डॉ. गोपाल नारसन
उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी की सुरंग से जिंदगी की जंग जीत कर 17 दिनों में बाहर आए पहले बैच के पहले मजदूर (labourer) को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ( Chief Minister Pushkar Singh Dhami) ने गले लगा किया।उन्होंने उनका माला पहनाकर स्वागत भी किया है। पाइप के जरिए सबसे पहले बाहर आने वाले मजदूर का नाम विजय होरो है। वह खूंटी का रहना वाला है।टनल से बाहर निकने के बाद विजय ने अपने परिवार से मुलाकात की,वह अपनी पत्नी और माता-पिता से मिला तो सभी भावुक हो गए और परमात्मा का शुक्रिया अदा किया।
उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी रेस्क्यू किए गए मजदूरों से मुलाकात की और उन्हें जिंदगी की जंग जितने के लिए बधाई दी तथा उनका हालचाल जाना । इस दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल (से.नि) वीके सिंह भी मौजूद रहे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने श्रमिकों और रेस्क्यू अभियान में जुटे हुए कर्मियों के मनोबल और साहस की जमकर सराहना की । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरकाशी के टनल से 41 मजदूरों को बाहर निकाले जाने के बाद कहा कि हमारे श्रमिक भाइयों के रेस्क्यू ऑपरेशन की सफलता हर किसी को भावुक कर देने वाली है।
टनल में जो साथी फंसे हुए थे, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि आपका साहस और धैर्य हर किसी को प्रेरित कर रहा है। एक मजदूर के पिता ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख कर पैसे उधार लिए ताकि वो उत्तरकाशी में अपने बेटे को बचा पर बाहर निकालने के लिए चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को देख सकें, अपने बेटे से बात कर सकें।3 फीट व्यास के पाइप सुरंग तक पहुंचने के बाद मजदूरो तक पहुंची रेस्क्यू टीम के सदस्यों ने सभी मजदूरों को काले चश्मे दिए ताकि अंधेरे में रहने के कारण मजदूरों के बाहर निकलने पर आंखों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न हो, उत्तरकाशी टनल से 17 दिन बाद 41 मजदूर जब बाहर की दुनिया में दाखिल हुए तो नज़ारा खुशियों भरा हो गया।
इससे पूर्व रेस्क्यू ऑपरेशन की पल- पल की अपडेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेते रहे और उनका मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ संपर्क रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने तक बना रहा।टनल से बाहर निकाले गए मजदूरों के लिए टनल के बाहरी भाग में गद्दे लगाए गए थे। उन गद्दों पर मजदूरों को बाहर निकालने के बाद रखा गया और वातावरण के अनुकूल मजदूरों के शरीर को तैयार करने के बाद उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई। मजदूरों के शारिरिक तापमान और स्वास्थ्य की स्थिति की जांच के लिए मेडिकल टीम भी सुरंग के अंदर मौजूद रही। खुदाई का काम पूरा होने के बाद स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी टनल में पहुंच गए थे, टनल के भीतर भी मुख्यमंत्री धामी ,प्रधानमंत्री से संपर्क साधे रहे। दीपावली पर 12 नवंबर की सुबह 4 बजे सुरंग का एक हिस्सा गिरने से ये 41 मजदूर टनल में फंस गए थे। करीब 418 घंटे के बाद स्केप टनल के निर्माण का कार्य पूरा होने और मजदूरों तक रेस्क्यू टीम के पहुंचने पर सभी ने राहत की सांस ली।जिससे मजदूरों की जान बचाने में सफलता मिल पाई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा ,’ मुझे यह जानकर राहत और खुशी महसूस हो रही है कि उत्तराखंड में एक सुरंग में फंसे सभी श्रमिकों को बचा लिया गया है। बचाव कार्य में बाधाओं का सामना करने के कारण 17 दिनों तक की उनकी पीड़ा मानवीय सहनशक्ति का प्रमाण रही है। देश उनके साहस को सलाम करता है। अपने घरों से दूर, बड़ा जोखिम मोल लेते हुए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए देश उनका आभारी है। राष्ट्रपति ने उन टीमों और सभी विशेषज्ञों को बधाई दी जिन्होंने इतिहास के सबसे कठिन बचाव अभियानों में से एक को पूरा करने के लिए अविश्वसनीय धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया है।ऑगर मशीन से ड्रिलिंग की बाधाएं दूर करने में प्रवीन और बलविंदर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिन्होंने ऑगर मशीन के आगे सरिया व गार्टर जैसी बाधाएं आने पर पाइप में घुसकर उन्हें काटा था।
संकरे से पाइप में गैस कटर से लोहा काटना किसी के लिए भी आसान नहीं था। प्रवीन यादव ने बताया कि इसके लिए उन्हें घुटनों के बल पाइप के अंदर जाकर तीन-तीन घंटे तक पाइप में रहना पड़ता था।एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद व निदेशक अंशु मनीष खल्खो ने सुरंग के अंदर ऑगर मशीन से ड्रिलिंग के काम की निगरानी की थी। झारखंड निवासी खल्खो ने सुरंग के अंदर फंसे झारखंड निवासी मजदूरों से झारखंडी बोली में बात कर उनका मनोबल बढ़ाये रखा। रेस्क्यू के दौरान मजदूरों के आक्रोश को शांत करने में प्रबंध निदेशक महमूद की भूमिका सराहनीय कही जा सकती है।इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिक्स के आने से रेस्क्यू ऑपरेशन सफलता की ओर बढ़ा। उन्होंने रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी एनएचआईडीसीएल व जिला प्रशासन को सही सलाह दी। साथ ही सुरंग के ऊपर से ऊधर्वाधर ड्रिलिंग के लिए भी सर्वे कर मार्गदर्शन किया।एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने राहत एवं बचाव अभियान का जिम्मा संभाला था। उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें यहां विशेष रूप से भेजा गया था। यहां पहुंचकर उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था के साथ सुरंग के अंदर रेस्क्यू ऑपरेशन को भी गति देने का काम किया और अंततः सफल हुए।तमिलनाडु निवासी विनोद ने सुरंग में फंसे मजदूरों तक जीवन रक्षा के तौर पर छह इंच की पाइप लाइन पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने इस ड्रिलिंग को पूरा करने में तीन दिन का समय लगाया। वह रात-दिन इसी काम में लगे रहे। छह इंच की पाइप आरपार होने के बाद मजदूरों तक पका भोजन पहुंचना शुरू हुआ,जिससे उनका जीवन सुरक्षित हो पाया।पोकलेन मशीन के ऑपरेटर संदीप सिंह ने सुरंग के ऊपर ऊर्धवाधर ड्रिलिंग के लिए 24 घंटे में अस्थायी सड़क तैयार कर दी थी। संदीप ने बताया कि यह काम उनके लिए भी आसान नहीं था। खड़ी पहाड़ी पर 1200 मीटर सड़क को बनाने के लिए उन्हें अपने एक अन्य साथी के साथ रात-दिन काम करना पड़ा था।लेकिन उन्हें खुशी है कि उनकी मेहनत रंग लाई और सभी मजदूरों को बचाया जा सका।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)