- कनाडा में निज्जर की हत्या के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत के एजेंटों पर खुले तौर पर लगाया आरोप
- जी-20 के सफल आयोजन के बाद ऐसे हालात किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं
आलोक भदौरिया, नई दिल्ली।
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति (International Diplomacy) में भारत फिलहाल घिरता नजर आ रहा है। कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Prime Minister Justin Trudeau) ने भारत को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यदि उनकी बात में सच्चाई है तो देश की कूटनीति में बड़ा बदलाव आ गया है। सरहद पार कर स्ट्राइक करने की देश की कोई नीति अभी तक नहीं रही है। G-20 के सफल आयोजन के बाद ऐसे हालात किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
सितंबर के पहले पखवाड़े में जी-20 के सफल आयोजन को लेकर मीडिया में खूब वाहवाही हो रही थी। होनी भी थी। पिछले साल इंडोनेशिया (Indonesia) में घोषणापत्र को लेकर अंत तक ऊहापोह रहा। काफी कोशिश के बाद भी सब देशों में सहमति नहीं बन पाई थी। इस बार भी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर काफी जद्दोजहद रही। ऐसा लग रहा था कि शायद इस बार भी सभी देशों में सहमति न बन पाए।
लेकिन, समिट के पहले ही दिन ‘नई दिल्ली घोषणापत्र’ जारी हो जाने के कारण देश की छवि काफी निखर गई थी। कद में भी इजाफा हुआ। कूटनीति की इसे बड़ी जीत करार दिया गया था। लेकिन, चंद दिनों के अंतराल में ही कनाडा(Canada ) में निज्जर की हत्या के मामले ने इस पर ग्रहण लगा दिया। दुनिया में सुर्खियां बन गईं। कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने अपनी संसद में बयान दिया कि भारत के एजेंटों का निज्जर की हत्या में हाथ है। भारत को संबंधित जांच के बारे में बता दिया गया है। जांच में सहयोग का अनुरोध लगातार किया जा रहा है। उन्होंने यहां तक कहा कि हत्या में भारतीय एजेंटों की संलिप्तता के आरोप के सबूत पहले ही साझा किए जा चुके हैं। कनाडा की सिक्योरिटी एजेंसियां कई सप्ताह से संभावित संलिप्तता की जांच कर रही थीं।
ट्रूडो ने यह आरोप अपने देश में हुई इस हत्या की जांच के दौरान मिली जानकारी के आधार पर लगाया है। भारत ने इन आरोपों का जोरदार शब्दों में खंडन किया है। इन आरोपों को बेबुनियाद करार दिया। कनाडा पर उग्रवादियों को शह देने और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। यहां तक कि भारत (India )ने कनाडा को ‘आतंकवादियों का अड्डा’ तक कह दिया।
लेकिन, मामला भारत के आरोप लगाए जाने से या कनाडा को आतंकवादियों का अड्डा कह देने भर से खत्म नहीं हो जाता है। ‘कनाडा फाइव आयज खुफिया गठबंधन’ का सदस्य है। इस गठबंधन में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। इसके अंतर्गत यह पांचों देश आपस में खुफिया जानकारी एक दूसरे को मुहैया कराते हैं।
जाहिर सी बात है कि कनाडा ने यह आरोप यूं ही नहीं लगा दिए। इन आरोपों को सार्वजनिक करने से पहले अमेरिका से बात जरूर की गई होगी। ऐसा हुआ भी। कनाडा में अमेरिकी राजदूत डेविड कोहेन ने कहा, यह जानकारी फाइव आयज के सहयोगियों को खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में मिली। इसी के आधार पर ही कनाडा ने खालिस्तान समर्थक अलगाववादी निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों की संलिप्तता की बात कही।
बताया यह भी जाता है कि ट्रूडो ने ऐसा बयान देने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी इसकी सूचना दे दी थी। कोहेन का बयान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के बयान के एक दिन बाद ही आया। इससे पहले ब्लिंकन ने कहा था, वह इस मामले को लेकर चिंतित हैं। भारत कनाडा के साथ जांच में सहयोग करे। उन्होंने यह भी कहा,जांच पूरी हो और इसके नतीजे सामने आए।
अमेरिका भारत के साथ भी सीधे तौर पर संपर्क में है। बकौल विदेश मंत्री, मेरा मानना है कि सबसे सकारात्मक चीज इस समय जो हो सकती है,वह यह है कि जांच आगे बढ़े और पूरी हो।
इस परिप्रेक्ष्य में कोहेन के बयान पर नजर डालें तो मामला गंभीर रुख अख्तियार कर चुका है। कोहेन ने कहा है कि अमेरिका इन आरोपों को बेहद गंभीरता से लेता है। यदि यह आरोप सच निकलते हैं तो यह रूल बेस्ड (नियमों के मुताबिक बने) अंतर्राष्ट्रीय आर्डर को न मानने जैसा है।
शुरूआती खबरों में सामने आया था कि फाइव आयज के देशों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। शुरूआती प्रतिक्रिया सधी हुई थी। लेकिन, अब अमेरिका के अधिकारियों ने बयान में जांच के पूरी करने की बात कही है। यानी मामला धीरे-धीरे गंभीरता हासिल करता जा रहा है। ब्लिंकन के बयान के इस अंश पर गौर करें। अमेरिका कनाडा को इस मामले में न सिर्फ सलाह दे रहा है बल्कि कोआर्डिनेट भी कर रहा है। हम चाहते हैं कि इस मामले में जवाबदेही तय की जाए।
ऐसी प्रतिक्रियाओं की शुरूआत अमेरिकी रक्षा सलाहकार जैक सुलिवॉन के बयान से हुई। उन्होंने कहा कि अमेरिका निज्जर की हत्या में भारत से जुड़े एजेंटों के शामिल होने के आरोपों की जांच के कनाडा के प्रयासों का पूरा समर्थन करता है। किसी भी देश को ऐसी गतिविधियों की इजाजत नहीं दी जा सकती है। यह ऐसा मामला है जो अमेरिका गंभीरता से लेता है।
बयानों की क्रॉनोलॉजी पर नजर डालें तो भारत पर दबाव अमेरिका लगातार बढ़ाता जा रहा है। वैसे अभी तक न्यूजीलैंड की तरफ से कोई बयान इस मसले पर नहीं आया है। आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन बयान जारी कर चुके हैं। आस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने कहा, अपने सहयोगी देशों के साथ इस मामले में कोआर्डिनेशन कर रहे हैं। और यह बदस्तूर जारी रहेगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि इस मामले को उन्होंने अपने समकक्ष भारतीय अधिकारी के समक्ष उठाया है। ब्रिटेन के विदेश सचिव जेम्स क्लीकरली का कहना है कि भारत और कनाडा दोनों देशों के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं। भारत से इस जांच में पूरा सहयोग की उम्मीद भी उन्होंने जताई।
यह सारे बयान सिलसिलेवार देखें तो भारत पर लगातार दबाव बढ़ाया जा रहा है। सारे घटनाक्रम इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कनाडा अपने फाइव आयज को साथ लेकर चल रहा है। इसके चलते भारत के लिए कूटनीतिक स्तर पर असहजता की स्थितियां पैदा कर रहा है। भारत का यह कहना पर्याप्त नहीं है कि कनाडा ‘एक्शनेबल सबूत’ मुहैया कराए। आतंकवाद के मामले में शरण देने के कनाडा पर लगाए आरोपों की पुख्ता जानकारी फाइव आयज के देशों को देनी चाहिए।
भारत के अमेरिका के साथ संबंध ऊंचाइयों पर बताए जाते हैं। यह अलग बात है कि अमेरिका की लाख कोशिश के बाद भी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भारत में प्रेस वार्ता नहीं करने दी गई। भारतीय पत्रकारों की तो छोड़िए, साथ आए अमेरिकी पत्रकारों के साथ भी प्रेस वार्ता आयोजित नहीं करने दी गई। खुद अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि कई स्तरों पर प्रयास के बाद भी भारत ने अनुमति नहीं दी। यह बात किसी छोटे अधिकारी स्तर ने नहीं कही बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवॉन ने कही थी। जी-20 के बाद पहली प्रेस वार्ता बाइडेन को भारत की धरती पर नहीं, बल्कि विएतनाम के हनोई में करनी पड़ी थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी देश का कद कुछ मायनों में बढ़ता है। एक, किस स्तर पर वह अन्य देशों को सामरिक, आर्थिक मदद दे सकता है? दूसरा, ऐसी कितनी खोज या आविष्कार उसने किए हैं जिसकी मांग पूरी दुनिया में हो? तीसरा, उसका बाजार कितना बड़ा है यानी वह कितना बड़ा खरीदार है? चौथा, उस देश में निवेश के कितने मौके हैं और कंपनियों का पैसा कितना सुरक्षित है?
इस कसौटी पर देखा जाए तो भारत को कुछ बिंदुओं पर बढ़त हासिल है। लेकिन, कनाडा का सबसे मजबूत पक्ष विकसित देशों का साथ हासिल होना है। सवाल उठता है कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्ता बढ़ रही है। इन हालात में कनाडा अपने को कहां पाता है? क्या भारत की सामरिक महत्व की तुलना में कनाडा की उपयोगिता कम आंकना जायज है? यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा खुद भी विकसित है। सबसे पहले इसी देश ने भारत पर प्रतिबंध लगने के बाद इसे आगे बढ़ने में मदद की थी। तब नाभिकीय विस्फोट करने के कारण प्रतिबंध भारत पर लगाया गया था। आधुनिकतम और उन्नत तकनीक कहीं से भी नहीं मिल पा रही थी।
तो क्या इसे ट्रूडो की आंतरिक स्थितियों से निपटने की एक वजह माना जाए? यह हकीकत में बेहद सतही निष्कर्ष है। इसे जल्दबाजी का निष्कर्ष निकालना कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दूसरे शब्दों में ट्रूडो की लोकप्रियता में 63 फीसद की गिरावट से ज्यादा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। भले ही लोकप्रियता में गिरावट तीन साल के सबसे निचले स्तर पर हो।
सवाल उठता है कि यदि भारत अपना पक्ष पश्चिम को समझा पाता है तो यह देश के लिए मुफीद रहेगा। क्या ऐसा हो सकेगा? इसके उलट यदि कनाडा के आरोपों में सच्चाई निकली तो यह भारत की शांतिप्रिय देश होने की छवि को बट्टा लगाएगा। काबिलेगौर है कि अभी तक प्रेस, सिविल सोसायटी पर अंकुश के मामलों में सरकार के रवैये पर लगातार सवालिया निशान लगाए जाते रहे हैं। लेकिन, पश्चिमी देशों की सरकारों ने इसे खास अहमियत नहीं दी थी।
अब तस्वीर बदली है। जी-20 के आयोजन के दौरान किसी भी देश के नेता की कोई तस्वीर न होने पर पश्चिमी मीडिया में इसे अलग नजरिए से देखा जा रहा है। यह भी माना गया कि यह आयोजन विदेशों के बनिस्पत देश की घरेलू राजनीति को ज्यादा संबोधित किया जाना था। यह भी मत भूलिए कि भले ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत नहीं आए हों, पर उनकी बात पूरी तरह मानी गई। रूस का कहीं जिक्र नहीं हुआ। किसी भी देश की संप्रभुता और सीमा के सम्मान करने की भाषा ऐसी थी जिसका हर देश अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल सकता है। पश्चिमी देशों ने भी कड़ा रुख अख्तियार नहीं किया।
लेकिन, यह आरोप एकदम अलग और गंभीर है। इसे नजरअंदाज करना वाकई मुश्किल नजर आता है। अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड तटस्थ रवैया अपनाकर ही खामोश नहीं रह सकते हैं। कोई पक्ष तो चुनना पड़ेगा। भारत पर लगातार दबाव बढ़ाने की रणनीति के पीछे उनकी मंशा साफ नजर आती है। यदि आरोप सही निकले तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।
अब भारत के लिए सबसे जरूरी है कि कनाडा पर अलगाववादियों को शरण देने या कार्रवाई न करने के अपने आरोपों को साबित करे। पिछली दफा किसान आंदोलन के दौरान भी एकाध केंद्रीय मंत्री ने खालिस्तान का मुद्दा उछाला था। तब यह कहा गया था कि किसान आंदोलन के पीछे खालिस्तानियों का हाथ है। खालिस्तान का मुद्दा अलापने की जगह ठोस नीति बनाने और उसपर अमल करने की बारी है।
बहरहाल, आज का दौर ग्लोबल खतरे का है। इससे कतई इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन,विदेश मंत्रालय के सामने बड़ी चुनौती भारत का पक्ष मजबूती से रखने का है। उसकी अग्निपरीक्षा आ गई है। सिर्फ बाजार के भरोसे बात नहीं बनने वाली।