बिलासपुर। शाकिर अली ने अपने रचना कर्म से आम जनता की चेतना को समृद्ध और परिष्कृत किया। उनका रचना संसार 1972 से 2021 तक बिखरा पड़ा है, जिसे व्यस्थित और प्रकाशित करके जनता तक पहुंचाने का दायित्व अब हमें उठाना होगा। विज्ञान के विद्यार्थी होने के बावजूद साहित्य और किताबों से बना रिश्ता उन्होंने कभी नहीं तोड़ा। उनके सामाजिक सरोकार इतने प्रबल थे कि लोक की चिंता उनकी साहित्यिक-सांस्कृतिक समझ से कभी गायब नहीं हुई। उनकी आलोचना दृढ़ता के साथ आम जनता की आवाज बनी रही, उन्होंने हमेशा लोकधर्म का पालन किया।
उक्त विचार दिल्ली से पधारे जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव संजीव (National General Secretary Sanjeev) ने ‘आलोचना का लोकधर्म’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने शाकिर अली की पुस्तक ‘आलोचना का लोकधर्म’ में उठाये गए मुद्दों पर विस्तार से बात की।
यह संगोष्ठी जनवादी लेखक संघ, बिलासपुर द्वारा कवि-आलोचक शाकिर अली की स्मृति में आयोजित की गई थी। जनवादी लेखक संघ हिंदी-उर्दू (Hindi-Urdu ) के लेखकों का राष्ट्रीय संगठन है और शाकिर अली इसकी केंद्रीय परिषद के सदस्य रह चुके थे और छत्तीसगढ़ में एक संवेदनशील कवि और जनपक्षधर आलोचक के रूप में जाने जाते थे। यह संगोष्ठी उन्हीं की स्मृति पर केंद्रित थी।
भोपाल से आये प्रख्यात विचारक एवं समीक्षक रामप्रकाश त्रिपाठी ने शाकिर अली की आलोचना कर्म में स्थानीय अज्ञात कुलशील के ऐसे रचनाकारों को प्रोत्साहित किये जाने को महत्वपूर्ण बताया, जिनकी रचनात्मकता के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई खास पहचान नहीं थी। उन्होंने कहा कि आज जनता की चेतना को समृद्ध करने वाले लोग धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। ऐसे में शाकिर अली की रचनाओं को और जनवादी-प्रगतिशील साहित्य को आम जनता तक पहुंचाना एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक हस्तक्षेप होगा। इसके लिए उन्होंने बिलासपुर में एक लाइब्रेरी (Library ) स्थापित करने का भी सुझाव दिया।
जनवादी लेखक संघ के राज्य महासचिव और भिलाई से आए चर्चित कवि नासिर अहमद सिकंदर ने शाकिर की बस्तर पर लिखी गयी कविताओं को अनमोल बताया। उनका कहना था कि जिस दृष्टि से अपने आसपास के गांव-समाज को शाकिर देखते थे, वह उनकी रचनाओं में झलकता रहा है। प्रगतिशील लेखक संघ के अशोक शिरोडे ने शाकिर अली की खूबियों की बात करते हुए उनके निरंतर अध्ययनशील होने तथा नई किताबों को पढ़ते रहने को याद किया, जबकि गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वद्यालय ( Central University ) से आये मुरली मनोहर सिंह ने शाकिर की किताबों के आधार पर उनके लेखन के विषयों को रेखांकित किया। जगदलपुर से आए ‘सूत्र’ पत्रिका के संपादक विजय सिंह ने उनकी चार दशक की रचनाओं में बस्तर पर लिखी कविताओं को श्रेष्ठ बताया। रायपुर से आये पत्रकार तथा लेखक पी सी रथ ने ग्रामीण बैंक कर्मी के रूप में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के बावजूद साहित्यिक कार्यक्रमों के प्रति उनकी सजगता का जिक्र किया। सामाजिक कार्यकर्ता नंद कुमार कश्यप ने शाकिर अली की समकालीन मुद्दों पर गहरी समझ और सजगता को याद किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे सुपरिचित कथाकार शीतेन्द्र नाथ चौधुरी ने शाकिर अली की कहानियों और कविताओं के मर्म को समझाते हुए उनके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं को रेखांकित किया। संगोष्ठी का संचालन शौकत अली ने किया। बिलासपुर के मित्रों, परिजनों के अलावा प्रदेश से आये अनेक साहित्यकारों ने भी उन्हें इस अवसर पर याद किया। इप्टा बिलासपुर के रंगकर्मी मो. रफ़ीक ने कवि शैलेन्द्र के जनगीत ‘तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर’ का गायन करके संगोष्ठी का समापन किया।