तिरुवनंतपुरम। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य (National Mental Health) कार्यक्रम के सलाहकार डॉ. नरेश पुरोहित ने विश्व आत्महत्या (suicide) रोकथाम दिवस के अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि आत्महत्या के लिए किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
डा़ॅ पुरोहित ने संवाददाताओं से कहा कि आत्महत्याएं शून्य में नहीं होती हैं। वे समाज में होती हैं। एक ऐसा समाज जो सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत दोनों ही सामाजिक स्थानों में स्तरीकरण, उत्पीड़न और भेदभाव से भरा है।
उन्होंने कहा, ‘अगर हमें आत्महत्या (suicide) की रोकथाम जैसे जटिल विषय के बारे में सोचना है, खासकर ऐसे देश में जहां कमजोर आबादी के बीच आत्महत्या की दर चिंताजनक है, तो हमें व्यक्तिगत आत्महत्या से कई कदम पीछे हटना होगा। उन्होंने बताया कि भारत में 2021 में हर दिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एडीएसआई रिपोर्ट 2021 के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, यह 2020 में 12,526 मौतों से 4.5 प्रतिशत अधिक है, जिसमें 10,732 में से 864 आत्महत्याएं परीक्षा में विफलता के कारण हुईं। डॉ. पुरोहित एसोसिएशन ऑफ स्टडीज़ इन मेंटल केयर के प्रधान अन्वेषक भी हैं, ने कहा कि आत्महत्या की रोकथाम अभी भी एक सार्वभौमिक चुनौती बनी हुई है।
‘हर साल, आत्महत्या वैश्विक स्तर पर मृत्यु के शीर्ष 20 कारणों में से एक है। यह 8,00,000 से अधिक लोगों की जान ले लेती है। उन्होंने कहा कि इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि आत्महत्या के संपर्क में आने से कमजोर लोगों में आत्मघाती विचार और व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं। इसे ‘संक्रमण’ कहा जाता है और यह किसी विशेष क्षेत्र में या किसी समूह के भीतर आत्महत्याओं के समूह को जन्म दे सकता है।