पाकिस्तानी जायरीनों को वक्फ बोर्ड देगा गीता और गंगाजल!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

देहरादून।  देवभूमि उत्तराखंड (Devbhoomi Uttarakhand) के पिरान कलियर शरीफ की दरगाह पर पाकिस्तान (Pakistan) से आए जायरीनों को इस बार गीता और गंगाजल भेंट किया जाएगा।वक्फ बोर्ड इस अनूठी भेंट को देंकर वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दुनिया को देना चाहता हैं। उत्तराखंड के पिरान कलियर शरीफ में हजरत साबिर मखदूम शाह का 755 वां सालाना उर्स शुरू हो चुका है। हर साल यहां लाखों की तादाद में जायरीन यानि श्रद्धालु देश विदेश से आते है।जिनमे बांग्लादेश (Bangladesh) पाकिस्तान और साउथ अफ्रीका जैसे देशो से आने वाले जायरीन भी शामिल हैं।

उत्तराखंड वक्फ बोर्ड (Uttarakhand Waqf Board ) के अध्यक्ष शादाब शम्स ने बताया कि उन्होंने मोहब्बत का पैगाम देने की पहल की है। पूरी दुनिया एक परिवार है, इसका संदेश भी हम दे रहे है। तभी तो हम उर्स के मौके पर पाकिस्तान से आए तमाम पाकिस्तानियों को गीता और गंगाजल भेंट करेंगे, ताकि पाकिस्तानी इस अनूठे उपहार को ले जाकर अपने देश के मंदिरों में दे सकें।

इससे उनका अपने देश के मंदिरों के प्रति जुड़ाव बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि, हम चाहते हैं कि सारी दुनिया एक हो और इसी को लेकर हम लोगों ने यह फैसला लिया है।उत्तराखंड में पांचवें धाम के नाम से मशहूर साबिर मखदूम शाह की दरगाह हरिद्वार जिले के पिरान कलियर में मौजूद है।यह दरगाह 755 साल से भी ज्यादा पुरानी है। दरगाह की मान्यता न केवल अपने देश में,बल्कि दुनिया के अन्य कई देशो में भी है। हर साल उर्स के मौके पर पाकिस्तान से भी सैकड़ों लोग इस दरगाह पर सजदा करने  अपनी आस्था के कारण पहुंचते हैं। इस बार भी  110 पाकिस्तानी जायरीन पिरान कलियर अपना पंजीकरण कराकर आए है।वे यहां 2 अक्टूबर तक रहेंगे।

पिरान कलियर में एक ऐसी प्रसिद्ध दरगाह भी है जहां भूतों की पिटाई होती है। इस दरगाह में हर धर्म के श्रद्धालु आते हैं।यह देश की दूसरी सबसे बड़ी दरगाह है। यहां सूफी संत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की कब्र है। मुस्लिम के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी इस दरगाह पर चादर चढाने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की समस्याएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।इस दरगाह में नकारात्मक ऊर्जा और भूत-प्रेतों के शाये से छुटकारा मिलता है।

जिन लोगों पर भूत बाधा होती है, उनके परिवार वाले उन्हें इस दरगाह में लेकर आते हैं। यह दरगाह रुड़की शहर के बाहरी इलाके में है,यह जगह हिंदू और मुस्लिम धर्मों के बीच एकता का उदाहरण भी है ।हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक की यह दरगाह काफी प्रसिद्ध है। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर शरीफ के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी दरगाह है। बचपन में ही साबिर पाक के पिता का देहांत हो गया था। जिसके बाद उनकी मां उन्हें अपने भाई हजरत बाबा फरीद के यहां ले आई।

मामा ने उन्हें गरीबों को लंगर खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी। साबिर रोजाना गरीबों के लिए खाना बांटा करते थे, पर खुद उसमें से कुछ नहीं खाते थे। बाद में हजरत बाबा फरीद ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बना कर पिरान कलियर भेज दिया।तभी से वे पिरान कलियर के होकर रह गए। मेहंदी डोरी की रस्म में शिरकत करने वाले जायरीन देश विदेश से बड़ी संख्या में पिरान कलियर पहुंचते हैं। सज्जादानशीन के कदीमी घर से जुलूस के रूप में दरगाह शरीफ आते हैं। जहां पर मेहदी डोरी की रस्म को अदा किया जाता है। इसके बाद सालाना उर्स का विधिवत आगाज होता है।

भारत के पिरान कलियर उर्स में शामिल होकर साबिर साहब की दरगाह पर सजदा करने के लिए पाकिस्तान में इस्लामाबाद स्तिथ भारतीय दूतावास में 161 पाकिस्तानी लोगों ने वीजा के लिए आवेदन किया था। जिनमे से भारतीय दूतावास ने 110 पाकिस्तानियों को पिरान कलियर उर्स का वीजा दिया है।जिनमें 108 जायरीन और 2 पाकिस्तान धर्मस्व विभाग के अधिकारी शामिल हैं।ये पाकिस्तानी जायरीन 25 सितंबर को पाकिस्तान बॉर्डर पार करके 26 सितंबर को लाहौरी एक्सप्रेस ट्रेन से रुड़की पहुंचें।

रेलवे स्टेशन पर इन जायरीनों का जोरदार स्वागत किया गया।जायरीनों को जवाइंट मजिस्ट्रेट एवं मेला अधिकारी अभिनव शाह ,वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स, सीईओ सैय्यद सिराज उसमान, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और खुफिया विभाग द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच रुड़की से कलियर ले जाया गया। 110 पाकिस्तानी जायरीनों को दिल्ली स्तिथ पाकिस्तान दूतावास के दो लाइजनिंग अधिकारी शफकत जलबानी और मोहम्मद उस्मान अटारी बॉर्डर से रिसीव करके ट्रेन द्वारा पिरान कलियर तक लेकर आए है।जिनकी अपने वतन के लिए वापसी अब 2 अक्टूबर को होगी।

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