उत्तराखंड राज्य ( State of Uttarakhand) को बने 23 वर्ष हो गए लेकिन आज तक भी उत्तराखंड आत्मनिर्भरता प्राप्त नही कर सका।विकास पुरूष नारायण दत्त तिवारी ने अपने शासनकाल में राज्य के अंदर जो औद्योगिक नगर बसाए थे उनमें से करीब 400 औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी है या फिर पलायन कर चुकी है,एक तरफ ये इकाइयां एक एक कर बंद हो रही थी दूसरी तरफ राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) विदेशों में निवेश के एमओयू साइन करवा रहे थे।विदेशों व मुंबई जैसे महानगरों के निवेशक कब उत्तराखंड आएंगे यह तो पता नही ,लेकिन जो उद्योग लगे हुए है उनका बंद होना निश्चित ही चिंता जनक है। यही हाल उपभोक्ता अदालतों भी है ,हरिद्वार जिले में एक साल से उपभोक्ता अदालत में जज व अब सदस्य भी न होने के कारण सुनवाई ठप्प है,यही हालत देहरादून जिला उपभोक्ता आयोग व अन्य जिलों में भी है,लेकिन सरकार की सेहत पर कोई फर्क नही पड़ रहा है।किसानों के बकाया गन्ना मूल्य भुगतान व नया गन्ना मूल्य घोषित न होने व बाढ़ पीड़ित किसानों का मुआवजा बढाने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ( Harish Rawat) तक की आवाज सरकार सुनने को तैयार नही है। राज्य के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली को लेकर आंदोलन कर रहे है,लेकिन कोई सुनवाई नही ,ऐसे में राज्य स्थापना दिवस पर चेहरे पर रौनक कैसे आ सकती है। आज 23 साल बीतने पर भी उत्तराखंड में न तो स्थाई राजधानी बन पाई और न ही उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण का काम पूरा हो पाया। राज्य आंदोलन के शहीदों तक को आज तक इंसाफ न मिलना सरकार की विफलता ही कही जाएगी । उत्तराखंड में सरकार किसी की भी रही हो , उत्तराखंड के मूलभूत सरोकार आज भी ज्यो के त्यों है।
हरीश रावत सरकार ने जब गैरसैंण में विधानमंडल भवन बनाया, तब उन पर भी राजधानी घोषित करने का दबाव बना था। राजनीतिक आंदोलन से जुड़ा एक वर्ग गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने की वकालत करता रहा है।