उत्तराखंड में यूसीसी को पारित करने के बाद ये कहना कि पूरे राज्य में सब लोगों पर विवाह, तलाक और उत्तराधिकार संबंधी एक समान कानून लागू होगा, बेमानी लगता है। ये नियम राज्य के चार फीसदी आदिवासी जनजाति के लोगों पर लागू नहीं होगा। गौरतलब बात ये है कि इन जनजातियों में बहु विवाह प्रथा भी मौजूद है..
धर्मपाल धनखड़
उत्तराखंड सरकार (Government of Uttarakhand)विधानसभा में बहुमत के चलते बिना चर्चा के समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करवाने में सफल रही। यहां तक कि प्रतिपक्ष की इस विधेयक को विस्तृत अध्ययन के लिए प्रवर समिति को सौंपने की मांग को भी दरकिनार कर दिया गया। राज्यपाल और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जायेगा। हालांकि गोवा में समान नागरिक संहिता तब से लागू है, जब वो पुर्तगाल के आधीन था। 1961 में आजादी मिलने के बाद वहां समान नागरिक संहिता कानून को बदलने की जरूरत नहीं समझी गयी।
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता विधेयक का मसौदा सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित पैनल की रिपोर्ट के आधार पर बनाया है। देश में समान नागरिक संहिता लागू करना केंद्र का विषय है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत समान नागरिक संहिता के बारे बताया गया है। इसके मुताबिक राज्य से सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करने का लक्ष्य हासिल करने की अपेक्षा की गयी है।
उधर, केंद्र सरकार के निर्देश पर भारत का विधि आयोग समान नागरिक संहिता को लेकर सभी हितधारकों से चर्चा कर रहा है। आयोग को इस बारे में 75 लाख से ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिली है। अब सवाल ये उठता है कि जब केंद्र सरकार सारे देश के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की प्रक्रिया चला रही है, तो उत्तराखंड सरकार को इतनी जल्दी क्यों है? इसके जरिये क्या हासिल करना चाहती है! सही मायने में देखा जाये, तो उत्तराखंड में बीजेपी ने समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करवाकर एक प्रयोग किया है। चूंकि उत्तराखंड हिंदू बहुल राज्य है। यहां मुस्लिम आबादी मात्र 13 फीसदी है। विरोध की गुंजाइश काफी कम थी। लेकिन इस प्रयोग के परिणाम भी राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय की प्रतिक्रिया के रूप में आने शुरू हो गये हैं। हल्द्वानी की हिंसक घटनाओं को भी इसी आलोक में देखा जा रहा है।
इस विधेयक को पारित करने के बाद ये कहना कि पूरे राज्य में सब लोगों पर विवाह, तलाक और उत्तराधिकार संबंधी एक समान कानून लागू होगा, बेमानी लगता है। ये नियम राज्य के चार फीसदी आदिवासी जनजाति के लोगों पर लागू नहीं होगा। गौरतलब बात ये है कि इन जनजातियों में बहु विवाह प्रथा भी मौजूद है। सरकार ने खुद विधेयक की खामियों को स्वीकार किया है। ऐसे में इसे जल्दबाजी में पारित करने से सरकार की मंशा पर सवाल उठने लाजिमी है। इसके लागू होने से धार्मिक रीति से विवाह के बाद उसका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा। इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं है। विधेयक में नयी बात ये है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को घोषणा करना अनिवार्य होगा। साथ ही इससे पैदा हुए बच्चे वैध माने जायेंगे।
वास्तविकता तो ये है कि लिव इन रिलेशनशिप को लोग छुपाते हैं, बताते नहीं। और यदि घोषणा करना ही अनिवार्य होगा, तो फिर शादी और लिव इन रिलेशनशिप में अंतर क्या रह गया! राष्ट्रीय फलक पर देखा जाये तो अल्पसंख्यकों के साथ साथ तीस से ज्यादा आदिवासी जनजाति समूहों ने समान नागरिक संहिता का विरोध किया है। इसके अलावा सिखों के लिए आनंद कारज मैरिज एक्ट लागू है। उसका क्या होगा! पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के सर्वखाप पंचायतों के प्रभाव क्षेत्र के लोग एक गांव और एक गौत्र में शादी के विरुद्ध हैं। खाप पंचायतें लंबे समय से हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन की मांग करती आ रही हैं। ऐसे में देखा जाये तो ये कानून भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने के विरुद्ध है। और यदि आदिवासी समूहों की तरह कुछ अन्य समूहों को भी इस कानून में छूट दी जाती है, तो फिर समान नागरिक संहिता का औचित्य ही क्या रह जायेगा!
21वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है। लेकिन समान नागरिक संहिता लागू करना बीजेपी और आर एस एस के सबसे पुराने एजेंडों में से एक है। इसलिए केंद्र की मोदी सरकार ने 22 वें विधि आयोग को इसके लिए रायशुमारी करके मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। उसकी रिपोर्ट भी जल्द आ जायेगी। लेकिन इस बीच उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करवाने के प्रयोग से ये तो साबित हो गया है कि ये मुद्दा चुनाव में बहुसंख्यक हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण में कारगर साबित होगा। इसलिए मार्च-अप्रैल में होने वाले आम चुनाव में सत्ता पक्ष राम मंदिर, धारा 370 समाप्त करने और सीएए जैसे मुद्दों के साथ यूसीसी के मुद्दे को भी भुनाने की तैयारी में है।