पिछले 57 साल से लटका है नहर निर्माण का मामला
पंजाब व हरियाणा सरकारों के बीच नहीं बन पा रहा सामंजस्य
-सुमित्रा,चंडीगढ़।
शायद इस मर्ज कीअभी कोई दवा नहीं है। यही वजह है कि पिछले करीब 57 साल से मामला उलझा पड़ा है। कितनी ही सरकारें आईं और चली गेन, लेकिन सतलुज-यमुना जोड़ नहर (एसवाईएल) निर्माण का मामला ज्यों का त्यों है।
पंजाब (Punjab) पहले भी नहर निर्माण के हक़ में नहीं थाऔर आज भी नहीं है। दक्षिण हरियाणा के अपने खेतों की प्यास बुझाने और फसल की ज्यादा पैदावार लेने के लिए हरियाणा लगातार प्रयास कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा ( haryana) के पक्ष में आने के बावजूद पंजाब नहर के निर्माण के लिए कतई तैयार नहीं है।पंजाब में सरकार चाहे प्रकाश सिंह बादल की रही हो और चाहे कैप्टन अमरिंदर सिंह की, इनमें से कोई भी नहर बनने देने के हक मेंनहीं था। अब आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी उसी राह पर हैं।
दरअसल, नहर निर्माण का यह मामला राजनीति से जुड़ गया है। दोनों राज्य अदालती लड़ाई में उलझे हुए हैं। दोनों राज्यों के लोग भी इसे अपनी भावनाओं से जोड़ कर देख रहे हैं। सत्तारूढ़ दलों के नेताओं की बयानबाजी से ऐसे हालात बन गए हैं। पंजाब के लोग हरियाणा को उसके हिस्से का पानी देने के पक्ष में नहीं हैं, जबकि हरियाणा के लोग चाहते हैं कि पंजाब उसे अपने हक़ का पानी दे दे। कानूनी दावपेंचों के साथ ही दोनों राज्यों के लोग भी इस मसले पर सत्तारूढ़ दलों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। इस मुद्दे पर बार-बार बैठकें होती हैं और बिना किसी नतीजे के खत्म भी हो जाती हैं।
इस बार भी ऐसा ही हुआ है। हमेशा की तरह सतलुज-यमुना जोड़ नहर (एसवाईएल) निर्माण के मसले पर पंजाब व हरियाणा के बीचकेंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की तरफ से बुलाई गई बैठक एक बार फिरविफल हो गई। बिना किसी नतीजे के बैठक खत्म होने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा, ‘बैठक मनोहर माहौल में हुई, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री मान हैं कि नहर निर्माण के लिए मानते ही नहीं।’ उधर, मान का कहना है कि जब पंजाब के पास किसी दूसरे राज्य को देने के लिए पानी ही नहीं है तो फिर नहर का निर्माण किस लिए किया जाए।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में यह बैठक करीब एक घंटे तक चली, लेकिन इसके कोई सार्थक परिणाम नहीं निकले।बैठक के बाद मुख्यमंत्री मान ने कहा, ‘मैं अपने पुराने स्टैंड पर आज भी कायम हूं कि पंजाब के पास किसी दूसरे राज्य को देने के लिए एक बूंद फालतू पानी नहीं है। मान ने कहा कि खट्टरने पंजाब के हिस्से में एसवाईएल नहर बनाने के लिए कहा था, लेकिन जब पंजाब के पास किसी को देने के लिए पानी ही नहीं है तो फिर नहर बनाने से क्या फायदा होगा? इस बैठक में पंजाब और हरियाणा के वरिष्ठ अफसर भी मौजूद थे। पंजाब सरकार इस मामले में चार जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। मान का कहना है कि दुनियाभर में 25 साल बाद रिपेरियन मामलों की समीक्षा होती है, लेकिन पंजाब के मामले में केंद्र सरकार ने कभी इसकी समीक्षा नहीं की। मुख्यमंत्री ने कहा कि चिनाब से रावी इंडस समझौता था, जिसके तहत चिनाब से रावी के बीच एक सुरंगबनाई जानी थी, जिसके जरिए पांच मिलियन एकड़ फ़ीट (एमएएफ) पानी पंजाब को मिल सकता था, लेकिन केंद्र ने आज तक उस सुरंग का निर्माण नहीं करवाया है।
मान ने कहा कि पंजाब का पांच एमएएफ पानी दिया जा रहा है, लेकिन यह जम्मू-कश्मीर में चिनाब से रावीमें आता है। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि पंजाब से पाकिस्तान को कोई पानीदिया जा रहा है। मान ने कहा कि जब इस साल बाढ़ आई थी, तब हमने हरियाणा से पूछा था कि क्या आपको पानी की जरूरत हैतो उसने इनकार कर दिया था। क्या पंजाब सिर्फ डूबने के लिए है? मान ने कहा कि हरियाणा के पास पानी के लिए कई चैनल हैं। यमुना-शारदा लिंक से हरियाणा को पानी मिलता है। तय शर्तों के मुताबिक पंजाब को 52 एमएएफ पानी मिलना चाहिए, लेकिन इस समय सिर्फ 14.5 एमएएफ पानी ही मिल रहा है। पंजाब का भू जल भी 600-700 फुट तक गिर चुका है। ऐसे में एसवाईएल नहर बनाने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि अनुबंध के अनुसार हरियाणा को पानी नहीं मिल रहा है। ऐसे में फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हरियाणा के हिस्से का पानी पाकिस्तान को दिया जा रहा है।
खट्टर के मुताबिक हरियाणा माइक्रो सिंचाई पद्धति अपना कर किसी तरह से पानी का प्रबंध कर रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार नहर का निर्माण जरूरी है। बहरहाल, जो कुछ भी होना है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर होगा। पंजाब सरकार की तरफ से नए साल में चार जनवरी को अपना पक्ष रख दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट कब इस मामले में सुनवाई करेगा और पंजाब के पक्ष से कितना सहमत होगा, यह अभी तय होना है। जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला नहीं देगा, पंजाब व हरियाणा के बीच नहर निर्माण का यह मुद्दा इसी तरह से लटका रहेगा।