कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ किए गए एमओयू को रद्द करें केंद्र सरकार

रायपुर। अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने केंद्र सरकार ( Central Government) से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बायर जैसे भीमकाय कृषि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ किए गए एमओयू को रद्द करने की मांग की है। किसान सभा का कहना है कि इस तरह के एमओयू वास्तव में कृषि का कार्पोरेटीकरण करने के उद्देश्य से लाए गए उन किसान विरोधी कानूनों को पिछले दरवाजे से लागू करने का प्रयास है, जिसे देश की जनता के प्रखर विरोध के कारण मोदी सरकार ( Modi government) को वापस लेने को मजबूर होना पड़ा था।

आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के संयोजक संजय पराते ने कहा है कि छोटे किसानों को सशक्त बनाने के नाम पर कृषि अनुसंधान परिषद बायर जैसी उन कॉर्पोरेट कंपनियों से समझौता कर रहा है, जो वास्तव में व्यापार के नाम पर यहां के किसानों को लूटने और अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए भारतीय कृषि बाजार में घुसने का रास्ता खोज रहे हैं। इन कॉर्पोरेट दिग्गजों का असली मकसद भारतीय कृषि को विकसित देशों की जरूरतों के अनुकूल मोड़ना तथा गरीब किसानों की जमीन को हड़पना भर है और वैज्ञानिक कृषि के विकास और किसानों की आय बढ़ाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, जिसका दावा एमओयू में किया गया है। ऐसे समझौते केंद्र सरकार के “आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर कृषि” के दावे की पोल भी खोल रहे हैं।

किसान सभा नेता ने सार्वजनिक कृषि अनुसंधान के लिए आबंटन में भारी कटौती की भी निंदा की है, जिसके कारण खेती-किसानी में आत्मनिर्भरता खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि इस गंभीर कमजोरी को दूर करने के बजाय, मोदी सरकार ने बायर जैसी कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ सहयोग करने का विकल्प चुना है, जो कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण बनने वाले जहरीले रसायनों को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात है और इस जुर्म के लिए कई मुकदमों का सामना कर रहा है। यह जगजाहिर है कि विषैले, रोग पैदा करने वाले कृषि रसायनों की बिक्री बायर के व्यवसाय के मूल में रही है और मोनसेंटो के अधिग्रहण के साथ, यह वैश्विक बीज बाजार पर भी हावी हो गया है। अनुसंधान परिषद के साथ सहयोग से उसके अपराधों को वैधता मिलेगी और मुनाफा कमाने के लिए एक बड़ा बाजार उसे उपलब्ध होगा।

किसान सभा ने मांग की है कि भारतीय कृषि आज जिन गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, उनसे निपटने के लिए कृषि अनुसंधान के लिए सार्वजनिक वित्त पोषण बढ़ाया जाए। कृषि के कॉरपोरेटीकरण के सभी प्रयासों का पुरजोर विरोध किया जाएगा। केंद्र सरकार को इस संबंध में उठी सभी चिंताओं का समाधान करना चाहिए।

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