भाजपा ने नए चेहरों के साथ नया प्रयोग कर सारे मिथकों तोड़ा
पार्टी के थिंक टैंक ने सीएम चयन में दिया सोशल इंजीनियरिंग का संदेश
ममता सिंह, कार्यकारी संपादक।
राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में भाजपा (BJP) के थिंक टैंक ने नए चेहरों पर ऐतबार किया है, जो अपने आप में बड़ी बात है। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय, मध्यप्रदेश में मोहन यादव तथा राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री (CM) पद की जिम्मेदारी सौंपकर भाजपा के रणनीतिकारों ने अपने कुशल राजनीतिक ( political) परिपक्वता का परिचय देते हुए सोशल इंजीनियरिंग का संदेश दिया है। वैसे शुरुआत से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा दूसरी कतार के नेताओं को तैयार करने की योजना के तहत मंत्रिमंडल में घिसे-पिटे चेहरों की जगह नए और ऊर्जावान चेहरों को मौका देगी जो अगले 10 से 15 साल तक राज्य की राजनीति में पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकें।
देखिए क्रिकेट और राजनीति में सब कुछ संभव है। इसलिए भाजपा हाईकमान का फैसला कतई किसी को भी अचंभित करने वाला नहीं है। हां, मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने वाले दिग्गजों को थोड़ी बहुत परेशानी जरूर हो सकती है लेकिन उनको भी इस झटके से उबरना चाहिए। क्योंकि इससे साधारण कार्यकर्ताओं के मन में यह बात तो बैठ गई है कि भाजपा में किसी को भी सीएम पद पर बिठाया जा सकता है। सीनियरटी और जुनियरटी का फर्क तो भाजपा ने पूरी तरह से खत्म ही कर दिया है। उन्होंने अपने फैसले से जता दिया है कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नहीं की जा सकती। क्योंकि कार्यकर्ताओं के बूते ही पार्टी सत्ता के सिंहासन तक पहुंचती है।
पार्टी आलाकमान ने तमाम कयासों और भविष्यवाणियों के उलट अब जो फैसला सुनाया है वो निःसंदेह कुछ के लिए अपमान का घूंट सरीखा हो लेकिन आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा कि सत्ता का सर्वोच्च सुख महज कुछ राजघरानों या सवर्णों को ही नसीब होता रहे। दरअसल, ये कुर्सी बड़ी बांकी चीज होती है। कुछ लोग ऐसे हैं जो वर्षों, दशकों से उस पर बैठे हैं लेकिन अघाए नहीं। पेट भरता ही नहीं। वहीं कई लोग इस देश में ऐसे हैं, कुर्सी नाम की चीज से जिनका कोई वास्ता ही नहीं है। हमेशा जमीन पर ही बैठा करते हैं। मानो वे कुर्सी से भी पहले पैदा हुए हों। उनका पूरा जीवन दरी बिछाने में ही निकल गया।
नए चेहरों पर भरोसा करने के पीछे भाजपा हाईकमान की दूरदर्शिता झलक रही है। वर्ष 2024 के शुरुआत में ही लोकसभा चुनाव है। इसको ध्यान में रखकर ही नए चेहरों पर भाजपा ने दांव खेला है। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा हाईकमान ने पुराने दिग्गजों को दरकिनार कर दिया है। भाजपा कार्यकर्ता उत्साह के साथ चुनाव में काम करेगा, इस मंशा के साथ कि पता नहीं कब किस कार्यकर्ता की लाटरी लग जाए। राजस्थान की ही बात लीजिए तो दिखता है कि वर्ष 1998 से ही अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे बारी-बारी से राजस्थान की जिम्मेदारी संभालते आए हैं। राजस्थान में तो दीया कुमारी को उप मुख्यमंत्री बनाकर रजवाड़ों की भी मंशा को ध्यान में रखा गया है। दलित नेता प्रेम चंद बैरवा को भी उप मुख्यमंत्री बना कर दलित वोट बैंक को भाजपा हाईकमान ने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दलित समाज को भी साधने की कोशिश की गई है। सिंधी समाज के वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर सिंधी वोट बैंक को प्रसन्न करने की कोशिश की गयी है।
ठीक इसी तरह से मध्यप्रदेश में यादव को मुख्यमंत्री बनाकर उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में फैले यदुवंशी समाज को खुश करने की कोशिश की गई है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता विषणुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर वहां के 32 फीसद आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश की गई है। दरअसल भाजपा हाईकमान को अच्छी तरह से पता है कि वोटों के लिहाज से कांग्रेस, भाजपा से ज्यादा पीछे नहीं है। इसलिए भाजपा हाईकमान ने हर नजरिए, खासकर सामाजिक समीकरण को समझने के बाद ही नए चेहरों पर एतबार किया है। असल में समय के साथ हर समीकरण को साधना की कला ही कुशल राजनीति कही जाती है। यह सच है कि इस कला में कांग्रेस से काफी आगे भाजपा है। इस अद्भुत कला को अन्य पार्टियों खासकर कांग्रेस को सीखने और समझने की जरूरत है।
अब ट्रेडिशनल राजनीति की आवश्यकता देश में नहीं है। समय और सत्ता के बीच चल रहे संघर्ष को समझने की जरूरत है। बदलते परिवेश में राजनीति भी बदली है। इसलिए विपरीत हालात में भी अपने समीकरण एवं हित को फिट करने की कला में निपुण होना होगा। भाजपा यही करिश्मा कर रही है और सफल भी हो रही है। जनता को किस तरह से विश्वास में लिया जाए, यही महत्वपूर्ण है। आस्था बड़ी चीज है, बड़े बड़े दिग्गजों को भी चित कर देती है। भाजपा ने नए चेहरों पर विश्वास जताया है। इसे राजनीति में एक नया प्रयोग भी माना जा रहा है। अब राजनीति में हैवीवेट की जरूरत नहीं है। क्या करने से पार्टी कार्यकर्ता और सामाजिक ताना-बाना बरकरार रहेगा, अब उसी के नब्ज को परखने और समझने की जरूरत है।
बहरहाल, राजनीति में हुए इस नए प्रयोग का लाभ भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में कितना मिलता है, यह तो लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा। राजनीति में हर कोई कयास ही लगाता है। छत्तीसगढ़ में तो चुनावी सर्वे में भी कांग्रेस को नंबर एक बताया जा रहा था लेकिन चुनावी आकलन टांय टांय फिस्स साबित हुआ। चुनाव के दौरान मतदाताओं के अंदर करंट की गति क्या है। यह समझना कोई सहज काम नहीं है। छत्तीसगढ़ की नब्ज को कोई नहीं समझ पाया है। कांग्रेस का शोर हुआ और भाजपा आ गई। इसलिए देश की राजनीति किस करवट बैठेगी, यह कहना मुश्किल है। हां, इतना जरूर है कि अब परंपरागत राजनीति काफी लंबी नहीं चलने वाली है। वाकई, देश बदल रहा है।