धुआं-धुआं जिंदगी

 दिवाली के बाद दिल्ली बना दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर
चीन का मॉडल अपना कर भारत भी कर सकता है प्रदूषण का परमानेंट इलाज

अमित नेहरानई दिल्ली।

वो चार दिसंबर 1952 की सुबह थी। ग्रेटर लंदन में कम दबाव के चलते हवा में निर्वात की स्थिति बनी हुई थी। हवा बिल्कुल भी नहीं चल रही थी। ठंड बहुत ज्यादा थी। बन्द हवा व भीषण ठंड के कारण वातावरण में मौजूद प्रदूषण ( Pollution)वाले तत्वों की एक सतह तैयार हो रही थी। कोहरे से स्मॉग की बेहद मोटी परत बनती चली गई। इस स्मॉग में मुख्य तौर वह धुआं शामिल था जो घरों और फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकल रहा था। देखते ही देखते लंदन में अचानक दिन में ही अंधेरा छा गया। लोगों को सांस लेने में दिक्कत आने लगी और उनका दम घुटने लगा। बाहर निकलना तो बेहद खतरनाक (Dangerous था। क्योंकि दृश्यता एक फिट की भी नहीं थीलोगों को अपना शरीर तक नहीं दिखाई दे रहा था। सार्वजनिक परिवहन ठप हो गया यहां तक कि एम्बुलेंस को भी बन्द कर दिया गया। क्योंकि ड्राइविंग करना असंभव था।
फिर भी शहर के सभी अस्पतालों में सांस के मरीजों की भयंकर भीड़ लग गई। लोग बाहर निकलते ही पटापट मर रहे थे। क्योंकि उनके स्नायु तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो गए थे और फेफड़े संक्रमित ( infected) हो गए। सांस लेना दूभर थागले में समस्या व आंखों में बुरी तरह जलन थी। ये स्मॉग घरों और बंद जगहों में भी घुस गया। लंदन पर पहले भी स्मॉग के अटैक हुए थे लेकिन ये सबसे बड़ा था। इसके चलते कंसर्ट और फिल्म स्क्रीनिंग भी बंद करनी पड़ीं और सभी आउटडोर स्पोर्ट्स इवेंट्स रद्द कर दिए गए। लोगों ने इस स्मॉग को पी-सूपर्स कहा क्योंकि ये मटर के सूप जैसा घना था।
यह स्मॉग अगले पांच दिन तक शहर को जकड़े रहा और अनुमान है कि इस ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन ने 15 हजार लोगों की जान ले ली थी। मार्कस लिप्टन ने फरवरी 1953 में हाउस ऑफ कामंस को बताया कि इस स्मॉग से 6000 लोग मारे गए और 25 हजार से ज्यादा  बीमार हो गए। बाद में हुए शोध बताते हैं कि इस खतरनाक स्मॉग ने 15 हजार लोगों की जान ले ली थी। ये तो थी ग्रेट ब्रिटेन की यानी लंदन की घटनाइस घटना से लंदन ने बहुत सबक सीखे और शहर के वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए अनेक योजनाएं व कानून बनाये।

अब बात करते हैं भारत की
वर्ष 2016 में एक से सात नवम्बर तक दिल्ली-एनसीआर ( Delhi-NCR) समेत पूरे गंगा मैदानी क्षेत्र को भीषण स्मॉग ने चपेट में ले लिया। वातावरण में पीएम 2.5 और पीएम 10 पार्टिकुलेट मैटर का स्तर 999 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गयाजबकि इन प्रदूषकों के लिए सुरक्षित सीमा क्रमशः 60 और 100 है। इसका असर लाहौर तक भी देखा गया। हालात बेकाबू हुए तो दिल्ली शहर में सड़कों पर गाड़ियों की संख्या घटाने के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूले को भी लागू किया गया। शिक्षण संस्थानों व ऑफिसों को बन्द करना पड़ा। निर्माण कार्यों पर रोक लगानी पड़ी। सड़कों पर पानी से छिड़काव किया गया लेकिन कुछ दिनों की राहत के बाद कोई ज्यादा असर नहीं दिखा। कुछ दिनों बाद जब बारिश हुई तो लोगों को इस जानलेवा स्मॉग से थोड़ी मुक्ति मिल पाई।
दरअसलदिल्लीएनसीआर समेत हरियाणा व पंजाब में स्मॉग पिछले पांच-छह दशकों से तीव्रता से बढ़ता आ रहा है लेकिन पिछले 30 सालों में इसके कारण यहां खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है। अक्टूबर महीने की शुरुआत से ही शुरू हो जाने वाले इस स्मॉग के दौरान यहां मेडिकल एमरजेंसी के हालात उत्पन्न हो जाते हैं। जब तक दिसंबर में बारिश नहीं हो जातीतब तक यह स्मॉग दिल्ली व एनसीआर में कहर बरपाता रहता है। इस पर नियंत्रण के लिए सरकारों के पास न तो कोई ठोस प्लान दिख रहा और न ही कोई ठोस कदम उठते हुए दिख रहा।
हालात कितने भयावह हो चुके हैंयह ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट पढ़ने से पता चलता है। इसके अनुसार वर्ष 2019 में भारत में प्रदूषित हवा के कारण 16.7 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। एक संस्था आई क्यू एयर की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली दुनिया के प्रदूषित शहरों की लिस्ट में नंबर-पर है और दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में नंबर वन पर दिल्ली तो कोलकाता और मुंबई का स्थान भी इस लिस्ट में हैं।

नरक बनती जिंदगी
इस साल भी इस पूरे इलाके में स्मॉग ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है। इसके चलते नवम्बर को दिल्ली सरकार ने प्राइमरी स्कूलों को 10 नवंबर तक बंद करने के आदेश दे दिए। जबकि छठी से 12वीं तक की पढ़ाई ऑनलाइन करने का सुझाव दिया है। ग्रेप की पाबंदियां लागू कर दी गई हैं। दिल्ली में वाहनों के लिए 13 से 20 नवंबर तक ऑड-ईवन लागू करने की घोषणा कर दी गई थी (मगर नवम्बर की रात को एनसीआर इलाके में हुई बूंदाबांदी से प्रदूषण के स्तर में कमी आने से इस पर रोक लगा दी गई)। दिल्ली में डीजल से चलने वाले मालवाहक गाड़ियों पर रोक लगा दी गई है। प्रदूषण को लेकर नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हुई सुनवाई में कोर्ट ने चिंता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब में भारी मात्रा में खेतों पराली जलाई जा रही है।
कुल मिलाकर स्कूल बन्द करनेकंस्ट्रक्शन पर रोक समेत रोजगार के कई साधनों पर पाबंदियों के बावजूद इस स्मॉग का सबसे ज्यादा बुरा असर स्वास्थ्य पर हो रहा है। बच्चों-बुजुर्गों और प्रेग्नेंट महिलाओं के स्वास्थ्य को इससे ज्यादा खतरा है। स्मॉग बढ़ते ही अस्पतालों में सांस की तकलीफस्किन और लंग्स से जुड़े मरीज बढ़ गए हैं। खांसी और नाक बंद होने के मामले बढ़े हैं। ओपीडी में आने वाले मरीजों में सांस की तकलीफ के रोगियों में 20 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। सांस लेने में तकलीफनाक बहनागले में खराशसीने में संक्रमणएलर्जी और अस्थमा के मामले बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। पार्टिकुलेट मैटर का हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। यह व्यक्ति की उम्रस्वास्थ्य की स्थितिगर्भावस्थाव्यावसायिक जोखिम और धूम्रपान की आदतों पर भी निर्भर करता है। डॉक्टर इसके चलते लोगों को आंख आनेसांस की तकलीफस्किन एलर्जीसिरदर्दनींद न आनाध्यान एकाग्र न कर पानाउल्टी और पेट में दर्द को लेकर चेतावनी दे रहे हैं।

क्यों आई ऐसी नौबत
लगभग 40 साल पहले इस क्षेत्र में स्मॉग की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन बढ़ते शहरीकरणऔद्योगिकीकरणगाड़ियों की संख्या बढ़नेमशीनों के इस्तेमाल बढ़नेबिल्डिंग्स निर्माण और सड़कों के निर्माण के कारण धूल उड़ने और खेतों में धान पराली जलाने के चलन के कारण स्मॉग की समस्या ने विकराल रूप धारण करना शुरू कर दिया। हवा में प्रदूषण फैलाने वाले प्रदूषित कणों जैसे पीएम 2.5, सल्फरडाई ऑक्साइड और पीएम 10 जैसे जहरीले तत्व बढ़ते चले गए।
1991 के बाद भारत में औद्योगिकीकरण को खूब बढ़ावा दिया गया। औद्योगिकरण बढ़ा तो हवा में प्रदूषण भी बढ़ा। आबादी भी बढ़ती चली गई, 2001 में दिल्ली-एनसीआर की आबादी करोड़ 60 लाख थीये 2011 तक बढ़कर ढाई करोड़ से ऊपर पहुंच गई। इसी तरह 2004 में दिल्ली-एनसीआर में गाड़ियों की संख्या 42 लाख थींजबकि 2018 में ये संख्या एक करोड़ से ऊपर हो गई। उद्योग-धंधे बढ़े तो कंस्ट्रक्शन का काम भी बढ़ता गया। सघन आबादी और मशीनीकरण ने हवा में प्रदूषण को जबरदस्त तरीके से बढ़ा दिया।
आखिरकार, 1998 में दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण लेवल को लेकर एक एक्शन प्लान लाया गया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और 2010 के दशक में जाकर एक्शन की शुरुआत हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सीएनजी जैसे स्वच्छ ऊर्जा से चलने वाले पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ानेउद्योग-धंधों और फैक्ट्रियों को दिल्ली शहर से बाहर शिफ्ट करने समेत कई आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी दिल्ली में बसों-ऑटों को पेट्रोल-डीजल की बजाय सीएनजी पर शिफ्ट करने के लिए सख्त नियम बनाए गए। एनजीटी ने भी अनेक पाबंदियां लगानी शुरू कीं। लेकिनहालात साल दर साल गंभीर होते चले गए।
वर्ष 2014 में आई एक पर्यावरण रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले एक दशक में देश में हवा की गुणवत्ता में 100 परसेंट तक की गिरावट आई है और यदि सख्त कदम नहीं उठाए गए तो शहरों में हालात और भी ज्यादा बिगड़ते चले जाएंगे। डब्ल्यूएचओ के अनुसारदुनिया में हर साल वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से 70 लाख लोगों की जान चली जाती है। भारत में यह आंकड़ा हर साल 20 लाख लोगों का है। यानी 20 लाख भारतीय प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं के चलते जान गंवा देते हैं। अनुमान है कि साल 2030 तक संसार की 50 परसेंट आबादी शहरी इलाकों में रहने लगेगी। यानी प्रदूषण व स्मॉग से जुड़ी समस्याएं और भी ज्यादा बढ़ती चली जाएंगी।

ज्यादा समस्या अक्टूबर-नवंबर में ही क्यों
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। इसकी वजह यह है कि गर्मी के मौसम में तो प्रदूषित हवा का घनत्व कम होता है जिससे प्रदूषित गर्म हवावायुमंडल के ऊपरी सतह तक पहुंच जाती है। इस कारण से गर्मी के मौसम में तो प्रदूषण कम नजर आता है। लेकिनजैसे ही सर्दियों का मौसम शुरू होता हैवायुमंडल में तापमान कम हो जाता है तो प्रदूषित वायु का घनत्व बढ़ जाता हैइससे प्रदूषित हवा पृथ्वी के वायुमंडल की निचली सतह पर फंसकर रह जाती है। साथ हीइस मौसम में हवा की रफ्तार बेहद कम हो जाती हैजिसकी वजह से प्रदूषण धरती की स्तर पर ठहर सा जाता है। प्रभावित क्षेत्र गैस चैंबर बन जाता है।

पराली जलाना भी समस्या
पंजाबहरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान धान की फसल काटने के बाद अपने खेतों में बचे धान के डंठल (पराली) को जला देते हैं। क्योंकि उन्हें तुरंत बाद गेहूं की बुआई करनी होती है। धान के डंठल (पराली) जल्दी से गलते या कटते नहीं है। अतः किसान इन अवशेषों को साफ करने और अपने खेतों को बुआई के लिए तैयार करने के लिए पराली में आग लगा देते हैं। इस फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषक होते हैं। सम्बंधित राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए कानून भी बना रही हैं लेकिन कानून की बजाय इन फसल अवशेषों का जल्द से जल्द निपटारा कैसे होइस पर काम किया जाना चाहिए।

हवा में पटाखों ने घोला जहर
दिवाली के बाद दिल्ली का नाम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर की सूची में शुमार हो गया। यहां 12 नवंबर को दिवाली के दिन आठ वर्षों में सबसे बेहतर वायु गुणवत्ता दर्ज की गई थी। इस दौरान 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक शाम चार बजे 218 दर्ज किया गया था। हालांकिदीपावली की देर रात तक आतिशबाजी होने से कम तापमान के बीच प्रदूषण के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी हुई। इसके अगले दिन दिल्ली की सुबह धुंए की परत से हुई और वायु प्रदूषण का स्तर एक बार फिर बढ़ गया. वायु गुणवत्ता निगरानी में विशेषज्ञता रखने वाली स्विस कंपनी आईक्यूएआईआर’ के अनुसारसोमवार को दिल्लीदुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था। इसके बाद पाकिस्तान के लाहौर और कराची शहरों का स्थान था। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में मुंबई और कोलकाता पांचवें और छठे स्थान पर हैं। मालूम हो कि एक्यूआई शून्य से 50 के बीच अच्छा’, 51 से 100 के बीच संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच मध्यम’, 201 से 300 के बीच खराब’, 301 से 400 के बीच बहुत खराब’ और 401 से 450 के बीच गंभीर’ माना जाता है। एक्यूआई के 450 से ऊपर हो जाने पर इसे अति गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।


स्मॉग से सबसे ज्यादा खतरा किसको
वैसे तो स्मॉग सभी को प्रभावित करता हैमगर निम्नलिखित वर्गों को विशेष रूप से हानिकारक है।
बच्चों के फेफड़े विकासशील अवस्था में होते हैं और गर्मी के दिनों में वे बहुत ज्यादा समय बाहर खेलने में बिताते हैं ऐसे में उनमें सांस लेने के दौरान अधिक प्रदूषण से प्रभावित होने का खतरा रहता है।
अस्थमा की समस्या खासकर फेफड़ों की बीमारी आदि से पीड़ित लोग खतरे में हैं।
● जिन्हें दिल की समस्या है व मधुमेह के रोगियों को भी स्मॉग से बेहद खतरा है।
बुजुर्गों को कमजोर दिलफेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण खतरा है।
● एलर्जी से प्रभावित लोगगर्भवती महिलाओं और धूम्रपान करने वाले लोगों को भी इससे सावधान रहने की जरूरत है।

स्मॉग से कैसे करें बचाव
स्मॉग से बचने का सबसे बड़ा उपाय यह है कि प्रभावित क्षेत्र को छोड़कर दूर चले जाएं लेकिन यह न तो व्यवहारिक है और न सम्भव है। स्मॉग में रहना पड़े तो
● घर के बाहर की गतिविधियों को कम से कम करें बाहर कम से कम निकलें।
ड्राइविंग कम से कम करें।
● इन दिनों में दौड़ना या साइकिल चलानाटहलना आदि कम करें जिससे सांस की समस्याओं से राहत मिलेगी।
पेट्रोल-डीजल चालित इंजनकीटनाशकोंऔर तेल आधारित पेंट का उपयोग करने से बचें।
हाइड्रेटेड रहें यानी खूब पानी पीते रहें।
धूम्रपान न करेंकोशिश करें कि वातानुकूलित वातावरण में रहेंएयर प्यूरीफायर का भी प्रयोग किया जा सकता है।

वायु प्रदूषण रोकथाम कानून का इतिहास
वर्ष 1301 में एडवर्ड प्रथम ने लंदन में कोयला जलाने पर रोक लगा दी थी क्योंकि लंदन में हवा में प्रदूषण 13वीं सदी से ही शुरू हो गया था। ये संसार में पहली बार वायु प्रदूषण के खिलाफ सरकारी कार्यवाही थी।
मगर 16वीं सदी तक आते-आते लंदन की हवा बेहद जहरीली हो गई थी। वर्ष 1952 का ग्रेट स्मॉगब्रिटेन के इतिहास में वायु प्रदूषण की सबसे खराब और दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। इसके बाद संसार भर में पर्यावरण पर रिसर्चस्वास्थ्य पर इसका इसका और सरकार के पर्यावरण संबंधी कानून से लेकर हवा की शुद्धता को लेकर जन जागरूकता की बातें शुरू हुईं। अंततः 1956 में जाकर ब्रिटेन में क्लीन एयर एक्ट बना।
यदि बात भारत के बारे में की जाए तो आज यहां वायु प्रदूषण बेहद गंभीर रूप धारण कर चुका है। लेकिन आप हैरान होंगे कि भारत में वायु प्रदूषण के खिलाफ सरकारी जंग 118 साल पहले शुरू हो गई थी। क्योंकि उस समय यहां अंग्रेजी शासन था और देश की राजधानी कलकत्ता (कोलकाता) थी। अंग्रेजों ने भारत में वायु प्रदूषण के खिलाफ पहला कानून बंगाल स्मोक न्यूसेंस एक्ट 1905’ में बंगाल में बनाया था।
इस बंगाल स्मोक न्यूसेंस अधिनियम में भट्टियों आदि से एक सीमा से ज्यादा वायु प्रदूषण होने पर दो हजार रुपये का जुर्माना रखा गया था। दूसरी बार यह गलती करने पर जुर्माने की राशि पांच हजार रुपये रखी गई थी। उस समय के हिसाब से यह बेहद सख्त कानून था। क्यों आज से 118 साल पहले दो हजार और पांच हजार रुपये बहुत बड़ी रकम होती थी। वर्ष 1913 में बांबे स्मोक कानून बना।  अफसोसजनक बात है कि वायु प्रदूषण को लेकर जितने सख्त कानून आजादी के पहले बनेउतने आजादी के बाद में नहीं बने।
1963 में गुजरात स्मोक न्यूसेंस कानून बनाया गया जो अहमदाबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में लागू हुआ। लेकिन 1972 में जब संसद में जल प्रदूषण के खिलाफ कानून पारित हो रहा था तो सांसदों ने वायु प्रदूषण के खिलाफ भी कानून बनाने की मांग रखी। लेकिन तब यह मांग पूरी नहीं हुई। उसके बाद कमेटियां बैठाई गईं और 1982 में जाकर देश में वायु प्रदूषण रोकथाम कानून बनाया गया।

स्मॉग पर कैसे लगे स्थाई रोक
स्मॉग सिर्फ भारत की समस्या नहीं है और न ही ये सिर्फ दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में ही होता है। प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप इससे परेशान है। दक्षिण एशिया में नेपालबांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत संसार के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है। महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग 10 साल पहले तक चीनदक्षिण एशिया में सबसे प्रदूषित देश था और बीजिंग तो दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषित शहर था। समस्या इतनी गंभीर थी कि सर्दियों में आसमान नजर आना बंद हो जाता था। कई दिनों के लिए वहां स्कूल बंद कर दिये जाते थे। हर कोई मास्क पहनकर घूमता था। लोग घर की खिड़की दरवाजे तक बंद रखते थे।
एक दशक पहले तक प्रदूषण की वजह से चीन में हर साल लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती थी। इससे तंग आकर चीन ने वर्ष 2013 में नेशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान’ लागू किया और 19 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं बना कर उन पर काम शुरू कर दिया। प्रदूषण फैलाने वाली चीजों पर लगाम लगाई गईसार्वजनिक एयर प्यूरिफायर लगाकर हवा को साफ किया गया। ज्यादातर कारखानों को उत्तर चीन और पूर्वी चीन से दूसरे स्थानों पर ले जाया गया और कई कारखानों को बंद ही कर दिया गयाकोयले का उपयोग कम किया गया, 2016 में प्रदूषण फैलाने पर कारखानों पर 150 करोड़ का जुर्माना वसूला गया। बीजिंगशंघाई और गुआंगझोऊ में सड़कों पर कारों की संख्या कम कर दी गई। वर्ष 2017 में चीन ने नई कारों का कोटा 1,50,000 तक सीमित कर दिया और इनमें भी 60,000 कारें इलेक्ट्रिक होने की शर्त रखी गई। वर्ष 2018 में नई कारों का कोटा 1.50 लाख से घटाकर लाख कर दिया गया। कोयले से चलने वाले नए प्लांट्स को मंजूरी देनी बंद कर दी गई। बीजिंग में 10 साल पहले तक 40 लाख घरोंस्कूलोंअस्पतालों और ऑफिस में कोयले का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता था। सरकार ने एक झटके में इस पर रोक लगा दी। इसकी जगह घरों को नेचुरल गैस या बिजली हीटर मुहैया कराए गए। इन ताबड़तोड़ उपायों से बीजिंग को दमघोंटू स्मॉग से राहत मिल गई। इससे यहां के नागरिकों की आयु में दो साल का इजाफा हो गया।
चीन का नेशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान’ मॉडल अपना कर भारत भी स्मॉग (प्रदूषण) का परमानेंट इलाज कर सकता है। सरकार और नागरिकों की मजबूत इच्छाशक्ति से ही यह संभव है। क्योंकि न तो यह अकेले सरकार के वश की बात है और न अकेले नागरिकों के वश की।

चलते चलते
दिल्ली में फैले जहरीले स्मॉग से लड़ने के लिए दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि दिल्ली में आगामी 13 से 20 नवम्बर तक सड़कों पर  ऑड-इवन फॉर्मूला लागू करेगी। हालांकि, 9 नवम्बर की रात से जारी बूंदाबांदी से स्मॉग पर कुदरती तौर पर नियंत्रण होने से 10 नवम्बर को दिल्ली सरकार ने ये ऑड-इवन फॉर्मूला लागू करने की घोषणा पर विराम लगा दिया। चूंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और किसी सरकार के फैसले पर राजनीति न हो यह कैसे हो सकता है।
जैसे ही दिल्ली सरकार ऑड-इवन फॉर्मूला लेकर आई तो दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी इस फार्मूले में हिन्दू-मुस्लिम एंगल ले आए। बिधूड़ी ने कहा कि दिवाली पर एक-दूसरे से नहीं मिल सके हिन्दूइसलिए आया प्लान!
बिधूड़ी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल सरीखे लोगों के चलते ही भारतीय संस्कृति खत्म होती जा रही है। ऑड-इवन इसलिए लगाया है ताकि लोग दिवाली पर एक-दूसरे से नहीं मिल सकें। प्रकृति का लाख-लाख शुक्र है कि उसने बारिश कराकर स्मॉग नियंत्रण की कोशिशों को सांप्रदायिक होने से बचा लिया!

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