पति की दीर्घायु कामना का पर्व है करवाचौथ!

डॉ. गोपाल नारसन एडवोकेट
हर सुहागिन की कामना है कि वह अपने पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत करे।जिसके लिए वह कई दिन पहले से सजने संवरने और धार्मिक आस्था(  Religious faith) के साथ उपवास रखकर इस पर्व को मनाती है। करवाचौथ का उपवास कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस बार करवा चौथ (karva chauth) का व्रत एक नवंबर बुधवार के दिन मनाया जा रहा है। इस दिन कार्तिक संकष्टी चतुर्थी होती है। इस व्रत में भगवान शिव माता पार्वती(  Lord Shiva Mata Parvati) और चंद्रमा का पूजन किया जाता है।
इस बार करवा चौथ पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं।एक नवंबर करवा चौथ के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है। साथ ही इस दिन चंद्रमा  शाम  4 बजकर 12 मिनट तक अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेगा। इस दिन दोपहर में 2 बजकर 7 मिनट से शिव योग भी रहेगा। इस बार करवा चौथ पर  शुभ योग में पूजन करने से उत्तम फल की प्राप्ति होगी।करवा चौथ पूजन का शुभ मुहुर्त सुबह पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 18 मिनट तक अमृत चौघड़िया में व्रत करें। इसके बाद 10 बजकर 41 मिनट से लेकर 12 बजकर 4 मिनट तक शुभ चौघड़िया में पूजा करना शुभ रहेगा। शाम के समय 4 बजकर 13 मिनट से शाम में 5 बजकर 36 मिनट तक लाभ चौघड़िया में पूजन करना लाभप्रद होगा।एक नवंबर 2023 बुधवार करवा चौथ के दिनन चंद्रोदय रात में 8 बजकर 26 मिनट पर होगा।करवा चौथ के दिन सुबह स्नान आदि करें इसके बाद उपवास संकल्प लें। मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। इस मंत्र को बोलकर संकल्प लें।यह संकल्प लेकर पूरे दिन निर्जला रहकर व्रत किया जाता है।इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला उपवास रख चंद्रमा की पूजा करती हैं। इसके साथ ही करवा चौथ पर भगवान शिव, मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय जी के अलावा करवा माता की पूजा का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, करवा चौथ का व्रत रखने और विधि-विधान के साथ पूजा करने से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और पति-पत्नी का रिश्त अटूट होता है। इसके अलावा पति की लंबी आयु के लिए भी करवा चौथ का व्रत रखा जाता है।
इसके बाद गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं।

इसके बाद आठ पूरियों का अठावरी बनाएं। साथ में कुछ मीठा और पकवान बनाएं

इसके बाद पीली मिट्टी से गौरी माता की प्रतिमा बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।गौरी की लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उसपर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग आदि सामग्री माता पार्वती को अर्पित करें।पूजा के समय जल से भरा एक लोटा रखें।बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। माता गौरी भगवान गणेश और करवा माता की विधिवत पूजा करें।
करवे पर 12 बिंदी रखें और गेहूं चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ से पानी घूमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।रात में चंद्रमा निकलने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद प्राप्त करे।
करवाचौथ का उपवास सूर्योदय से पहले शुरू होता है जिसे चांद निकलने तक रखा जाता है।इस उपवास में सांस अपनी बहू को सरगी देती है।इस सरगी को लेकर बहुएं अपने व्रत की शुरुआत करती हैं।
इस व्रत में शाम के समय शुभ मुहूर्त में चांद निकलने से पहले पूरे शिव परिवार की पूजा की जाती है।चांद निकलने के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं।आइए जाने करवाचौथ व्रत की पूजा विधि
-सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं। सरगी के रूप में मिला हुआ भोजन करें पानी पीएं और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।करवाचौथ में महिलाएं पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं।करवाचौथ की एक कथा भी है, “एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।”कुंवारी लड़कियां करवा चौथ का व्रत एक अच्छे वर की तलाश में रखती है। जहां सुहागिन इस व्रत में चंद्रमा की पूजा करती है तो वहीं, कुंवारी लड़कियां तारों को पूजती हैं।
सुहागन के सुहाग की
रक्षा का महापर्व
सुहागन के उपवास पर
हर सुहाग करता गर्व
भारतीय संस्कृति का
यह अनूठा त्यौहार है
एक दूसरे के प्रति बढ़ता
इससे सद्व्यवहार है
करवा चौथ के पर्व पर
करो एक संकल्प
क्रोध जीवन मे न रहे
शांत स्वभाव विकल्प।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)

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