अलमोड़ा। भाकृअनुप – विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में 05-06 जुलाई, 2023 के दौरान ’’सतत् पर्वतीय कृषिः शून्य भूख और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के लिए चुनौतियां और अवसर’’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
यह कार्यक्रम भाकृअनुप – विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा और सतत् पर्वतीय कृषि के लिए बोशी सेन सोसायटी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं सोसायटी के संरक्षक डॉ. तिलक राज शर्मा, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली रहे।
उद्घाटन समारोह में प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संगोष्ठी हेतु चयनित विषय आज के परिपेक्ष्य में तर्कसंगत है। सतत् पर्वतीय कृषि के लिए बोशी सेन सोसायटी एवं विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का यह प्रयास अत्यन्त प्रंशसनीय है। यह संगोष्ठी पर्वतीय कृषि के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता को पहचानने, सभी को अन्न उपलब्ध कराने व पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम पहल है।
साथ ही उन्होंने बताया कि पर्वतीय कृषकों को सशक्त बनाने हेतु कृषि के साथ ही पशुपालन, द्वितीयक कृषि, उद्यानिकी एवं चारा उत्पादन को निहित करने की आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखकर संस्थान के वैज्ञानिकों को अपने शोध कार्यों में बदलाव लाने के लिए कहा। उनके द्वारा त्वरित प्रजनन एवं जीनोमिक एडिटिंग पर कार्य करने हेतु आह्वान किया गया। उन्होंने आशा व्यक्त कि इस गोष्ठी के दौरान दी गयी संस्तुतियाँ पर्वतीय कृषि की दिशा निर्धारित करने में सक्षम होगी।
इस अवसर पर डॉ. डी. के. यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), भाकृअनुप ने इस सोसायटी का उल्लेख एक युवा सोसायटी के रूप में किया। पर्वतीय कृषि एक चुनौतीपूर्ण कृषि है एवं यह एक जैव विविधता से परिपूर्ण है। उन्होंने कृषि विविधीकरण, मूल्यसंवर्धन एवं कटाई उपरान्त प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि यह संस्थान एवं सोसायटी मिलकर कृषि की विभिन्न आयामों पर कार्य करते हुए पर्वतीय कृषि के उत्थान हेतु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक एवं अध्यक्ष सतत् पर्वतीय कृषि के लिए बोशी सेन सोसायटी डॉ. लक्ष्मी कान्त ने मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि का स्वागत करते हुए यह विश्वास दिलाया कि यह संस्थान एवं सोसायटी पर्वतीय कृषि के उत्थान हेतु सदैव प्रयासरत रहेंगे तथा संगोष्ठी के दौरान दी गयी सिफारिशों को पूर्ण करने का प्रयास करेंगे।
पाठ्îक्रम के दौरान जलवायु लचीलेपन और स्थिरता के लिए विविध पर्वतीय कृषि, उत्पादकता वृद्धि और संसाधन संरक्षण के लिए नवाचार, मशीनीकरण और द्वितीयक कृषि, सामाजिक-आर्थिक चिंताओं और तकनीकी प्रसार नीति, ढांचे, विपणन और कृषि-व्यवसाय को बढ़ावा देने जैसे विभिन्न विषयों पर चर्चा की गयी। डॉ. टी. आर. शर्मा, डॉ जे.पी. टण्डन, डॉ. आर. सी. श्रीवास्तव, डॉ. पी. एल. गौतम एवं डॉ. आर. के. मित्तल संगोष्ठी के विभिन्न सत्र में अध्यक्ष रहे।
संगोष्ठी ने अत्याधुनिक अनुसंधान, सफलता की कहानियों और सर्वाेत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक मंच के रूप में काम किया, जो टिकाऊ पर्वतीय कृषि के लिए व्यवहारिक रणनीतियों और हस्तक्षेपों की सामूहिक रूप से पहचान करने में सक्षम रही। विभिन्न वक्ताओं और प्रस्तुतकर्ताओं द्वारा संगोष्ठी के दौरान व्याख्यान दिये गये। विभिन्न सत्रों के दौरान उत्कृष्ट मौखिक एवं पोस्टर प्रस्तुतीकरण को सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी के समापन सत्र के दौरान अध्यक्ष रहे डॉ. पी. एल. गौतम, (पूर्व अध्यक्ष, पी.पी.वी.एफ.आर.ए. तथा एनबीए एवं पूर्व कुलपति, जी.बी.पी.यू.ए.टी., पंतनगर) ने संस्थान को इस संगोष्ठी के आयोजन हेतु बहुत-बहुत बधाई दी तथा इसे जैविक विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रान्ति बताया।
उन्होंने ए.आई तकनीकी के कृषि में उपयोग में जानकारी देते हुए अपनी वास्तविकता को अपनाने पर बल दिया। उनके अनुसार सही प्रलेखन के द्वारा हम अपनी वास्तविकता को बनाये रख सकते हैं। अन्त में अध्यक्ष ने सत्र के दौरान निकली संस्तुतियों को सहमति देते हुए सत्र का समापन किया। समापन सत्र का संचालन डॉ. जे. के. बिष्ट, प्रभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन विभाग तथा धन्यवाद प्रस्ताव आयोजन सचिव डॉ. डी. सी. जोशी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर डॉ के. पी. सिंह, डॉ. सुनील तिवारी, डॉ. एम के वर्मा, डॉ जे. सी. भट्ट डॉ अरूणव पट्टनायक, डॉ अनिल कुमार शर्मा, पंतनगर, डॉ. ए. के. मोहन्ती, डॉ. ए. के. श्रीवास्तव, डॉ सुरेश पाण्डे, डॉ शिव प्रसाद, डॉ ए. के. शर्मा, डॉ महेश चन्द्र, डॉ संध्या सिंह, डॉ पी. सी. तिवारी, डॉ अंजनी कुमार, डॉ मंजू जिरार्ड आदि गणमान्यों ने अपने विचार रखे।
इस संगोष्ठी में डॉ. डी.सी. जोशी, आयोजन सचिव, डॉ. आशीष कुमार सिंह, सह आयोजन सचिव, डॉ. आर पी मीना कोषाध्यक्ष, डॉ. एन के हेडाउ, डॉ. के. के. मिश्रा, डॉ जे. के. बिष्ट एवं डॉ. बी. एम. पाण्डे विभिन्न सत्रों के संयोजक रहे।