दुनियाभर के देशों ने एआई के आशंकित खतरों से बचाव के लिए प्रतिबद्धता जताई
पहले एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन में भारत ने दिया इसे रेगुलेट करने को ग्लोबल फ्रेमवर्क बनाने का सुझाव
प्रमोद झा, नई दिल्ली।
मानव अपनी जिस अक्लमंदी से धरती पर राज करता है, वह उसके अस्तित्व के लिए भी खतरा का कारण भी बन सकती है। ऐसा कोई शायद सोच भी नहीं सकता। मानव-बुद्धि के कृत्रिम रूप यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( Artificial Intelligence) के इस्तेमाल को लेकर दिग्गज अमेरिकी कारोबारी एलन मस्क(Elon Musk) का हालिया बयान भले ही कटाक्ष हो, लेकिन उसका संकेत यही है।
मस्क ने कहा-‘‘अगर पर्यावरणवादी ( Environmentalists) इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करेंगे तो वे धरती को बचाने के लिए मानव का विनाश कर सकते हैं।’’ उनका यह बयान इंग्लैंड में संपन्न हुए कृत्रिम बुद्धिमता शिखर सम्मेलन से ठीक पहले आया था, जिसमें वह खुद भी शामिल हुए थे।
कृत्रिम बुद्धिमता अत्याधुनिक एवं उत्कृष्ट डिजिटल प्रौद्योगिकी है, जिसका सदुपयोग करके मानव जीवन को बेहतर बनाने एवं आर्थिक विकास को रफ्तार देेने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। कृषि, शिक्षा एवं चिकित्सा समेत अनेक क्षेत्रों में एआई के इस्तेमाल का बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इससे डिजिटल शिक्षक और डिजिटल चिकित्सक जैसे अनेक क्रांतिकारी अनुप्रयोग देखने को मिलेंगे और डिजिटल दुनिया के विकास को पंख लग जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि एआई की रचनात्मक और सकारात्मक शक्ति का उपयोग करके दुनिया को बेहतर बनाया जा सकता है। मगर, विज्ञान के अन्य आविष्कारों की भांति इसका भी गलत उपयोग हो सकता है।
लिहाजा, एआई के दुरुपयोग के जोखिमों की आशंकाएं जताई जा रही हैं। खासतौर से डीपफेक और साइबर अपराध को अंजाम देने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जाना गंभीर चिंता का विषय है। डीपफेक एआई का एक ऐसा एल्गोरिदम जो वास्तविक दिखने वाले फुटेज में लोगों की मौजूदगी और आवाज को बदल देता है। हाल ही में एक डीफफेक वीडियो काफी वायरल हुआ, जिसमें अभिनेत्री रश्मिका मंदाना को निशाना बनाया गया था। इस तरह व्यक्ति की निजता से लेकर लोकतंत्र को खतरे में डालने का खेल भी खेला जा सकता है। सच तो यह है कि एआई के दुरुपयोग के क्या-क्या खतरे हो सकते हैं, इसका हम ठीक से अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।
यही वजह है कि कुछ प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ एआई के जोखिमों को जलवायु संकट की तरह एक गंभीर वैश्विक चुनौती के रूप में देखते हैं और इसके इस्तेमाल पर व्यापक विमर्श की जरूरत समझते हैं। उनका मानना है कि परमाणु शक्ति की तरह इसके भी निर्बाध प्रयोग की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए।
गूगल के पूर्व चीफ एग्जीक्यूटिव एरिक श्मिट और डीपमाइंड के सह-संस्थापक मुस्तफा सुलेमान का सुझाव है कि जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, प्रभाव और भावी खतरों के नियमित मूल्यांकन के लिए इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी है उसी प्रकार का पैनल एआई के लिए भी होना चाहिए। उन्होंने आईपीसीसी की तर्ज पर एआई के लिए इंटरनेशनल पैनल ऑन एआई सेफ्टी यानी आईपीएआईएस बनाने का सुझाव दिया है, जो नियमित तौर पर और बगैर पक्षपात के एआई और इसके खतरों व संभावित प्रभावों का मूल्यांकन कर सके।
इंग्लैंड में संपन्न पहले एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन में शामिल होने वाले अमेरिका और चीन समेत दुनिया के 28 देशों के प्रतिनिधियों ने इसके आशंकित खतरों से बचाव के लिए एक साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जाहिर की। भारत ने एआई को रेगुलेट करने के लिए एक ग्लोबल फ्रेमवर्क बनाने सुझाव दिया। भारत की ओर से केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी और कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भ्रामक सूचनाओं के प्रसार के लिए इंटरनेट को हथियार बनाने के खतरों जिक्र करते हुए इस बात पर बल दिया कि इनोवेशन को रेगुलेशन से आगे नहीं निकलने देना चाहिए।
उम्मीद है कि अगले महीने नई दिल्ली में होने जा रहे जीपीएआई शिखर सम्मेलन एवं इंडिया एआई शिखर सम्मेलन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दुरुपयोग के जोखिमों से बचाव की दिशा में भारत के सुझावों पर और अधिक गहन मंत्रणा होगी। इसके बाद अगले साल दक्षिण कोरिया में होने वाले ग्लोबल एआई शिखर सम्मेलन में कुछ ठोस नतीजे निकलकर सामने आएंगे।
भारत ने अगले कुछ साल में अपनी डिजिटल इकाॅनमी को बढ़ाकर एक ट्रिलियन डाॅलर करने का लक्ष्य रखा है। देश की डिजिटल इकाॅनमी को रफ्तार देने में एआई जैसी उन्नत व अद्यतन प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल से काफी लाभ मिल सकता है। इसलिए, इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन मिलना जरूरी है।
वहीं, एआई के इस्तेमाल से नौकरियां खत्म होने की आशंका भी जताई जा रही है, जिससे विशाल आबादी वाले देश भारत की अर्थव्यवस्था के विकास पर असर पड़ सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एआई में पारंपरिक रूप से किये जाने वाले कार्य अगर एआई के जरिये स्वचालित रूप से कर लिए जाएंगे तो लोगों की नौकरियां तो जाएंगी। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नई प्रौद्योगिकी हमेशा नौकरियों के नये अवसर भी पैदा करती है।
इस संबंध में यूके की एक रिसर्च कंपनी द्वारा भारत में नियोक्ता और नौकरियों की तलाश में रहने वाले लोगों पर करवाए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, 85 फीसदी नियोक्ता मानते हैं कि एआई के इस्तेमाल से अगले पांच साल के भीतर नौकरियों के नये अवसर पैदा होंगे। वहीं, 63 फीसदी जॉब-सीकर्स एआई की संभावनाओं को लेकर उत्साहित थे। उनमें से 53 फीसदी इस बात से सहमत थे कि एआई से और अधिक नौकरियां पैदा होंगी।
स्मरण रहे कि देश में जब कंप्यूटर का इस्तेमाल शुरू हुआ था उस समय भी नौकरियां जाने को लेकर इसी तरह की आशंका जताई जा रही थी। मगर, हमने देखा कि कंप्यूटर आने से नौकरियों के नये अवसर पैदा हुए और कंप्यूटर का प्रशिक्षण लेने वाले कर्मियों को बेहतर सैलरी मिलने से उनके जीवन-स्तर में सुधार हुआ।
इसमें कहीं दो राय नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य बहुत ही रोचक है और भारत में इसके विकास की अपार संभावनाएं हैं। इससे देश के युवाओं के लिए अवसरों के नये-नये द्वार खुलेंगे।