एक सच्चे मिशनरी पत्रकार थे दुर्गा शंकर भाटी! 

 डा. गोपाल नारसन
 पत्रकारिता जगत में दुर्गा शंकर भाटी एक ऐसा नाम रहा है ,जिनके बिना हरिद्वार की पत्रकारिता (journalism) अधुरी मानी जाती थी ।तभी तो वे हरिद्वार में  पत्रकारिता जगत के प्रर्याय बन गए थे। एक जमाने में प्रसिद्ध उद्योगपति बिरला जी के विश्वासपात्र रहे दुर्गा शंकर भाटी ने हिन्दुस्तान समाचार ( Hindustan News) पत्र समूह से 28 वर्षी तक जुडा रहने पर भी कभी न तो लालच की पत्रकारिता की और न ही स्वार्थ की राजनीति को गले लगाया। अलबत्ता उनका अखबार हमेशा गरीबों की लाठी बनता रहा और जीवन पर्यन्त वे गरीबो के लिए जीते और उनके लिए ही मरते रहे।कई वर्ष पहले हुए उनके निधन के बावजूत आज तक  उन गरीबो को जब भी दुर्गााकंर भाटी याद आते है तो वे अपने  आंसू नही रोक पाते है। सही मायनों में गरीबो,शोषितों और पीडितों के खैरख्वाह माने जाते थे दुर्गा शंकर भाटी ।
 उनके ललतारोह पुल के निकट स्थित उनके कार्यालय में हमेशा दबे कुचले गरीब,असहाय लोग अपनी फरियाद लेकर आते रहते थे ।उनमें बडी संख्या ऐसे लोगो की भी होती थी ,जो भाटी जी के पांव छूकर स्वयं को धन्य समझते थे।भाटी जी भी हर एक की फरियाद बडे ध्यान से सुनते और फिर उस फरियाद को पूरा करने के लिए जीजान लगा देते।पत्रकारिता के कारण नेताओं ,अधिकारियो और धनाढय वर्ग से बने संबन्धों को वे इन गरीबों की मदद के लिए सहजता से ही भुना लेते थे। दूसरों के दुख को अपना दुख समझना और दूसरे की खुाी में शामिल होकर उसे दोगुनी कर देना दुर्गा शंकर भाटी को बखूबी आता था।
  वरिठ पत्रकार एवं समाज सेवी रहे दुर्गा शंकर भाटी को कभी भुलाया नही जा सकता। प्रसिद्ध उद्योगपति बिरला जी के साथ व्यक्तिगत संबंधो के कारण एवं अपनी कर्मठता के बलबूते  हिन्दुस्तान टाईम्स समूह से लगातार 28 वर्षो तक हरिद्वार ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबद्ध रहे और बिरला जी के निधन के बाद इस समूह से बदले हालातो के चलते समझौता न कर स्वयं को सहजता से अलग कर लेने वाले   दुर्गा शंकर भाटी ने कभी अपने सिद्धान्तो से समझौता नही किया।तभी वे हिन्दुस्तान समाचार पत्र छोडने के बाद भी सक्रिय पत्रकारिता में बने रहे और  अपने प्रधान संपादन में प्रकाशित दैनिक हरिचन्द्र उवाच और हिन्दू साप्ताहिक के माध्यम से जीवन पर्यन्त स्वयं को सक्रिय पत्रकारिता से जोडे रहे। उन्होने जीवन में झंझावातों से जूझते हुए भी कभी हार नही मानी और अपने मिान को हमेशा तरजीह दी।
  जब उन्हें अचानक  कैंसर की बीमारी का पता चला, फिर भी वे धबराये नही अपितु उन्हे उम्मीद थी कि वे कैंसर को परास्त कर देगे और फिर से नई जीदंगी का सूरज अपने जीवन में उगायेगे। जानलेवा बीमारी के बावजूद मौत के खौफ से बिना धबराये  वे अपने जीवन के अन्तिम दिनों में भी पत्रकारिता में सक्रिय रहे और समाज के लिए समर्पित रहे।   अपनी कुशल क्षेम बताने के बजाए दुसरे की कुशल क्षेम पूछते रहना और दूसरो के दर्द को हमेशा अपना दर्द  समझने वाले दुर्गा शंकर भाटी जहां पत्रकारो में बेहद लोकप्रिय रहे, वही तत्कालीन नगरपालिका हरिद्वार के सभासद के रूप में भी उन्होने व उनकी धर्मपत्नी व अब पुत्र अनिरुद्ध भाटी ने खास मुकाम हासिल किया।जो उनके सोशल स्टेटस का सिंबल बना।जिसकारण आज भी वे हरिद्वार के लोगो की यादों में बसे है।
दुर्गा शंकर भाटी के धर और कार्यालय में सवेरे से ही लोगो का मजमा इस बात का सूचक था कि भाटी जी का जीवन अपने लिए नही अपितु गरीबो,दलितो,असहायो के लिए समर्पित था। अपने समकालीन और आयु में छोटे पत्रकारों को गले लगाये रखने में माहिर भाटी जी किसी भी पत्रकार के साथ या फिर उसके परिवार में कोई दुख तकलीफ होती तो वे तब तक चैन से नही बैठते जब तक कि वे उसकी सहायता नही कर देते। तभी तो उनके प्रति सम्मान का भाव सभी छोटे बडे पत्रकारो में हमेशा रहा और वे हमेशा सबके दिलो पर छाये रहे और सम्मान के पात्र बने रहे।
    सच पूछिए तो दुर्गा शंकर भाटी की समाज में होने वाली घटनाओं से संबन्धित समाचारों पर गहरी पकड थी। आम पत्रकारों से उन तक न जाने कैसे समाचार की जानकारी पहुंच जाती थी।अपने साथी पत्रकारों को समाचार शेयर करने में  जरा भी गुरेज न करने वाले भाटी जी का व्यवहार कभी भी किसी के साथ कटुता का नही रहा। हमेाा अपने मधुर व्यवहार और योग्यता से दुसरो को प्रभावित करते रहे दुर्गा शंकर भाटी को पत्रकारिता विरासत में मिली थी। उनके पिता हरिचन्द्र भाटी ने उस दौर में हिन्दी साप्ताहिक हिन्दू निकाला था,जब अखबार निकालना एक चुनौती भरा काम होता था। पत्रकारिता के क्षेत्र में हमेाा मिानरी रहे हरिचन्द्र भाटी के आदर्शों की गहरी छाप दुर्गा शंकर पर पडी, जिसे उन्होने जीवन र्प्यन्त निभाया। तभी तो दुर्गा शंकर भाटी अब इस दुनिया में न होकर  भी अपने चाहाने वालों की यादों में हमेशा अमर है और अमर रहेगे।
 दुर्गा शंकर भाटी ने जीवन के आखिरी सोपान पर चढने से पहले ही पत्रकारिता की पैतृक विरासत अपने सुपुत्र अनिरूद्ध भाटी को सोंप दी थी। जिसकारण दैनिक हरिचन्द्र उवाच और साप्ताहिक हिन्दू पर उनके जाने से कोई संकट नही रहा।  अपने पिता हरिचन्द्र भाटी की स्मृति को बनाये रखने के लिए उन्होने गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय में पत्रकरिता पाठयक्रम में प्रथम आने वाले छात्र को स्वर्ण पदक प्रदान करने की सुखद परम्परा भी बनाई। पत्रकारिता जगत का यह सूर्य उदयीमान रहता तो पत्रकारिता के लिए ही नही ,समाज के लिए भी सुखद होता ।उन्हें मेरा शत शत नमन।

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