राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने पिछले दिनों आरक्षण के समर्थन में बयान देकर सबको चौंका दिया। उन्होंने संविधान प्रदत्त आरक्षण को तब तक जारी रखने को कहा जब तक कि दलित वर्गों को समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिल जाता। मोहन भागवत ने माना कि हिंदू समाज के उच्च वर्गों यानी सवर्णों ने निचले वर्गों पर दो हजार साल तक अत्याचार किये हैं और संघ इसे उचित नहीं मानता। अब पश्चाताप स्वरूप हिंदू समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को खत्म करना चाहता है।
आरक्षण इस भेदभाव को खत्म करने का एक तरीका है। उन्होंने ये भी कहा कि भेदभाव खत्म होने और बराबरी पर आने में यदि दो सौ साल लगते हैं, तो भी आरक्षण जारी रहना चाहिए। ऐसा करके संघ प्रमुख ने बड़ी साफगोई से हिंदू समाज में गहरी जड़ें जमाये बैठे जातीय भेदभाव को रेखांकित किया है। इतना ही नहीं भेदभाव आज भी जारी है। ये भी स्वीकार किया है।
उन्होंने कहा कि इस भेदभाव को तर्क से नहीं, संवेदना से समझा जा सकता है। भागवत का ये बयान ना केवल संघ की प्रचलित अवधारणा के विरुद्ध है, बल्कि उनके अब तक के अपने विचार के भी विपरीत है। उन्होंने 2015 में दलित आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बताई थी।
आम धारणा है कि संघ जातीय आरक्षण (Caste reservation )का विरोधी है। संघ ने हमेशा आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की वकालत की है। ऐसे में मोहन भागवत ने अचानक यू-टर्न लेते हुए जातीय आरक्षण को जारी रखने की बात कहकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उनका ये बयान ऐसे समय में आया है, जब तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन को खत्म करने के बयान के खिलाफ राजनीति गर्म है। समस्त बीजेपी नेतृत्व उदयनिधि के बयान के बहाने विपक्षी दलों के नये-नवेले महागठबंधन ‘इंडिया’ को घेर रहा है। कांग्रेस (Congress) और ‘इंडिया’ गठबंधन को सनातन का विरोधी बताकर कर हिंदुओं के ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहा है। निसंदेह उदयनिधि स्टालिन बयान भी ध्रुवीकरण की मुहिम का हिस्सा है।
चूंकि तमिलनाडु में एक शताब्दी पहले पेरियार ने दलितों पर सवर्णों के अत्याचारों के खिलाफ सशक्त आंदोलन चलाया था। ये आंदोलन सनातन की ज्यादतियों के विरुद्ध था। ऐसे में संघ प्रमुख के आरक्षण के समर्थन में दिये बयान और दलितों पर सवर्णों के अत्याचारों की स्वीकारोक्ति के भी राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाना लाजिमी है। हालांकि, इससे काफी पहले संघ के सरकार्यवाह रहे भैया जी जोशी ने भी कहा था कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक इसे पाने वाला समाज स्वयं ही ये ना कह दे कि उन्हें अब आरक्षण की जरूरत नहीं है। इतने सबके बावजूद संघ से जुड़े और उसकी विचारधारा से प्रभावित सनातनी हिंदू लगातार संविधान प्रदत्त आरक्षण का विरोध बड़े स्तर पर करते आ रहे हैं।
इसलिए भागवत के बयान को नितांत राजनीतिक ही माना जाना स्वाभाविक है। संघ प्रमुख ने कुछ समय पहले हिंदू समाज को जातियों में बांटने के लिए ब्राह्मणों को जिम्मेदार बताया था। उसकी चौतरफा आलोचना हुई तो संघ नेतृत्व की तरफ से सफाई देकर मामले को शांत किया गया था। पिछले साल कन्याकुमारी से कश्मीर तक पद यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने संघ पर सीधे हमले किये थे। लेकिन संघ ने उनका कोई जवाब नहीं दिया। संघ प्रमुख ने राहुल की मोहब्बत की दुकान और हमलों का जवाब मदरसे और मस्जिद में जाकर मुस्लिम विद्वानों के प्रतिनिधिमंडल से मिलकर दिया था। भागवत के इस कदम को राहुल की बढ़ती लोकप्रियता के दबाव में बताया गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उस समय बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुस्लिमों से मेलजोल बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने बीते दिनों रक्षाबंधन पर भी कार्यकर्ताओं से मुस्लिम महिलाओं से राखी बंधवाने को कहा था। लेकिन भागवत और प्रधानमंत्री की इन अपीलों का धरातल पर कोई असर नहीं दिखा। संघ प्रमुख के निर्देशों और बयानों का कोई प्रभाव बीजेपी कार्यकर्ताओं और उसके समर्थकों पर दिखाई नहीं पड़ता।
संघ और भाजपा अच्छी तरह जानते हैं कि केवल सवर्णों के समर्थन और हिंदुत्व के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसके लिए हिंदू समाज के निम्न तबकों के आरक्षित वर्गों का साथ जरूरी है। संघ और बीजेपी की अब तक की कार्यशैली से साफ है कि उसके टारगेट पहले से निर्धारित हैं। सत्ता पाने और सत्ता में बने रहने के लिए हिंदू एकता तथा दबे-कुचले वर्गों के साथ न्याय का हिमायती दिखना जरूरी है।सरकारी नौकरियों के अवसर घटने, ठेके पर भर्तियां किये जाने से सबसे ज्यादा आरक्षित वर्ग ही प्रभावित हुए हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि आरक्षण अब महज दिखावा रह गया है। लेकिन ये बात महत्वपूर्ण है कि संघ प्रमुख ने हिंदू समाज में निम्न जातियों के साथ भेदभाव को माना है तथा इसे खत्म करने की बात दोहराई है। उनके इस बयान को राजनीति से इतर समता मूलक समाज की स्थापना की दिशा में सकारात्मक कदम माना जाना चाहिए। भागवत का उक्त बयान आज के असहिष्णु माहौल में अमृत की बूंदों के समान है। यदि संघ वास्तव में ईमानदारी से इस दिशा में बढ़ा तो निश्चित रूप से ये सामाजिक बदलाव में क्रांतिकारी कदम होगा।