- गरीब, युवा, किसान व महिला ही जातियां
- विकसित भारत संकल्प यात्रा
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा बन पाएगी संजीवनी! - डब्ल्यू फैक्टर हो सकता है गेम चेंजर!
- सी-कैटेगरी पर भी रहेंगी निगाहें
मोदी की गारंटी बनेगा थीम!
–अमित नेहरा, नई दिल्ली।
जरा सी बात पिछले दो लोकसभा चुनावों के आंकड़ों की करते हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ( BJP) ने 31 परसेंट वोट लेकर 282 सीटें जीती थीं व उसके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (Nda ) को 38.5 परसेंट वोटों के साथ 336 सीटें मिलीं। उधर, कांग्रेस को 19.3% वोट मिले और वह केवल 44 सीटें ही जीत पाई, इसके गठबंधन, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को 23 परसेंट से भी कम वोट मिले और यह गठबंधन केवल 59 सीटें ही जीत पाया।
अगले पांच साल बाद यानी 2019 के लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election) में भाजपा ने 37.43 परसेंट वोट लेकर 303 सीटों पर जीत हासिल की और भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 45 परसेंट वोटों के साथ 353 सीटें जीत लीं। जबकि कांग्रेस ने 19.51 परसेंट वोटों के साथ 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूपीए को 26 परसेंट वोट मिलीं व कुल 92 सीटों पर जीत हासिल की।
स्पष्ट है कि भाजपा को दोनों चुनावों में क्रमशः 31 व 37.43 परसेंट वोट मिले हैं।
हाल ही सम्पन्न हुए पांच विधानसभा चुनावों में भाजपा ने तीन बड़े प्रदेशों में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जोरदार प्रदर्शन करते हुए सरकार बना ली हैं। इसके चलते पार्टी व कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। इन विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा था अतः भाजपा को इस वजह से भी एक संजीवनी मिल गई है। मुकाबला एनडीए और इंडिया के बीच होगा अतः सभी की निगाहें आगामी अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव पर हैं।
जहां इंडिया गठबंधन की बैठकों में कोई खास बात निकल कर नहीं आ रही है, वहीं केंद्र में सत्ता हैट्रिक बनाने की कोशिश में भाजपा इतनी कॉन्फिडेंट नजर आ रही है कि उसने प्लान 50+ की योजना पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है।
आखिर क्या है प्लान 50+
हाल ही में दिल्ली में भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक में आगामी लोकसभा चुनाव में जीत को सुनिश्चित करने की रणनीति पर चर्चा हुई। दो दिन चली इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पदाधिकारियों को जीत सुनिश्चित करने को लेकर दिशा-निर्देश दिए। जिनमें पार्टी की योजनाओं, चुनाव प्रचार थीम से लेकर वोट प्रतिशत बढ़ाने जैसे कदम शामिल हैं।
इसी बैठक में प्लान 50+पर विचार विमर्श हुआ व इसी पर जोर दिया गया। इस प्लान के तहत भाजपा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने पर जोर दे रही है। पार्टी का लक्ष्य अगले चुनाव में वोट प्रतिशत को बढ़ाकर 50 परसेंट से अधिक करने का है। पिछले चुनाव में यह 37.43 परसेंट था।
अगर, ऐसा सम्भव हो जाता है तो ऐसे में विपक्ष के पास भाजपा को हराने का रास्ता बंद हो जाएगा। इस प्लान के तहत पार्टी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को कम से कम 10 परसेंट वोट बढ़ाने का लक्ष्य दिया है। इस लक्ष्य को लेकर बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने पार्टी के वोट 10 परसेंट और बढ़ाने के लिए बूथ स्तर पर बेहद सक्रियता से काम करने के उपाय बताए। नरेंद्र मोदी ने भी बूथ प्रबंधन को चुनौती के रूप में लेने का सुझाव दिया। मोदी ने इस बाबत मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बूथ प्रबंधन के उदाहरणों का हवाला दिया।
प्लान 50+ के लिए पार्टी का पूरा जोर गरीबों, युवाओं, किसान और महिलाओं पर होगा। बैठक में चर्चा की गई कि केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाएं यदि गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं तक सही से पहुंच जाएं तो इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। गौरतलब है कि हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा का यह कदम विपक्ष के जाति आधारित जनगणना के विषय को तूल देने की कोशिशों को झटका दे चुका है। मोदी जातिगत जनगणना की काट में यह कह चुके हैं कि उनके लिए देश में गरीब, युवा, किसान और महिलाएं ये चार ही जातियां हैं।
इस बैठक में देश में चल रही विकसित भारत संकल्प यात्रा को लेकर भी चर्चा की गई। विकसित भारत संकल्प यात्रा, केंद्र सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य अपनी कई कल्याणकारी योजनाओं की अहर्ता वाले लाभार्थी तक पहुंच सुनिश्चित करना है। भाजपा ने अपने सदस्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले। अगले साल चुनाव में जीत हासिल करने में भाजपा का यह कदम काफी अहम माना जा रहा है। भाजपा का मानना है कि को लेकर काफी पॉजिटिव रिएक्शन मिल रहा है।
लेकिन इस यात्रा का विरोध भी देखने को मिल रहा है। हाल ही में हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने सवाल पूछ लिया कि जब विकसित भारत संकल्प यात्रा सरकारी है तो उसमें भाजपा के हारे हुए विधायक उम्मीदवारों के फ़ोटो क्यों लगे हुए हैं?
चुनावी बेला और रामलला
वैज्ञानिक समाजवाद के जन्मदाता, संस्थापक, मजदूरों, किसानों एवं पीड़ितों के मसीहा कार्ल मार्क्स ने 1844 में ‘ए कंट्रीब्यूशन टू द क्रिटिक ऑफ हेगल्स फिलॉसफी’ में एक प्रसिद्ध वाक्यांश ‘धर्म जनता के लिए अफीम है’ लिखा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि 179 बरस बीत जाने के बाद भी यह वाक्यांश आज भी उतना ही सटीक और सार्थक है। हर राजनीतिक पार्टी वोटरों को धर्म रूपी अफीम का सेवन कराने का प्रयास करती है। भारत के संविधान में बेशक धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन राजनीति से धर्म को हटाना असम्भव सा ही है।
भाजपा ने भी धर्म की राजनीति में खूब हाथ आजमाया है और उसे इसमें आशातीत सफलता भी मिली है।
गौरतलब है कि जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया था तो भाजपा के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई थी। इसकी काट के लिए उसे जाति आधारित राजनीति को धर्म आधारित राजनीति करना पड़ा था। उसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को मुद्दा बनाया और वहाँ राम मंदिर बनाने की घोषणा की।
साल 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था, जिसके बाद हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के बीच पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में एक लंबी कानूनी लड़ाई चली। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अयोध्या में विवादित भूमि पर मंदिर बनाया जाएगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी थी। अब बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है और 22 जनवरी 2024 को यहाँ प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 22 जनवरी 2024 को दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर प्रधानमंत्री जब नरेंद्र मोदी राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला को स्थापित करेंगे, तो ठीक उसी समय देशभर के करीब 3 लाख गांवों के मंदिरों में जय श्रीराम का उद्घोष किया जायेगा, हर जगह घण्टे-घड़ियाल-शंख बजाए जाएंगे। भजन कीर्तन, हनुमान चालीसा और सुंदर कांड के पाठ शुरू हो जाएंगे। उसी दिन विदेशों में रहने वाले करीब 156 देशों के भारतवंशी परिवारों तक यह आनंदोत्सव पहुंचाया जाएगा। राम मंदिर को लेकर 500 सालों की संघर्ष की गाथा के छपे पर्चे घर घर पहुंचाए जाएंगे। राम मंदिर ट्रस्ट, आरएसएस और इस तरह के संगठनों ने पूरे देश में राममय माहौल बनाने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है, जिसको अमली जामा पहनाने के लिए जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिए गए हैं।
आरएसएस व राम मंदिर ट्रस्ट ने इस अभियान को 4 फेज में बांटा है। पहले फेज में अक्षत का रामलला मंदिर में वैदिक विधि विधान से पूजन, दूसरा फेज कलश में भर कर इसे संगठन के 45 प्रांतों के प्रभारियों को वितरित करना है। तीसरे फेज में प्रांत से पूजित अक्षत को जिलों व मंडलों तक पहुंचाना। चौथा फेज है पूजित अक्षत को गांवों में स्थित मंदिरों तक पहुंचाना। पूरे देश के 5 लाख गांवों के मंदिरों तक पूजित अक्षत को पहुंचाने का अभियान 31 दिसंबर 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा। उसके बाद पांचवें फेज एक महाअभियान के तौर पर चलेगा। जिसमें आरएसएस के सारे विचार संगठन के कार्यकर्ता और पदाधिकारी 10 करोड़ परिवारों तक रामलला का दर्शन करने के लिए अयोध्या आने के निमंत्रण का अक्षत देंगे। यह कार्यक्रम 1 जनवरी 2024 से 15 जनवरी तक चलेगा।
उसके बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के वैदिक अनुष्ठान शुरू होंगे, जो 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पर समाप्त हो जाएंगे। लेकिन देश को राममय करने का कार्यक्रम यहीं रुकने वाला नहीं है। राम मंदिर आंदोलन और इसके निर्माण के लिए धन संग्रह अभियान से जुड़े लोगों की सूची तैयार की गई है। जिनको 45 दिनों तक दर्शन करवाने का कार्यक्रम भी मंदिर ट्रस्ट ने तैयार किया है। इसके चलते रोजाना 25 हजार राम भक्तों को अयोध्या दर्शन के लिए प्रदेश के हिसाब से बुलाया जाएगा। जिनके रहने व खाने की व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट ही करेगा। भारतीय रेलवे इसके लिए हजारों रेलगाड़ियां अयोध्या तक चलाएगी। अयोध्या में हाल ही में हवाई अड्डा भी बन कर तैयार हो चुका है। विपक्षी नेताओं को भी समारोह में आने का न्योता दिया गया है लेकिन विपक्ष ने इसे धर्म पर राजनीति की संज्ञा दी है।
यहाँ यह बताना बेहद जरूरी है कि एक फरवरी, 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पांडेय ने महज एक दिन पहले यानी 31 जनवरी 1986, को दाखिल की गई एक अपील पर सुनवाई करते हुए तकरीबन 37 साल से बंद पड़ी बाबरी मस्जिद का गेट खुलवा दिया था।
माना जाता है कि राजीव गांधी की सरकार ने (तब उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की ही सरकार थी) बाबरी मस्जिद का ताला इसलिए खुलवाया था क्योंकि उसने मुस्लिम तलाकशुदा महिला शाहबानो के मामले को संसद से कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के गुजारा भत्ता पर दिए गए फैसले को उलट दिया था। इस पूरे मामले को कांग्रेस की धर्म पर राजनीतिक बताया जाता है।
कहा जा सकता है कि धर्म की राजनीति लगभग हर राजनीतिक पार्टी करती है लेकिन जो जीता वही सिकंदर कहलाता है। भाजपा इस समय राम मंदिर को लेकर पूरे जोश में है।
डब्ल्यू फैक्टर यानी आधी आबादी
पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी की बड़ी वजह ये महिला लाभार्थी थीं। चाहे केंद्र की उज्जवला जैसी योजना हो या उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध कम होना। हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने भाजपा को बंपर वोट दिए। मध्यप्रदेश की लाडली बहना योजना की घोषणा की लोकप्रियता कौन भूल सकता है। संसद में महिला आरक्षण बिल भी पास करवाया गया है।
ऐसे में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति को डब्ल्यू (वुमेन) फैक्टर के इर्द-गिर्द रखने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत लखनऊ में 10 दिसंबर से एक कार्यशाला से की गई। इसमें 8 राज्यों की महिला कार्यकर्ताओं को बुलाया गया। इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षों और प्रदेश महामंत्रियों को बुलाया गया। बैठक में आधी आबादी से संबंधित चुनावी अभियानों का ब्लू प्रिंट सौंपा गया है। ये सभी पदाधिकारी अपने अपने राज्यों की अन्य महिला पदाधिकारियों के साथ इस रणनीति को साझा करेंगी।
भाजपा महिला मोर्चा को लोकसभा चुनाव से पहले 9 महिला केंद्रित अभियानों की जिम्मेदारी मिलने वाली है। पार्टी ने महिला मतदाताओं की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुए पहली बार महिला कार्यकर्ताओं की टीम को भी बूथ स्तर पर जिम्मेदारियां दी हैं।
सी-कैटेगरी फॉर्मूला
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा ने विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में सी-कैटेगरी फॉर्मूला लागू करने का रोडमैप बनाया है। इस फार्मूले के जरिये उसने कमजोर सीटों पर भी बेहतरीन प्रदर्शन किया है। इस प्लान के चलते लोकसभा चुनाव के शेड्यूल का ऐलान होने से काफी पहले भाजपा कई सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर सकती है। हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सी-कैटेगरी फॉर्मूले को लागू किया था। इन विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा काफी पहले कर दी गई थी। ये वे सीटें थीं जिन पर पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने जीत दर्ज नहीं की थी। इन सीटों पर उसने अच्छा प्रदर्शन किया। लोकसभा चुनावों के लिए भी भाजपा ऐसी सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा अगले महीने कर सकती है। पार्टी ने इस तरह की 160 सीटों की पहचान कर ली है। इनमें स्थिति को मजबूत करने के लिए वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को उतारा जा सकता है।
इनमें ज्यादातर सीटें दक्षिण और पूर्व भारत में हैं। कई ‘कमजोर सीटों’ की पहचान की गई है। पार्टी को उम्मीद है कि उम्मीदवारों की जल्दी घोषणा से उन्हें फर्स्ट मूवर एडवांटेज मिलेगा। इन 160 कमजोर लोकसभा सीटों में रायबरेली शामिल है जिसका प्रतिनिधित्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करती हैं। डिंपल यादव की मैनपुरी सीट भी इन्हीं 160 सीटों में शामिल है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह इन सभी 160 निर्वाचन क्षेत्रों का कम से कम एक बार दौरा कर चुके हैं।
मोदी की गारंटी रहेगा थीम
आगामी लोकसभा कैंपेन में भाजपा का थीम रहेगा ‘मोदी की गारंटी’। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मिलकर इस पर विचार विमर्श किया। इन दोनों ने संगठन स्तर पर तैयारियों का जायजा लिया। इसमें ‘मोदी की गारंटी’ बीजेपी के कैंपेन की मुख्य थीम में से एक होगी।
भाजपा पार्टी की तैयारियों का पता इस बात से लगता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठकों में व्यस्त हैं। इन सभी बैठकों में आगामी लोकसभा चुनावों पर चर्चा हो रही है। अगले महीने जनवरी में जिला इकाई प्रमुखों की उपस्थिति में राष्ट्रीय परिषद की बैठक होने वाली है।
भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की दो दिवसीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं से आह्वान किया है कि वे इसमें पूरी ताकत झोंक दें। पदाधिकारियों से यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों के कामकाज को वे जनता के बीच लेकर जाएं। इस दौरान वे लोगों से अपील करें कि देश निर्माण के लिए भाजपा सरकार क्यों जरूरी है?
चलते-चलते
जरूरी नहीं है कि भाजपा जो भी फैसला लेती है या एजेंडा सेट करती है वह उसके पक्ष में ही जाये। कई फैसले या दाँव उलट भी पड़ जाते हैं। लेकिन भाजपा की यह खूबी है कि वह अपने खिलाफ जा रहे दाँव को वापस भी ले लेती है या यू टर्न मार जाती है।
हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक घटना घटी। संसद भवन पर आतंकी हमले की वर्षगांठ पर संसद की अभेद्य सुरक्षा को भेदते हुए दो युवक दर्शक दीर्घा से सांसदों के बीच कूद गए और अपने साथ लाये गए (संसद में प्रतिबंधित) स्मोक कैनिस्टर को खोल दिया। ये दोनों युवक एक भाजपा सांसद द्वारा जारी किए गए पास के जरिये संसद में घुसे थे। इसके चलते सत्तापक्ष की बड़ी किरकिरी हुई। विपक्ष ने इसकी जवाबदेही की मांग की जिसके चलते 146 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया। मजेदार बात यह रही कि उन सांसदों को भी निलम्बित कर दिया गया जो उस दिन सदन में उपस्थित ही नहीं थे। खूब शोर शराबा हुआ, लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है।?
जब, इन सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था, तब तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद कल्याण बनर्जी ने विरोध करने के लिए मिमिक्री का सहारा लिया। वे काफी देर तक उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री करते रहे और राहुल गांधी अपने फोन से उसकी शूटिंग करते रहे। भाजपा ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना लिया और इसे जाट समुदाय के अपमान से जोड़ दिया। हालांकि कल्याण बनर्जी ने जाट समाज के लिए कोई आपत्तिजनक शब्द नहीं कहे या उनकी कोई भाव भंगिमा जाट समाज के खिलाफ नहीं थी।
लेकिन इसी दौरान राष्ट्रीय कुश्ती संघ के चुनाव में सजंय सिंह को अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया। संजय सिंह, महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद ब्रजभूषण का दायाँ हाथ है। ब्रजभूषण ने भी इस अवसर पर कुछ आपत्तिजनक हरकत कर दीं। इससे खफा होकर देश की एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। अंतरराष्ट्रीय पहलवान बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री पुरुस्कार प्रधानमंत्री आवास की चौखट पर रख दिया।
सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड वायरल हो गया कि जाटों का असली अपमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री करने से नहीं बल्कि महिला पहलवानों की उपेक्षा व उनके साथ की गई बदसलूकी करने से हुआ है। देखते ही देखते प्रेस कॉन्फ्रेंस में साक्षी मलिक द्वारा सन्यास लिए जाने पर टेबल पर रखे गए उसके पहलवानी जूतों के फ़ोटो सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर टॉप ट्रेंड में आ गए।
भाजपा और केंद्र सरकार इस प्रेशर को सहन नहीं कर पाई और दो दिन पहले ही बनी कुश्ती संघ की कार्यकारिणी को निलंबित करना पड़ा। ये बिल्कुल वैसा ही वाक्या था जब उत्तरप्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनाव के चलते किसान आंदोलन को समाप्त करवाने के लिए तीन कृषि कानूनों को अचानक वापस ले लिया गया था। राजनीति की व्याकरण में मान-सम्मान-अपमान जैसे शब्द नहीं हैं।