शबाब पर विधानसभा चुनाव

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में कांग्रेस दमदार फाइट में

पांच राज्यों में भाजपा के सामने आसान हासिल करना बना चुनौती

मित नेहरा, नई दिल्ली।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assembly elections)  वोटिंग की शुरुआत हो चुकी है। क्योंकि बीते सात नवम्बर को ही मिजोरम और छत्तीसगढ़ के प्रथम चरण की वोटिंग सम्पन्न हो गई है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवम्बर को है। इसके बाद राजस्थान में 23 और तेलंगाना में 30 नवम्बर को वोटिंग होते ही पांचों राज्यों में विधानसभा चुनावों की वोटिंग सम्पन्न हो जाएगी। इन चुनावी राज्यों में नौ अक्टूबर 2023 से ही आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है।  इस विशेष रिपोर्ट में हम जानेंगे कि कौन सी पार्टी के उम्मीदवारों में कितना है दमक्या है पार्टियों की रणनीतियां और किस तरह पोस्टर के कारण दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

चार नवम्बर 2023 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग में हुई एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Prime Minister Narendra Modi) ने ऐलान किया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का 5 साल का विस्तार कर दिया गया है। यानी लाभार्थियों को पांच किलो गेहूं या चावल देने की यह योजना दिसंबर 2028 तक योजना चलती रहेगी।  केंद्र सरकार ने इसे सबसे पहले 30 जून 2020 को शुरू किया था। इसके बाद इसे कई मौकों पर बढ़ाया जा चुका है। अभी यह योजना दिसंबर 2023 में यानी अगले महीने समाप्त होने वाली थी लेकिन अब 5 साल के विस्तार के बाद लोगों को दिसंबर 2028 तक इस योजना का लाभ मिलता रहेगा।

वैसे तो, केंद्र या राज्य सरकार ( state government) समय-समय पर कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करती रहती हैं पर इस घोषणा को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (अगले महीने के अंत में समाप्त होने वाली) इस योजना को आगे बढ़ाने के बारे में बात करने के लिए अपने आधिकारिक पद का इस्तेमाल किया है। उनकी तरफ से उस वक्त, और वह भी एक चुनावी रैली ( Election rally) में, इस कदम के ऐलान के वास्ते जल्दबाजी दिखाने की कोई भी जरूरत नहीं थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि तीन दिसंबर को चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद भी इस योजना को बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय बाकी था। ऐसा लगता है कि इसका मकसद मतदाताओं को लुभाना और राजनीतिक लाभ हासिल करना है। महत्वपूर्ण बात यह रही कि न तो चुनाव आयोग ने और न कांग्रेस समेत किसी भी राजनीतिक दल ने इस उल्लंघन का संज्ञान लिया। शायद कोई भी पक्ष जनता की नाराजगी झेलने के मूड में नहीं है। चुनाव वाले पांच राज्यों की आबादी इस योजना के कुल लाभार्थियों का लगभग 17 परसेंट है। चाहे कुछ भी हो इस तरह की योजना का ऐलान चुनावी राज्यों में चुनावी रैली में कतई नहीं किया जाना चाहिए।

कौन सी पार्टी कर सकती है क्लीन स्वीप

चर्चा करते हैं कि इन पांचों चुनावी राज्यों में कौन सी पार्टी कितने पानी में है। देखा जाए तो आंकड़ों के हिसाब से भाजपा इस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी है, संगठन के हिसाब से भी और विधायकों व सांसदों की संख्या के लिहाज से भी। मगर इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही टक्कर में दिखाई दे रही है। तेलंगाना में वह केवल 15 से 20 सीटों पर ही उपस्थिति दर्ज करवा पा रही है और बात की जाए मिजोरम की तो वहां कोई भी राजनीतिक दल भाजपा के साथ आने को ही तैयार नहीं है। वजह है कि मणिपुर में हुई हिंसा में भाजपा के रुख कारण मिजोरम की जनता व क्षेत्रीय दल खफा हैं।

इसका मतलब है कि भाजपा इन पांच राज्यों के चुनावों में किसी भी सूरत में 5-0 से जीत हासिल नहीं कर पा रही है। उसकी लड़ाई 3-0 से जीत हासिल करने की लग रही है, मगर इस बारे में भी कहा जा सकता है कि बड़ी कठिन है डगर पनघट की!

दूसरी तरफ, अगर कांग्रेस की बात की जाए तो वह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में दमदार फाइट में है और मिजोरम में भी कांग्रेस के प्रति कोई खास विरोध नहीं है। अगर पूछा जाए कि क्या कांग्रेस इन चुनावों में 5-0 से जीत हासिल कर पायेगी? तो इसका जवाब यह है कि अगर वह 5-0 से जीत हासिल न भी कर पाए तो भी वह बाकी राजनीतिक पार्टियों में इस आंकड़े के नजदीक सिर्फ वह ही दिखाई देती है। कांग्रेस को इन राज्यों में सत्ता की ख़ुशबू आने लगी है, यही वजह है कि दिल्ली में बरसों से वीरान पड़े अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के केंद्रीय कार्यालय में नेताओं की भारी भीड़ जुटने लगी है। हिमाचल के बाद कर्नाटक में बम्पर जीत के बाद कांग्रेस का मनोबल आसमान छू रहा है।

इन पांच राज्यों में अगर क्षेत्रीय दलों के प्रदर्शन की चर्चा करें तो तेलंगाना व मिजोरम को छोड़कर बाकी तीनों बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय दलों की कोई खास भूमिका नहीं दिखाई दे रही है। तेलंगाना में बीआरएस के लिए अपनी सत्ता बचाना बहुत बड़ी चुनौती है। उधर मिजोरम में चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं, नतीजे तीन दिसम्बर को ही आएंगे।

इस समय यहां मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ़) 40 में से 27 सीटें जीतकर सत्ता में है। मगर उसका गठबंधन भाजपा के साथ रहा है, हालांकि मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने इन चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ स्टेज शेयर करने से इंकार कर दिया था। उन्हें डर था कि इससे मिजोरम की जनता एमएनएफ से नाराज हो जाएगी।

पार्टियों की रणनीतियां

पांच राज्यों के चुनावी माहौल में भाजपा व कांग्रेस की रणनीतियों के बारे में भी चर्चा करना जरूरी है।अटल बिहारी वाजपेयी के समय से ही भाजपा रणनीति के मामले में सुनियोजित तरीके से काम कर रही है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसमें और भी इजाफा हुआ है। इस समय भाजपा अपने सभी चुनाव, एक अत्यंत कुशल मैनेजमेंट के तहत लड़ती है। सभी साधन व संसाधनों को इसमें झोंक दिया जाता है। भाजपा का एक ही ध्येय रहता है येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना यानी किसी भी तरीके से जीत हासिल करनी है।

दूसरी तरफ, पिछले कई दशकों से कांग्रेस का चुनाव बिखरा हुआ रहा है। लेकिन हालिया कुछ चुनावों में कांग्रेस ने इसमें काफी बदलाव किया है। उसने हिमाचल, कर्नाटक में बेहतर तरीके से चुनाव लड़ा। उसी तरीके से वह अब तेलंगाना, मध्य प्रदेश और बाकी राज्यों में चुनाव लड़ रही है।

पिछले चुनाव के बाद डेढ़ साल तक मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही थी। लेकिन 18 साल सरकार चलाने के बाद शिवराज सिंह चौहान का विरोध उन्हीं की पार्टी में ज्यादा नजर आ रहा है। कमलनाथ ने भी मध्यप्रदेश छोड़ा नहीं और वे लगातार यहाँ सक्रिय रहे हैं। मध्यप्रदेश में अब कांग्रेस पूरी तरह एकजुट होकर चुनाव लड़ती दिखाई दे रही है।

दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की तुलना में रमन सिंह इतने सक्रिय नहीं रहे। कांग्रेस का नेतृत्व वहां काफी बेहतर स्थिति में दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रैली करके 5 किलो राशन की योजना को आगामी पांच वर्षों तक बढ़ाने की घोषणा करनी पड़ी। भाजपा का मानना है कि इससे गरीब वर्ग उससे जुड़ेगा।

राजस्थान की स्थिति सबसे ज्यादा डांवाडोल है। यहां भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद उसी की नेता वसुंधरा राजे सिंधिया है। भाजपा ने वसुंधरा को इस बार बिल्कुल किनारे किया हुआ है। राजस्थान में भाजपा भावनात्मक ध्रुवीकरण के मुद्दे पर चल रही है। इसका सारा दारोमदार नरेन्द्र मोदी पर है। भाजपा यहां केंद्रीय नेतृत्व के मॉडल पर चुनाव लड़ रही है।

कांग्रेस यहां क्षत्रप मॉडल पर चुनाव लड़ रही है। अशोक गहलोत ही यहां चेहरा और स्टार प्रचारक हैं। सचिन पायलट के विरोध के स्वर क्षीण होते-होते लगभग बन्द हो गए हैं। शायद उन्हें समझा दिया गया है कि अशोक गहलोत की रिटायरमेंट के बाद वे ही यहाँ पार्टी का चेहरा होंगे।

राजस्थान की पहचान ऊंट से भी है। इस बार वहां राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा, यह वसुंधरा राजे सिंधिया के मूड पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा!

दांव पर लगी मोदी की प्रतिष्ठा

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़, हर राज्य में भाजपा पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम और तस्वीर छाई हुई है। अगर इन राज्यों में चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आते हैं तो निसंदेह मोदी मैजिक को और बल मिलेगा। लेकिन, परिणाम विपरीत आये तो इसका असर लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित कर सकता है। मतलब भाजपा दोधारी तलवार लेकर चल रही है।

दूसरी तरफ, कांग्रेस ने सभी राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं को ही पोस्टर पर बड़ी जगह दी है। इससे ग्रासरूट तक पहुंचने की कवायद कहा जा सकता है। मध्यप्रदेश में भाजपा के पोस्टर्स पर सीएम शिवराज, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की तस्वीरें नजर तो आ रही हैं लेकिन सबसे बड़ी और सबसे सामने वाली तस्वीर तो नरेन्द्र मोदी की ही दिखाई दे रही है।

उधर,कांग्रेस की बात करें तो ‘कांग्रेस आएगी, खुशहाली लाएगी’ अभियान के पोस्टर हों या चुनाव से जुड़े दूसरे पोस्टर, पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पोस्टर पर कमलनाथ की बड़ी तस्वीर नजर आ रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका की भी मौजूदगी दिखाई देती है।

राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा का चिरपरिचित चेहरा रही हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। भाजपा ने कहा है कि हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे। इसका असर पार्टी के पोस्टर, चुनावी रैलियों में दिख भी रहा है। यहां ‘मोदी साथे राजस्थान’ नाम से अभियान चल रहा है। भाजपा के हर पोस्टर पर नरेंद्र मोदी की बड़ी तस्वीर नजर आ रही है।

उधर, कांग्रेस ने चाहे मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं की है फिर भी कांग्रेस के पोस्टर से लेकर चुनावी जनसभाओं तक, यह झलक रहा है कि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री चेहरा हैं। ‘पूरे किए वादे’ बताती लिस्ट का पोस्टर हो या कांग्रेस के लिए वोट की अपील का पोस्टर, पूरे प्रदेश के सभी पोस्टरों में एक कॉमन बात है। वह है अशोक गहलोत की बड़ी तस्वीर।

छत्तीसगढ़ के चुनाव के लिए तो भाजपा ने अपना घोषणा पत्र भी मोदी की गारंटी नाम से जारी किया है। पार्टी के हर चुनावी पोस्टर पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर प्रमुखता के साथ नजर आ रही है।

दूसरी तरफ, यहां कांग्रेस का चुनाव अभियान पूरी तरह से भूपेश बघेल के चेहरे के इर्द-गिर्द ही नजर आ रहा है। पार्टी के पोस्टरों पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बड़ी तस्वीर के साथ ऊपर मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की छोटी-छोटी तस्वीरें भी नजर आ रही हैं।

देखना दिलचस्प रहेगा कि कहीं क्षत्रप बड़ा शिकार करने में कामयाब तो नहीं हो जाएंगे! यह भी हो सकता है कि चुनाव के अंतिम चरण तक पोस्टरों पर ये चेहरा हट जाए या बदल जाये!

चलते-चलते

महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) 29 सितंबर 2023 को कानून बन गया था। इस दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सहमति मिलने के बाद भारत सरकार ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देते हुए गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया। इससे पहले यह बिल संसद के दोनों सदनों से भारी बहुमत से पास हुआ था।

गौरतलब है कि 18 से 21 सितंबर तक चले संसद के विशेष सत्र के दौरान लोकसभा और राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया गया था। इस पर दोनों सदनों में लंबी चर्चा चली। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 परसेंट आरक्षण का प्रावधान है। भाजपा इस अधिनियम को लेकर आई थी।

टेक्निकल दिक्कतों से इस कानून को अमलीजामा पहनाने में 10/15 वर्ष लग सकते हैं। इस कानून में विधानसभाओं में भी महिलाओं को 33 परसेंट आरक्षण दिया गया है।

देशवासियों को लग रहा था कि भाजपा ने जिस तरह जल्दबाजी में संसद का विशेष सत्र आयोजित करवाके यह कानून बनवाया है। उससे वह महिला आरक्षण के प्रति बेहद गम्भीर है। कानूनी तौर पर अभी यह सम्भव नहीं है पर कोई भी पार्टी अपनी 33 परसेंट टिकटें महिलाओं को देकर यह मैसेज दे ही सकती है।

लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में यह केवल जुमला ही साबित हुआ भाजपा समेत किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को 33 परसेंट टिकटें देने की तो छोड़ो, इस पर चर्चा ही नहीं की! हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और!

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