- खट्टर ‘एक हरियाणा, एक हरियाणवी’ की तर्ज पर रणनीति बनाने में जुटे
- आसान नहीं होगा दूसरी पार्टियों के कई समीकरणों को साधना
सुमित्रा, चंडीगढ़।
हरियाणा में भाजपा (BJP) ने लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाने की तैयारियां शुरु कर दी हैं। हरियाणा में भाजपा ने पंचकुला में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में एक बड़ी बैठक कर एक तरह से अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए शंखनाद कर दिया है।
सवाल है कि क्या भाजपा हरियाणा में तीसरी बार सरकार बना पाएगी? क्या अपने बलबूते मैदान में उतरने जा रही भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल पाएगा? क्या मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ( Chief Minister Manohar Lal Khattar) का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास‘ और ‘एक हरियाणा, एक हरियाणवी’ पार्टी का बेड़ा पार लगाने के लिए काफी रहेगा? राज्य के लोगों के जेहन में इन दिनों यही सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री खट्टर के साथ ही भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी भी लगातार यही दावा कर रहे हैं कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में लौटेगी।
आखिर भाजपा की ऐसी क्या रणनीति होगी, जो लोग 90 में से 45 से ज्यादा सीटें उसकी झोली में डाल दें? इस रणनीति के कई कोण हैं। भाजपा अपने लिए गैर जाटों को गोलबंद करने में लगी है। जाट समुदाय के वोट जितनी जगह बंटेंगे, भाजपा को चुनावों में उतना ही फायदा मिलता दिखता है। गैर जाट मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने ओमप्रकाश धनखड़ की जगह पर पिछड़े वर्ग के सांसद नायब सिंह सैनी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया है।
धनखड़ को करीब तीन साल पहले इसलिए पार्टी की कमान दी गई थी कि वे जाट मतदाताओं को भाजपा के साथ जोड़ेंगे। पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत करने के लिए धनखड़ ने इस दौरान मेहनत भी बहुत की, लेकिन भाजपा की उम्मीदों पर उतना खरा नहीं उत्तर पाए, जितनी उनसे अपेक्षा की गई थी। जब भाजपा आलाकमान को पार्टी के साथ जाटों का जुड़ाव होता नजर नहीं आया तो उनकी जगह पर नायब सैनी को कमान सौंप दी गई। हरियाणा में अगले साल पहले लोकसभा चुनाव हैं और फिर छह महीने के अंतराल के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। माना गया कि नायब सैनी इस दौरान राज्य के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में पार्टी की पैठ मजबूत कर लेंगे। यदि भाजपा पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने में कामयाब हो जाती है तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी को इसका फायदा मिलने के आसार हैं।
नायब सैनी की गिनती मुख्यमंत्री खट्टर के भरोसेमंद लोगों में होती है। यही वजह है कि उनके प्रदेश में भाजपा की कमान संभालने के बाद लोगों के बीच पार्टी और सरकार में अच्छे तालमेल का संदेश जाएगा। राज्य के सभी 22 जिलों में उनके अभिनंदन समारोह आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि आम लोगों को लगे कि उन्हीं के बीच का एक मिलनसार व्यक्ति भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष है। वे हर जगह कहते हैं कि मुख्यमंत्री खट्टर बिना किसी भेदभाव हरियाणा के विकास में जुटे हैं। आम युवाओं को सरकारी नौकरियां पारदर्शिता के आधार पर बिना किसी खर्ची-पर्ची के मिल रही हैं। यह भी जोर देकर कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री का परिवारवाद से कोई लेना-देना नहीं है।
पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने के साथ ही भाजपा की रणनीति का दूसरा कोण जाट मतदाताओं के वोट बिखेर देना है। मौजूदा समय में हरियाणा में जाट मतदाताओं का रुझान पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरफ और अनुसूचित जाति के मतदाता कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चैधरी उदय भान के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में यह कोशिश की जाएगी कि जाटों के वोट ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारों के बीच बंट जाएं।
यह कैसे संभव हो पाएगा? इसके लिए जरूरी होगा कि भाजपा का जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं हो। ऐसा होगा भी। लोकसभा चुनावों में भाजपा राज्य की सभी दस सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जजपा के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ेगी। जाहिर है चुनावी तालमेल नहीं होने पर जजपा को पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में अपने दम पर मैदान में उतरना होगा। ऐसे में जजपा को जाट समुदाय के जो वोट मिलेंगे, उससे कांग्रेस को नुकसान होगा।
भाजपा के नेता जानते हैं कि जजपा के नेता दुष्यंत चौटाला ने पिछले चुनावों के दौरान खट्टर सरकार को सत्ता से बाहर करने के नाम पर ही लोगों से वोट मांगे थे। जजपा को दस सीटों पर जीत मिली और भाजपा बहुमत से पांच सीटें पीछे रह गई। ऐसी स्थिति में जजपा ने भाजपा को समर्थन देकर खट्टर को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और सरकार चलाने का मौका दे दिया।
बदले में चौटाला ने उप मुख्यमंत्री पद ले लिया और अपने दो विधायकों देवेंद्र बबली और अनूप धानक को मंत्री बनवा लिया। जाट समुदाय को लगा कि दुष्यंत ने उनके साथ ठगी की है। जो भरोसा दिलाया था, उसे निभाने के बजाए भाजपा के साथ चले गए। लोगों में जजपा के प्रति फिलहाल नाराजगी है। आने वाले चुनावों में वे जितने भी उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे और उन्हें जो वोट मिलेंगे, ज्यादातर वोट जाट समुदाय के ही होंगे और भाजपा यही चाहती है कि जजपा जैसे भी हो कांग्रेस को नुकसान पहुंचाए।
चुनाव का तीसरा कोण इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) है। इनेलो की इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाई हैं। ऐसे में इनेलो को भी अकेले ही मैदान में उतरना पड़ेगा। जजपा के अलग होने के बाद से हरियाणा में इनेलो की ताकत कमजोर पड़ी है। हरियाणा के इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब इनेलो सत्ता में भी नहीं है और मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं है। विधानसभा में अभय सिंह चौटाला इनेलो के एकमात्र विधायक हैं।
पार्टी के प्रधान महासचिव की जिम्मेदारी निभा रहे अभय सिंह चौटाला ने हरियाणा की पदयात्रा कर इनेलो को फिर से मजबूत करने के प्रयास जरूर किए हैं। आने वाले समय में राज्य के कुछ क्षेत्रों में वे रथयात्रा पर भी निकलेंग। इनेलो जितने भी उम्मीदवार मैदान में उतारेगी, जाहिर है जाट बहुल क्षेत्रों में उनके प्रत्याशी जाट ही होंग। वे भी कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे।
राज्य की राजनीति का चौथा कोण महम के विधायक बलराज कुंडू हैं। कुंडू भी जाट समुदाय से हैं। उन्होंने भी हरियाणा जनसेवा पार्टी (हजपा) का गठन कर लिया है। कुंडू ने जींद में एक रैली कर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला को रैली में बुला हुंकार भरी है। आने वाले चुनावों में उनकी पार्टी जितनी भी सीटों पर जाट उम्मीदवारों को टिकट देगी, मान कर चलिए कि वे सब भी कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएंगे।
इतना ही नहीं, जाटों के वोट काटने के हिसाब से चुनाव का एक कोण और भी है। जब से राज्य में कांग्रेस पार्टी की कमान चौधरी उदयभान को कमान दी गई है, तीस से ज्यादा पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इन सब को लगता है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी जीत सकती है। हवा का रुख भांप कर कांग्रेस में आने वालों में सभी को तो टिकट नहीं मिलेगा। जो भी टिकट से वंचित रह जाएंगे, वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर सकते हैं। पर्दे के पीछे से उन्हें मजबूती से लड़ने के लिए भाजपा प्रोत्साहित भी करेगी। आजाद लड़ने वाले इन जाट उम्मीदवारों की पेटी में जो वोट आएंगे, वे सब भी कांग्रेस के खाते से ही निकलेंग। मकसद साफ है कि भाजपा जाट समुदाय को कई हिस्सों में बांटने की रणनीति पर काम करेगी।
आने वाले चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने ‘जन संवाद’ कार्यक्रम शुरु कर दिए हैं। विधानसभा क्षेत्रों में जा कर मुख्यमंत्री लोगों की शिकायतें सुनते हैं और मौके पर ही अफसरों को उनके समाधान के निर्देश देते हैं। ‘जन संवाद’ कार्यक्रम का मकसद मुख्यमंत्री का लोगों से सीधे जुड़ना है। लोगों के बीच अपनी उदार छवि बनाने का इससे बेहतर मौका उनके पास और क्या हो सकता है? जिन भी लोगों को मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद राहत मिलेगी, वह आने वाले चुनावों तक इसे याद रखेगा।
इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने हर वर्ग को राहत दे कर खुश करने की कोशिशें भी शुरु कर दी हैं। पहले मुख्यमंत्री मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के पक्ष में नहीं रहे हैं, लेकिन लगता है कि सभी क्षेत्रों में लोगों को खुश करने के लिए उन्होंने अब खजाने का मुंह खोल दिया है। पिछले दिनों आंगनबाड़ी वर्कर्स के मानदेय में इजाफा किया गया है। बुढ़ापा पेंशन भी बढ़ा कर तीन हजार रुपए महीने करने की घोषणा हो चुकी है। किसानों के लिए गन्ने के दामों में वृद्धि की गई है।
लेकिन सबसे बड़ी मांग पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की है। कर्मचारी पेंशन योजना लागू करवाने के लिए हरियाणा में साइकिल यात्रा भी निकाल चुके हैं, लेकिन इस मामले में अभी खट्टर ने कोई भरोसा नहीं दिलाया है। यह सब शायद पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देख कर ही तय हो। अगर भाजपा जीतती है तो फिर हरियाणा सरकार इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल देगी। अगर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार के बाद अब पांचों राज्यों में भी भाजपा को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिलती तो इस मामले में जरूर कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा।
विधानसभा चुनावों में एक मुद्दा आम आदमी पार्टी (आप) भी रहेगी। ‘आप’ को हरियाणा में मजबूती देने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के अलावा पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष सांसद सुशील गुप्ता, कांग्रेस से ‘आप’ में आए डॉ. अशोक तंवर, पूर्व मंत्री निर्मल सिंह, उनकी बेटी चित्र सरवारा और पूर्व पत्रकार अनुराग ढांडा बड़े जोर-शोर से जुटे हुए हैं। भाजपा हरियाणा में ‘आप’ से किसी तरह का कोई खतरा नहीं मानती। भाजपा चाहती हैं कि यदि ‘आप’ हरियाणा की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी तो वे लोग भी कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएंगे। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि ‘आप’ हरियाणा में न अपनी जड़ें जमा पाई है और न जमा पाएगी।
बहरहाल, हरियाणा में बहुकोणीय मुकाबले के आसार हैं। हरियाणा जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल, हरियाणा जन सेवक पार्टी के उम्मीदवारों के अलावा बहुत-सी सीटों पर आजाद उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमाने मैदान में उतरेंगे, लेकिन असली टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगी। भाजपा आने वाले चुनावों में फिर सत्ता में लौटेगी या कांग्रेस उससे सत्ता छीन लेगी, यह परिणाम आने पर ही साफ हो पाएगा। जब तक चुनावों की घोषणा नहीं होती, सभी पार्टियों की तरफ से सत्ता में आने के दावे-प्रतिदावे चलते रहेंगे।