West Asia में इज़राइल-हमास युद्ध के बीच छिड़ी जंग से दूर भूटान के विदेशी संबंधों में नए डेवलपमेंट भारत के लिए इसके दूरगामी प्रभावों के कारण चिंता की नई वजह बन गया है। विशाल हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा राज्य भूटान (Bhutan) लंबे समय से वैश्विक पहुंच की दिशा में छोटे कदम उठा रहा है।
एक समय यह वैश्विक राजनीति ( Global Politics)में अपने बंद दृष्टिकोण के लिए जाना जाता था, जहां इसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी पांच देशों के साथ राजनयिक संबंध भी बनाए नहीं रखे थे। भूटान अंतर्मुखी रहा और अपने आसपास की दुनिया के प्रति उतना मिलनसार नहीं रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में यह सब बदलना शुरू हो गया था। मौजूदा सदी की शुरुआत से ही भूटान नए राजनयिक संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 2013 तक, यह 53 देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने में कामयाब रहा। भूटान जिन नए विदेशी संबंधों पर मुहर लगा रहा है, उनमें चीन के साथ उसका समीकरण भारत को काफी परेशान कर रहा है।
इस सप्ताह की शुरुआत में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने बीजिंग का दौरा किया। वहां उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ-साथ चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की। यह यात्रा दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता पर केंद्रित थी और इसके लिए एक संयुक्त तकनीकी टीम के कामकाज पर एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए।
दोनों देश सीमा सीमांकन प्रक्रिया ( Demarcation process) में तेजी लाने के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने पर भी सहमत हुए। भूटान और चीन के बीच सीमा मुद्दे का समाधान होने से चीन के 12 पड़ोसियों में से भारत एकमात्र देश रह जाएगा जिसके साथ बीजिंग ने अभी भी सीमा विवाद नहीं सुलझाया है। भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की संभावित स्थापना भी भारत के लिए एक चिंताजनक संकेत है, लेकिन यह सीमा विवाद समाधान है जिसका भारतीय सुरक्षा पर सबसे दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।