अब 2024 पर नजर

रणविजय सिंह

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections)  वर्ष 2024 के शुरू  में होंगे। भाजपा और कांग्रेस  दोनों ही देश की राष्ट्रीय पार्टियां हैं और दोनों आगामी लोकसभा चुनाव(Lok Sabha elections) की तैयारियों में जुट गई हैं। चुनाव परिणाम क्या होंगे। अभी इस पर टिप्पणी करना काफी जल्दीबाजी होगी। हां, इतना जरूर है कि आगामी लोकसभा का चुनाव काफी रोचक होगा। दोनों ही राजनीतिक पार्टियां अपने अपने तरीके से लोगों के बीच पैठ बनाने में जुटी हुई हैं।

 इन पार्टियों का पहला लक्ष्य छोटे छोटे राज्यों में अपना अपना जनाधार तैयार करना है। क्योंकि आगामी लोकसभा  चुनाव में एक एक सीट सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए अभी से ही कांग्रेस हो या भाजपा  दोनों ही पार्टियों ने लोकसभा की एक एक सीट पर मंथन करना शुरू कर दिया है। ताकि वे अपने अपने वोट बैंक को सहेज कर रख सकें। इस क्रम में इन पार्टियों की नजर पूर्वोत्तर  के राज्यों के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड पर विशेष रूप से है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही उत्तराखंड की तर्ज  पर अन्य छोटे राज्यों के वोटरों को अभी से ही साधना शुरू कर दिया है।

इस क्रम में लंबे समय से टल रही उत्तराखंड भाजपा की कोर कमेटी की बैठक भी आनन फानन में बुलाई गई जिसमें लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर विशेष रूप से चर्चा की गई। हालांकि, पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बी एल संतोष की अध्यक्षता में हुई बैठक में कार्यकर्ताओं की नारजगी को किस तरह से दूर की जाए, इस पर भी मंथन किया गया। ऐसी ही महत्वपूर्ण बैठक कांग्रेस की दिल्ली में भी हुई है।

दिल्ली में संपन्न हुई बैठक में उत्तराखंड से कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को भी तलब किया गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन  खड़गे की अध्यक्षता में हुई बैठक में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे। कांग्रेस की इस बैठक में लोकसभा की सभी पांचों सीटों के अलावा आपसी कलह से कैसे निपटा जाए,  इसे लेकर विशेष रूप से मंथन किया गया। खास बात यह है कि भाजपा की तरह कार्यकर्ताओं की नाराजगी किस तरह से दूर की जाए।

इस पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं के साथ विचार विमर्श किया। मजेदार बात यह है कि कार्यकर्ता दोनों ही पार्टियों से नाराज हैं। हालांकि भाजपा की तो केंद्र और राज्य दोनों में ही सरकार है। फिर नाराजगी की वजह क्या है, यह समझ से परे है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा में गुटबाजी चरम पर है।

जो नेता सत्ता के करीब हैं उनसे जुड़े कार्यकर्ता खुशहाल हैं लेकिन जो वरिष्ठ नेता सत्ता से दूर हैं उनके कार्यकर्ताओं  की कोई पूछ नहीं है। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि भाजपा का हर कार्यकर्ता काफी खुशहाल है। गुटों में बंटी भाजपा के कार्यकर्ता जिनको सत्ता सुख नहीं मिल रहा है उनमें अधिकतर  चुनाव के दौरान अवकाश में जाने की परंपरा रही है। माना जा रहा है कि इस बार भी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई तो कार्यकर्ताओं में काफी जोरदार नाराजगी बढ़ेगी।

जहां तक कांग्रेसी कार्यकर्ताओं  का सवाल है। अब यह पार्टी न ही  केंद्र और न ही राज्य में है। निश्चित रूप से कार्यकर्ता  काफी तंगहाल में हैं। हां पर जितने हैं स्थाई हैं। कांग्रेस के दलबदलू कार्यकर्ता यहां पर कम ही दिखते हैं। बात सही है कि कार्यकर्ताओं के लिए मंदी का दौर चल रहा है, इसलिए कार्यकर्ताओं की रफ्तार काफी धीमी है। यही वजह है कि पिछले  विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। हालांकि कांग्रेस लंबे समय तक केंद्र में रही है।

उत्तराखंड में भी कांग्रेस की सरकार रही है। इसलिए  कांग्रेस के सीनियर नेता तो हर नजरिए से संपन्न हैं। हां कार्यकर्ताओंं का हाल जरूर खस्ता है। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि कार्यकर्ता तो पार्टी की रीढ़ हैं। बात केवल कांग्रेस की ही नहीं है। बल्कि यह बात भाजपा पर भी लागू है। कार्यकर्ताओं का सशक्त होना हर पार्टी के लिए अनिवार्य है। बहरहाल दोनों ही पार्टियां अपने अपने हिसाब से लोकसभा की तैयारियों में जुट गई हैं। ज्यों ज्यों लोकसभा का चुनाव नजदीक आएगा त्यों त्यों दोनों ही पार्टियों की असली तस्वीर सामने आएगी।

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