया गया। तब उस समय से यह परंपरा बंद हो गई। इसके बाद भी पूरी भक्ति भावना के साथ पूजा अर्चना के बाद मन्नत मांगने से महादानी बाबा अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। यहां मात्था टेकने और बाबा का आर्शीवाद पाने के बाद महादानी के दरबार से कोई निराश होकर नहीं लौटता है।