समिति ने कहा, देश के ‘बच्चे’ की एक समान परिभाषा तय करने की जरूरत

नई दिल्ली। बाल श्रम को खत्म करने के लिए बनाई गई नीति को 2025 तक अपने अंतिम लक्ष्य को हासिल करने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है। एक संसदीय समिति ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में यह बात कही। समिति ने साथ ही जोड़ा कि इससे पहले देश को विभिन्न कानूनों के तहत ‘बच्चे’ की एक समान परिभाषा तय करने की जरूरत है।

श्रम, कपड़ा और कौशल विकास पर संसद की स्थायी समिति की 52वीं रिपोर्ट संसद में पेश की गई। इसके मुताबिक, समिति ने पाया कि विभिन्न कानूनों के तहत बच्चे की परिभाषा में अस्पष्टता है। इसमें कहा गया, ‘‘आईएलओ सम्मेलनों के तहत की गई प्रतिबद्धताओं के अनुसार बाल श्रम को खत्म करने और सतत विकास लक्ष्य 8.7 में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीति के कार्यान्वयन को एक लंबा रास्ता तय करना है।’’

समिति ने कहा कि बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार ‘बच्चे’ का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है, जिसने अपनी उम्र का चौदहवां वर्ष पूरा नहीं किया है। वर्ष 2016 में अधिनियम में किया गया संशोधन 14-18 वर्ष के आयु वर्ग में आने वालों को बच्चा परिभाषित करता है।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बच्चे का अर्थ छह से चौदह वर्ष की आयु का व्यक्ति है। दूसरी ओर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 ऐसे व्यक्ति को बच्चा बताता है, जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। इस कानून में किशोर शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में किशोर को 10-19 वर्ष के बीच के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। समिति ने कहा है कि इन विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे पीड़ित बच्चों को न्याय मिलने में देरी होती है।

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