अंतर्मन की ज्योति प्रज्ज्वलित करने का पर्व है दीपावली

डॉ . गोपाल नारसन एडवोकेट
12 नवंबर को दीपावली ( Deepawali) है।कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर देश-दुनिया में दीपावली का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन (Lakshmi Pujan) का विशेष महत्व है। दीपावली की तैयारियां कई दिनों पहले से की जा रही है। दीपावली पर पूरे घर की साफ सफाई के साथ ही घर को दीयों और रंगबिरंगी लाइटों से सजाया जाता है। हर वर्ष दीपोत्सव का पर्व 5 दिनों तक धनतरेस ( Dhanteras) से शुरू होकर  नरक चतुर्दशी यानि छोटी दिवाली , दीपावली, गोवर्धन पूजा और अंत मे भाई दूज पर्व के रूप में मनाया जाता है। कई दशकों के बाद दीपावली पर एक साथ कई शुभ योग और राजयोग की स्तिथि बनी है।दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए प्रदोष काल का समय सबसे अच्छा  है। दीपावली पर्व आगमन अमावस्या तिथि 12 नवंबर को दोपहर करीब 2 बजकर 30 मिनट पर हो जाएगा। दीपावली की शाम के समय जब लक्ष्मी पूजा होगी उसी दौरान 5 राजयोग का योग भी बन रहा है। साथ ही आयुष्मान, सौभाग्य और महालक्ष्मी योग भी बन रहा है। इस प्रकार दीपावली 8 शुभ योगों में मनाई जाएगी। दीपावली पर इस तरह का शुभ योग कई दशकों के बाद बना है। ऐसे में इस शुभ योग में दीपावली सभी के लिए सुख-समृद्धिदायक सिद्ध होगी। दीपावली पर 5 राजयोग गजकेसरी, हर्ष, उभयचरी, काहल और दुर्धरा नाम के बन रहे है। इन राजयोगों का निर्माण शुक्र, बुध, चंद्रमा और गुरु ग्रह स्थितियों के कारण होता है। गजकेसरी योग को बहुत शुभ माना जाता है। यह योग मान-सम्मान और लाभ देने वाला होता है। वहीं हर्ष योग धन में वृद्धि और यश दिलाता है। जबकि बाकी काहल ,उभयचरी और दुर्धरा योग शुभता और शांति दिलाते है। कई सालों बाद दीपावली पर दुर्लभ संयोग भी देखने को मिलेगा जब शनि अपनी स्वयं की राशि कुंभ में विराजमान होकर शश महापुरुष राजयोग का निर्माण करेंगे। इसके अलावा दीपावली पर आयुष्मान और सौभाग्य योग का निर्माण  हो रहा है।भगवान  राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके जब अयोध्या लौटे थे,तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीप जलाए। वही इसी दिन भगवान विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।जैन मत के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही पड़ता है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में सन 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। इसके अलावा सन1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
नेपाल में यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। स्वामी रामतीर्थ ने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ‘ओम’ कहते हुए समाधि ले ली थी। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अपने प्राण त्याग दिये थे।  हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी,विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं और गंदे स्थानों की तरफ देखती भी नहीं।
इसलिए इस दिन घर-बाहर को ख़ूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। कहा जाता है कि दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सदगृहस्थों के घर निवास करती हैं।त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है,वह इस दिन पूरे चरम पर आता है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है। यानी यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। इसी दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं,एक दूसरे से मिलते हैं।
घर-घर में सुन्दर रंगोली बनाई जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक,सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है।
 दीपों के पर्व की हमारे जीवन में बहुत महत्ता है। मनुष्य के जीवन में आज अज्ञानता का अंधकार तेजी से फैलता जा रहा है। यदि हमें इससे दूर करने का प्रयास नहीं करेंगे तो जीवन में कभी भी रोशनी का प्रकाश नहीं फैल पाएगा।  हम केवल रस्मों के रूप में ही दिवाली मना लेते है, लेकिन उसके आध्यात्मिक रहस्यों से विमुख हो रहे हैं। यदि हमें हर घर को रोशन करना है तो जीवन में ज्ञान का दीपक जलाना होगा।  हमारा पर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता को किसी ना किसी रूप में आध्यात्मिक सत्ता से जोड़ता है।व्यर्थ के चिंतन से जब तनाव पैदा होता है तो हमारे सोचने का तरीका  का तरीका बदल जाता है । हमें महसूस होता है कि जैसे किसी ने हमारे मन में जहर घोल दिया हो। इसलिए हमेशा अपने मन को अच्छे विचारों के साथ भरना चाहिए ताकि मन मे खुशियो का प्रकाश जगमगाता रहे।  जितनी भी समस्याएं पैदा होती है वह कमजोर मन की उपज है। मन का भोजन अच्छा होगा तो अच्छे विचार जन्म लेंगे  जो हमें गलत फहमियों से हमेशा दूर रखने में मदद करते है। इंसान जैसा सोचता है वैसा ही बनता है। हमेशा सकारात्मक सोचो, नकारात्मक विचारों की मन में कभी भी जगह न बनने दो। आत्मा की बैटरी को हमेशा चार्ज रखने के लिए सुबह शाम 20 मिनट तक मेडीटेशन जरूर करनी चाहिए। हर इंसान में कुछ न कुछ अच्छे गुण होते है, इसलिए अच्छे गुणों को धारण करने में कभी भी पीछे नही रहना चाहिए।तभी मन की सच्ची दिवाली सुख और सम्रद्धि को जन्म दे सकती हैऔर हम दीपावली का सच्चा रसानन्द प्राप्त कर सकते है।इस बार दीपावली का पर्व अमेरिका से लेकर इंग्लैंड तक भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।वही उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दीपावली पर 21 लाख से अधिक दीपक जलाने का लक्ष्य रखा गया है।कई दिवसीय दीपावली उत्सव के लिए अयोध्या को सजाया गया है।लेकिन वास्तविक प्रकाश हमे अपने मन के अंदर करना है,जहां बुराई रूपी तमस दूर हो सके और अच्छाई रूपी प्रकाश प्रज्ज्वलित हो सके।(लेखक आध्यात्मिक चिंतक एवं वरिष्ठ पत्रकार है)

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