विभिन्न अध्ययनों और रिपोर्ट्स में बार बार चेतावनी दी गयी है और हिमालयी राज्य में निर्माण के लिए कड़े मानक लागू करने तथा प्रकृति के अनुरूप विकास परियोजनाएं बनाने की जरूरत बतायी जाती रही है। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में शामिल राज्य और केंद्र सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही हैं। आज जरूरी है कि केंद्र सरकार पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए प्रकृति के अनुरूप विशेष नीति बनाये। और उसे सख्ती से लागू करवा जाये
धर्मपाल धनखड़
उत्तराखंड(Uttarakhand) के उत्तरकाशी जिले में दिवाली के दिन सुबह पांच बजे सिलक्यारा-डंडालगांव निर्माणधीन सुरंग धंसने से 40 मजदूर फंस गये। चार-पांच दिनों की कड़ी मशक्कत के बावजूद इन मजदूरों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाला जा सका है। सुरंग में फंसे मजदूरों (Workers) के लिए पानी के लिए बिछी चार इंची पाइपलाइन से आक्सीजन की सप्लाई की जा रही है। इसी पाइप के जरिए खाना पहुंचाया जा रहा है और इसी से बचाव कार्यों में लगी टीम के सदस्यों की मजदूरों से बात हो रही है। निःसंदेह 40 लोगों की जान बचाने का ये मिशन बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, सीमा सड़क संगठन, स्वास्थ्य विभाग के 160 राहतकर्मी बचाव कार्यों में लगे हैं। जिला प्रशासन और पुलिस बल भी मौजूद हैं। इसके अलावा नार्वे से भी विशेषज्ञों की टीम बुलाई जा रही है। उम्मीद है कि जब आप ये पंक्तियां पढ़ रहे होंगे, तब तक बचाव दल के प्रयासों से सुरंग में फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला जा चुका होगा।
मलबा गिरने से सुरंग के मुहाने से 205 मीटर दूर मजदूर फंसे हुए हैं। बचाव कार्य में लगी टीमों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत सुरंग में बार-बार गिर रहा मलबा बना हुआ है। इसके साथ बचाव दलों के सामने ऐसे हादसों के समय काम आने वाली मशीनों और यंत्रों का अभाव साफ दिखा। हैरान करने वाली बात ये है कि आपदा प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में ऐसी आपदाओं के समय राहत और बचाव में काम आने वाली मशीनरी और साजो-सामान तथा विशेषज्ञों की टीम भी नहीं है। दुर्घटना होने पर अन्य प्रदेशों से आवश्यक मशीनें और सामान मंगवाने के लिए हड़बड़ी मची रही। रुड़की स्थिति अनुसंधान केंद्र से भी मदद मांगी गयी। बेशक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) घटनास्थल का जायजा लेने के लिए मौके पर पहुंचे। प्रशासनिक अधिकारियों और बचाव दल को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए।
साल 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी के बाद राज्य में लगातार भूस्खलन और भू-धंसाव की घटनाएं हो रहीं हैं। दो-ढाई साल पहले चमोली में ऋषि गंगा नदी में ग्लेशियर टूटकर गिरने से भयानक तबाही हुई थी। इसी साल में जोशीमठ में जमीन दरकने से मकानों और अन्य भवनों में दरारें आने की घटना के बाद भी राज्य सरकार और प्रशासन सचेत नहीं हुआ है। हर बड़ी त्रासदी के बाद जांच समिति और अध्ययन दल बनाये जाते हैं। लेकिन उनकी रिपोर्ट्स पर कार्रवाई की बात तो दूर, उनके निष्कर्षों को पढ़ने तक की जहमत कोई नहीं उठाता। केंद्र और निजी संस्थानों की और से पहाड़ पर करवाये जाने वाले सर्वेक्षण की रिपोर्टों में बार-बार चेतावनियां दी जाती रहीं हैं। लेकिन सबको दर किनार कर दिया जाता है।
सिलक्यारा-डंडालगांव सुरंग चर्चित आल वेदर नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस सुरंग में कुछ समय पहले भी मलबा गिरने की घटना हुई थी, लेकिन संयोग से तब कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। आल वेदर रोड़ के निर्माण का मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुंचा था। तब सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर इसके निर्माण की जरूरत बतायी थी। निश्चित रूप से इस रोड़ के पूरा होने के बाद चीन सीमा तक पहुंचना आसान हो जायेगा। साथ ही चार धाम यात्रा मार्ग होने के कारण धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। इस पहाड़ी राज्य की सरकार पर बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने का भारी दबाव है। इसीलिए अनेक पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी। पनबिजली परियोजनाओं, सड़कों को चैड़ा करने तथा सुरंगों के निर्माण में भारी भरकम मशीनों प्रयोग और बेतरतीब विस्फोट किये जा रहे हैं। जिससे पहाड़ हिल उठते हैं। भूस्खलन और भू-धंसाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। हिमालयी इलाकों का विकास समय की जरूरत है। लेकिन निर्माण कार्यों में पर्यावरण मानकों की घोर अनदेखी की जा रही है। सुरंगों के निर्माण से पहाड़ खोखला हो चुका है। इसी के चलते पिछले कुछ सालों में भू-स्खलन और बाढ़ के चलते आपदाएं भी बढ़ रही हैं।
हिमालय दुनिया की नवीनतम पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। भारत के लिए हिमालय का महत्व भौगोलिक और सामरिक दृष्टि के अलावा मौसम की विविधता तथा मैदानी भू-भागों में जल की उपलब्धता के लिए बेहद खास है। विभिन्न अध्ययनों और रिपोर्ट्स में बार बार चेतावनी दी गयी है और हिमालयी राज्य में निर्माण के लिए कड़े मानक लागू करने तथा प्रकृति के अनुरूप विकास परियोजनाएं बनाने की जरूरत बतायी जाती रही है। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में शामिल राज्य और केंद्र सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही हैं। इसके चलते हिमालयी राज्यों के करोड़ों लोगों का जीवन दांव पर लगा है। इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए प्रकृति के अनुरूप विशेष नीति बनाये। और उसे सख्ती से लागू करवाये। साथ ही राज्य सरकारों पर दबाव को कम करने के लिए बजट में ज्यादा संसाधन उपलब्ध करवाएं जाने चाहिए।