धर्मपाल धनखड़
मध्य प्रदेश (MP) में 17 नवंबर को होने वाले चुनाव में कई मुद्दे जोर-शोर से उठाये जा रहे हैं। विपक्षी दलों (Opposition parties) ने सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार को बनाया है। कांग्रेस ने तो शिवराज सरकार के 18 साल के कार्यकाल में हुए 250 घोटालों की सूची जारी की है। इस लिस्ट में सबसे बड़ा घोटाला है व्यापम घोटाला। दस साल पहले सामने आया व्यापम घोटाला ( Vyapam scam) देश के इतिहास का सबसे बड़ा परीक्षा-भर्ती घोटाला है। इस मामले से जुड़े 40 से ज्यादा अभियुक्त, गवाह और जांचकर्ताओं की संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो चुकी है।
प्रसिद्ध पत्रिका ‘इकोनोमिस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक इस घोटाले में तीन अरब डालर, यानी क़रीब 240 अरब रुपये का लेन देन हुआ था। इसके अलावा 94 हजार करोड़ का बिजली घोटाला, 86 हजार करोड़ का शराब घोटाला, 50 हजार करोड़ का चेक पोस्ट, नर्सिंग घोटाला, 15 हजार करोड़ का पोषण आहार घोटाला, 12 हजार करोड़ का रुपये मिड डे मील घोटाला, दस हजार करोड़ का जल जीवन मिशन घोटाला, साढ़े नौ हजार करोड़ के आंगनबाड़ी नल जल घोटाले समेत दो हजार करोड़ का सर्व शिक्षा अभियान घोटाला प्रमुख हैं।
इसके जवाब में बीजेपी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में हुए कथित घोटालों को मुद्दा बनाया है। इनमें छह सिंचाई परियोजनाओं में 870 करोड़ रुपये का घोटाला प्रमुख है। जिसकी जांच आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो कर रहा है। इसके अलावा 63 करोड़ रुपये का मोबाइल घोटाला, छात्रवृति घोटाला और आइफा अवार्ड घोटाला चर्चाओं में है। कहने का तात्पर्य ये है कि भ्रष्टाचार एक बड़ा चुनावी मुद्दा है।
दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है कर्ज में डूबे किसानों का। मध्यप्रदेश में औसतन हर तीसरे दिन एक किसान आत्महत्या करता है। 2018 में कमलनाथ की अगुवाई में बनी कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के लगभग 27 लाख किसानों का 11, 600 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया था। सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्ताफे देने से 15 महीने में ही कांग्रेस की सरकार गिर गयी थी। उसके बाद एक बार फिर राज्य में बीजेपी की सरकार बनीं। शिवराज सरकार में किसान अक्सर गुणवत्तापूर्ण बीज, खाद और कीटनाशक नहीं मिलने की शिकायत करते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में किसानों का मुद्दा बेहद अहम है। इसी के चलते मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने चुनाव की घोषणा से ठीक पहले किसानों को खुश करने के लिए कई योजनाएं शुरु की और 72 लाख किसानों को किसान सम्मान निधि के तौर पर 1 हजार, 560 करोड़ रुपए सिंगल क्लिक से ट्रांसफर किये। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के 30 लाख दावों में एक हजार 58 करोड़ रुपये किसानों के खातों में ट्रांसफर किए।
चुनाव में दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी बनकर उभरा है। कांग्रेस का आरोप है कि राज्य में 49 लाख पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 11.53 फीसदी और 5वीं पास की 0.44 फीसदी है। सी एम आई ई की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में बेरोजगारी दर देश भर में सबसे कम है। लेकिन बावजूद इसके बढ़ती बेरोजगारी के कारण पढ़े-लिखे युवाओं में हताश हैं।
मध्यप्रदेश सरकार शिक्षा और चिकित्सा जैसी सामाजिक जिम्मेदारी से लगातार पल्ला झाड़ रही है। इसलिए चुनाव में शिक्षा और चिकित्सा भी मुद्दे बने हैं। पिछले साल जारी हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 87,630 स्थाई शिक्षकों के पद खाली थे। रिपोर्ट के मुताबिक 21हजार स्कूल केवल एक -एक स्थाई शिक्षकों के सहारे चलाये जा रहे हैं। छह हजार स्कूल ऐसे हैं जिनमें कोई रेगुलर शिक्षक ही नहीं। अभी एक नवंबर तक 62 हजार स्थाई शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी की गयी है, जो शिक्षकों की कमी का मुंह बोलता प्रमाण है। इसके चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या निरंतर घट रही है। पिछले कुछ सालों में करीब सवा नौ लाख छात्र कम हुए हैं। पिछले कुछ सालों में 29 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल बंद किये जा चुके हैं।
वहीं राज्य में चिकित्सा व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं है। प्रदेश में 3615 विशेषज्ञ डाक्टरों के स्वीकृत पद हैं और 1936 विशेषज्ञ तैनात हैं। इसी तरह 4234 मेडिकल अफसरों के स्वीकृत पदों में से 3434 ही पद भरे हैं। इसी तरह प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों की हालत भी अच्छी नहीं है। इनमें 2814 टीचिंग फेकल्टी के विशेषज्ञ डाक्टरों में से 1800 ही पद भरे हैं।
बढ़ते अपराध राज्य में चुनावी मुद्दा हैं। खास तौर पर महिलाओं, आदिवासियों और जनजाति समुदायों के लोगों के प्रति अपराध सुर्खियों में हैं। उन्नाव रेप कांड से लेकर उज्जैन में नाबालिग लड़की के साथ हुई दुष्कर्म की घटनाओं ने मध्य प्रदेश को शर्मसार किया है इसी तरह बीजेपी नेता का आदिवासी युवक के मुंह पर पेशाब करने के वायरल वीडियो ने राज्य में समाज के कमजोर वर्गों की बदहाली की पोल खोलकर रख दी है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव की घोषणा से पहले महिलाओं व समाज के विभिन्न वर्गों के लिए कई नयी योजनाएं शुरु की हैं। लेकिन अंतिम समय में शुरू की गयी इन योजनाओं का लोगों पर कुछ खास प्रभाव पड़ेगा इसकी संभावना कम है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में जहां भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, महिलाओं और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार आदि के साथ खेती-किसानी, शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्रों की बदहाली महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। अब देखना ये है कि बीजेपी राज्य सरकार के खिलाफ एंटीइनकंबेंसी और कांग्रेस की चुनावी गारंटियों से कैसे पार पायेगी!