‘डरो नहीं’ राहुल मंत्र ने बढ़ाया हौसला!

भाजपा में अंदरुनी उठापटक तेज

  • कई राज्यों में चुनाव, बीजेपी को सता रहा हार का डर 
  • लोकप्रियता के मामले में ‘बड़ी लकीर’ खींचने में लगे हैं राहुल गांधी 

वीरेंद्र सेंगर, नई दिल्ली।

अकेले राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सियासी जमीन पर सबसे भारी साबित हो रहे हैं। जबकी भरी संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि अकेला मोदी सब पर भारी है। ऐसी आत्म मुग्धता, वो भी संसद में, ये भी नया रिकॉर्ड था। तमाम तीखी आलोचनाएं हुईं। कई प्रतिष्ठित विदेशी मीडिया ( Foreign Media ) घरानों ने भी इस फूहड़ दावे पर तीखे तंज कसे। सवाल उठाया कि किसी लोकतांत्रिक देश का पीएम भला ऐसे ‘सड़क छाप’ दावे कैसे कर सकता है? लेकिन हमारे लोकप्रिय पीएम को ऐसी आलोचनाओं से भला अंतर कहां पड़ता है? नौ साल का उनका रिकॉर्ड तो यही बता रहा है।

जबकि उनके खास सियासी प्रतिद्वंद्वी समझे जाने वाले राहुल गांधी रोज-रोज नया प्रयोग कर रहे हैं। लोकप्रियता के मामले में ‘बड़ी लकीर’ खींचने में लगे हैं। कांग्रेस (Congress) के अपने लोगों में ही नहीं, वे मध्यवर्ग और वंचित वर्गों के बीच भी अपनी जन नायक की छवि तेजी से गढ़ रहे हैं। इससे टीम मोदी और भाजपा में बेचैनी बढ़ी है। कई राज्यों में चुनाव होने हैं, लगभग सभी जगह बीजेपी को हार का डर सता रहा है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व अजब-गजब प्रयोग भी कर रहा है। ये दांव भी सही दिशा में जाते नहीं दिख रहे।

अगले अब दो-तीन महीने में ही पांच राज्यों के चुनाव हैं। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारे हैं। जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार (BJP government)है। तेलंगाना में  बीआरएस की सरकार है। मिजोरम के भी चुनाव हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के खिलाफ चुनावी बयार स्पष्ट महसूस की जा रही है। इन सभी चुनावी राज्यों में प्रचार का बिगुल बज चुका है। यद्यपि चुनाव आयोग ने अभी कोई औपचारिक एलान नहीं किया। भाजपा की तरफ से मुख्य चेहरे मोदी जी ही हैं।

उनके सियासी जादू के नाम पर वोट की अपील की जा रही है। क्षेत्रीय क्षत्रपों के चेहरे काफी पीछे कर दिए गए हैं। पीएम भी अति विश्वास से भरे हैं। पिछले दिनों भोपाल की एक जनसभा में उन्होंने खुद अपनी ही ब्रांडिंग कर डाली। बोल गए, मोदी ही हर वादे की गारंटी है। वो हर गारंटी की गारंटी है। संदेश यही दिया गया कि भाजपा की जिन सरकारों ने वायदे पूरे नहीं किये, उससे निराश होने की जरूरत नहीं है। आप सिर्फ एक मोदी की गारंटी मानों।  जो कहा वह किया। इशारों-इशारों में बता दिया जाता है कि अयोध्या में ‘ठीक वहीं’ भव्य राम मंदिर तैयार हो रहा है। यानी जो कहा, वह किया।

ऐसी सभाओं में तमाम संदेश मोदी छाप विज्ञापनों से पहले ही प्रकाशित कर दिए जाते हैं। कई दिन पहले से विज्ञापन पट जाते हैं। जिनके जिसमें चंद्रयान-3 की सफलता हो या जी-20 का ऐतिहासिक आयोजन।

सबकी सफलता का श्रेय मोदी जी को दिया जाता है। मीडिया विज्ञापनों के जरिए ऐसी समां बांधी जाती है कि मानों देश में विकास की नई गंगा बहने लगी है। इस देश में वही लोग दुखी हैं, जिन्हें सरकारी विकास के आंकड़े नहीं मालूम। कुछ ही दिन में देश की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवी होगी।

सभी चुनाव जिताओ, तो तीसरे तक धमकने में देर नहीं लगेगी। कुछ इसी तरह समझाया जा रहा है कि राष्ट्रवादी बनो। और कंगाली में भी अमीरी को महसूस करो। इतनी अमीरी महसूस करो कि विकसित मुल्कों को दौरे पढ़ने लगें। इससे राष्ट्र का गौरव बढ़ेगा। जबकि विपक्ष गरीबी का स्यापा करके देशद्रोही भूमिका में है।

मोदी सरकार मीडिया विज्ञापनों में करोड़ों-अरबों रुपए हर महीने झोंक रही है। लोकलाज त्याग करके सरकारी पैसे से भाजपा का प्रचार हो रहा है। मुख्य मीडिया सालों से ‘गुलाम’ मीडिया बन गया है। इसे ‘गोदी’ मीडिया भी कहा जाता है। अब इसमें पत्रकारिता के मूल नियम एकदम से भुला दिए हैं। ये सरकार की चापलूसी ही नहीं कर रहा, बल्कि सरकारी ‘सुपारी’ लेकर विपक्ष को बदनाम कर रहा है। एकदम झूठी खबरें प्रकाशित करता है।

टीम मोदी की दिक्कत है कि मीडिया के ‘स्वान गान’ के बाद भी विपक्ष  बढ़त ले रहा है। हर दिन उसकी पैठ बढ़ रही है। गली-मोहल्लों में भी भाजपा के ‘तोप’ नेताओं को भारी विरोध का सामना करना पड़ता है। तमाम संसाधनों को झोंकने के बाद भी बड़े-बड़े मंत्रियों की सभाओं में लोग नहीं जुट रहे। मीडिया का एक हिस्सा ‘सोशल मीडिया’ के जरिए ऐसे फ्लाप शो दिखा भी देता है। यानी सरकार का डर भी कम हो गया है। राहुल ‘डरो नहीं’ का मंत्र भी फैला रहे हैं।

भाजपा के नेता कहते हैं कि हमारी सरकार का ‘इकबाल’ कमजोर नहीं पड़ा, बल्कि जनता विद्रोही होती जा रही है। उसके अंदर का ‘भक्ति भाव’ कमजोर हो रहा है। ये एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। संभव है, इसमें विदेशी ताकतों की भूमिका हो। क्योंकि ये देश मोदी के जादुई नेतृत्व से खौफ खाने लगे हैं। जलने लगे हैं।

इसी के चलते विदेशी मीडिया हमारे विकास को नहीं, बल्कि अंधेरा पक्ष ही दिखता है। इस नाइंसाफी के खिलाफ टीम मोदी ‘युद्ध’ लड़ रही है। शायद वो मानकर चलती है कि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी मौसमी समस्याएं हैं। आज हैं, कल नहीं होगी। यानी घोर नश्वर समस्याएं हैं। इनका क्या? यदि राष्ट्र की छवि चमकती है, तो हर भारतवासी का सीना 56 इंच का होगा।

भूख-बीमारी में भी ठेठ स्वाभिमान होगा। अच्छी वाली फीलिंग होंगी। लोगों की धर्म में आस्था बढ़ेगी, तो देवी-देवता भी आकाश से पुष्प वर्षा करेंगे। ‘वन नेशन-वन वर्षा’ का फार्मूला लागू होगा। फिर आरक्षण की किसे जरूरत होगी? ‘वन नेशन वन-इलेक्शन’ पर काम शुरू हो ही गया है। इससे बार-बार का चुनाव का झंझट खत्म होगा।

 देश का कितना धन बचेगा? यही धन देश को  बनाने में लगेगा। तरह-तरह से संघ परिवार का तंत्र इस तरह का विमर्श फैला रहा है। यहां तक कि गांव-गांव में ये भी फैलाया जा रहा है कि मोदी जी महज नेता नहीं हैं। वे ‘अवतार’ हैं भारत को ‘नेशन नंबर वन’ बनाने के लिए अवतरित हुए हैं?। त्याग की मूर्ति हैं। विपक्ष कुप्रचार कर रहा है। यही कि मोदी जी 8.5  हजार करोड़ रुपए के हवाई जहाज से चलते हैं। दस लाख वाला सूट पहनते हैं। लाखों की कीमत वाला चश्मा लगाते हैं। महंगे कैमरे रखते हैं। 

संघ के प्रचारक यही कहते हैं कि देश का लोकप्रिय राजा ये सब करे तो क्या? वो अपने लिए विलासिता का जीवन नहीं जीते। केवल राष्ट्र के गौरव के लिए यह ‘लीला’ करते हैं। जिससे अमेरिका और कनाडा वाले जान सके कि जिस ‘अमीरी’ में आज पीएम है। कल 140 करोड लोग इसी ठाठ से रहेंगे। यानी देश का ‘मनोबल’ बढ़ाने के लिए ‘लीला’ हो रही है। वरना उनका क्या? वे तो पहले से कह चुके हैं, कि ‘मेरा क्या मैं तो झोला उठाकर चल दूंगा।

‘ ऐसे फकीर पर ओछे आरोप न लगाओ। कई गांवों में लोग संतों-प्रचारकों के ये प्रवचन सुनकर भावुक भी हो जाते हैं। ये अलग बात है कि कुछ साल पहले ‘मोदी-मोदी’ चिल्लाने वाले युवा बदले-बदले नजर आते हैं। वे सवाल दर सवाल कर रहे हैं। इन्हें भगवाधारी भी समझा नहीं पा रहे। वे रोजगार का सवाल करते हैं। दफ्तरों में बढ़े भ्रष्टाचार की बात करते हैं। प्रचारक चुप्पी साध जाते हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी विपक्ष के बड़े चेहरे बन गए हैं। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के बाद उनकी यात्रा-2 की चर्चा है। 

 राहुल कहते हैं कि उनकी यात्रा तो जारी है। फिलहाल इसका रूप बदला है। राहुल गांधी ही मोदी के मुकाबले अघोषित चेहरे हैं। वे आजकल ‘ऋषि भाव’ में आ गए हैं। बार-बार दोहराते हैं कि उन्हें पीएम नहीं बनना। वे तो ‘बापू’ के रास्ते पर चलकर देश सेवा करना चाहते हैं। राहुल का ये सियासी फंडा भाजपा पर भारी पड़ रहा है। वे पिछले दिनों दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन में अचानक कुलियों के बीच पहुंच गए।

 उनकी लाल ड्रेस भी पहन ली। सर पर सामान रखकर ‘कुलीगिरी’ भी कर ली। गुलाम मीडिया को भी झक मारकर उनकी ‘कुली अवतार’ की तस्वीरें जारी करनी पड़ीं। पिछले दिनों ही वे रेल में सवार हो गए। ‘जनता क्लास’ में रायपुर-बिलासपुर के बीच यात्रा की। सभी से मिलते रहे। इस तरह ‘दरिद्र नारायण’ अवतार में आकर वे लगातार बड़ी लकीर खींच रहे हैं।

उनकी सभाओं पर लाख-50 हजार लोग बगैर तैयारी के जुट रहे हैं। जबकि आधुनिक लौह पुरुष गृहमंत्री अमित शाह की सभा में खाली कुर्सियां कहीं-कहीं गुलाम मीडिया ने भी दिखा दी। खुद पीएम की सभा में भीड़ जुटाने के लिए कितने संसाधन झोंकने पड़ते हैं? हर जगह उनकी चर्चा हो जाती है। इन सभाओं में बेचैनी देखी जा रही है।

हार का डर बढ़ गया है। इसलिए मध्यप्रदेश में भाजपा ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की तो, इसमें सात सांसदों के नाम भी रखें। इनमें तीन केंद्रीय मंत्री भी हैं। पार्टी के बड़े नेता और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का भी नाम है। वे खुद हैरान हैं।  खुलकर कह चुके हैं कि वे चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं। लेकिन क्या करें? ये ऐसा है कि जैसे एसपी रैंक के अधिकारी को कहा जाए ‘दरोगा’ की परीक्षा में बैठ जाएं।

कैलाश विजय वर्गीय कुछ मुखर नेता हैं, शायद इसीलिए वे ‘मन की बात’ करने का जोखिम भी ले लेते हैं। जबकि यही हाल दूसरे बड़े नेताओं का है। करीब दो दशक के मुख्यमंत्री चेहरे शिवराज सिंह चौहान को एकदम हाशिए पर डाल दिया गया है।

उनके समर्थकों को झटका लगा है। बताया जाता है कि ऐसा ही सियासी प्रयोग राजस्थान में भी करने की तैयारी हो चुकी है। इसके बाद भी राजस्थान छोड़कर किसी भी राज्य में भाजपा को ‘इज्जत’ बचने की उम्मीद नहीं है। लेकिन यहां वसुंधरा राजे ‘कोप भवन’ में है। ये भाजपा के लिए अशुभ संकेत माना जाता है।

मणिपुर में हिंसा की आग जारी है। शायद यहां का मामला ‘डबल इंजन’ सरकार की सबसे बड़ी असफलता है। 23 सितंबर को यहां महीनों बाद ‘इंटरनेट बैन’ हटाया। उसी दिन दो छात्रों की हत्या की तस्वीरें वायरल हुई। इंफाल में छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया। थाने जलाए गये। पुलिस के दमन से 155 घायल छात्र अस्पताल में भर्ती हुए। कई मरणासन्न हैं। यहां दो समुदायों के बीच तीन मई से हिंसा जारी है।

एक तरह से ‘गृह युद्ध’ की स्थिति है। इसके बावजूद सीएम वीरेंद्र सिंह कुर्सी पर कायम हैं। यह भी? एक आश्चर्य ही है। दो सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं। पूरा प्रदेश जल रहा है। पीएम एक बार भी वहां नहीं गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री भी दोबारा नहीं गए। 27 सितंबर को मणिपुर भाजपा की अध्यक्ष शारदा देवी का घर इंफाल में जला दिया गया। वे किसी तरह बची हैं। मणिपुर प्रकरण ने मोदी सरकार    की चमक फीकी कर दी है। फिलहाल वे चुप्पी साधे हैं। ये चुप्पी उन्हें ‘महंगी’ पड़ सकती है।

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