अबू धाबी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को स्वामीनारायण संप्रदाय के पदाधिकारियों की उपस्थिति में मंत्रोच्चार के बीच अबू धाबी के पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन किया। हल्के गुलाबी रंग का रेशमी कुर्ता पजामा, बिना बांह वाली जैकेट और पटका पहने हुए प्रधानमंत्री ने मंदिर के लोकार्पण समारोह में पूजा विधि में भाग लिया।
प्रधानमंत्री ने वैश्विक आरती में भी भाग लिया जो बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) द्वारा दुनियाभर में बने स्वामीनारायण संप्रदाय के 1200 से अधिक मंदिरों में एक साथ आयोजित की गई। इससे पहले मोदी ने यहां पहले हिंदू मंदिर के निर्माण में योगदान देने वाले विभिन्न संप्रदायों के लोगों से मुलाकात की।
दुबई-अबू धाबी शेख जायद राजमार्ग पर अल राहबा के पास 27 एकड़ क्षेत्र में करीब 700 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए मंदिर के उद्घाटन की प्रक्रिया शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री ने मंदिर में कृत्रिम रूप से तैयार की गईं गंगा और यमुना नदियों में जलार्पण भी किया। मंदिर अधिकारियों के अनुसार शिल्प और स्थापत्य शास्त्रों एवं हिंदू ग्रंथों में उल्लेखित निर्माण की प्राचीन शैली के अनुसार भव्य मंदिर बनाया गया है।
बीएपीएस के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने कहा, ह्यह्ययहां वास्तुशिल्प पद्धतियों को वैज्ञानिक तकनीकों के साथ जोड़ा गया है। तापमान, दबाव और गति (भूकंपीय गतिविधि) को मापने के लिए मंदिर के हर स्तर पर 300 से अधिक उच्च तकनीक वाले सेंसर लगाए गए हैं। सेंसर अनुसंधान के लिए लाइव डेटा प्रदान करेंगे। यदि क्षेत्र में कोई भूकंप आता है तो मंदिर इसका पता लगा लेगा और हम अध्ययन कर सकेंगे।
मंदिर के निर्माण में किसी भी धातु का उपयोग नहीं किया गया है और नींव को भरने के लिए कंक्रीट मिश्रण में 55 प्रतिशत सीमेंट की जगह फ्लाई ऐश का उपयोग किया गया है। मंदिर के निर्माण प्रबंधक मधुसूदन पटेल ने कहा, ह्यह्यहमने परंपरागत सौंदर्य वाली पत्थर संरचनाओं और आधुनिक समय के शिल्प को मिलाते हुए तापमान रोधी सूक्ष्म टाइल्स और कांच के भारी पैनलों का इस्तेमाल किया है। यूएई में अत्यधिक तापमान को देखते हुए ये टाइल्स दर्शनार्थियों के पैदल चलने में सुविधाजनक होंगी।
अबू धाबी के पहले हिंदू मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है। इसी तरह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर में स्वंयसेवक उमेश राजा के अनुसार, 20 हजार टन से अधिक चूना पत्थर के टुकड़ों को राजस्थान में तराशा गया और 700 कंटेनरों में अबू धाबी लाया गया।