विपक्ष की तेज घेराबंदी

‘राष्ट्रवाद’ पर दांव लगाने को तैयार टीम मोदी!
कर्नाटक हार ने पूरे संघ परिवार के नेतृत्व को किया बेचैन

वीरेंद्र सेंगर

नई दिल्ली।भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बेचैनी में है। इधर, लगातार कई स्तरों पर मंत्रणाओं का दौर तेज हो गया है। इस साल अभी पांच राज्यों के चुनाव की चुनौती है। कर्नाटक में तमाम कोशिशों के बाद भी करारी हार का सामना करना पड़ा। जबकि पार्टी के ‘मुख्य प्रचारक’ पीएम नरेंद्र मोदी और ‘मुख्य रणनीतिकार’ गृहमंत्री अमित शाह ने पूरी ताकत लगा दी थी।

मोदी जी ने आखिरी चरण तक प्रचार किया था। पार्टी और सरकार ने हर हथकंडा अपनाने में कोई हिचक नहीं दिखाई। खुद पीएम मोदी ने बजरंग दल को ‘बजरंगबली’ का पर्याय बनाने का कार्ड भी खेला। एक तरह बजरंगबली को चुनावी हथियार बनाया था। फिर भी कांग्रेस को यहां शानदार सफलता मिली थी। इस शिकस्त से पूरे संघ परिवार के नेतृत्व को बेचैन कर दिया है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं।

कांग्रेस काफी आक्रामक मुद्रा में है। विपक्ष की एकजुटता की कवायद सफल होती दिख रही है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व कोई चौंकाने वाला फैसला करके विपक्ष को पस्त करने की रणनीति पर काम कर है। सवाल है कि यह चौंकाने वाली रणनीति क्या हो सकती है?
इस बारे में भाजपा के बड़े नेता एकदम चुप्पी साधे मिले। बस संकेत दे रहे हैं कि अगले दो महीनों में कोई चैंकाने वाला फैसला सामने आ जाने जा रहा है।

पार्टी के सांसदों-विधायकों से खास तौर पर कहा गया है कि वे अपने क्षेत्रों में योजनाबद्ध ढंग से केंद्र सरकार की राष्ट्रीय उपलब्धियों का जमकर प्रचार करें। उचित संसाधन सबको उपलब्ध रहेंगे। सभी सांसदों पर ‘डिजिटल निगरानी’ रखी जा रही है। इससे लोकसभा के कुछ भाजपा सांसद बेचैन हो गए हैं।
यहां भाजपा के राजनीतिक हलकों में तरह-तरह के किस्से सुनाए जा रहे हैं। इनमें कितनी हकीकत और कितना फसाना है? यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन इन्हें एक सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता। एक किस्सा यह है कि 6 घंटे चली एक मैराथन बैठक में उत्तर प्रदेश के कई वरिष्ठ सांसदों को तलब किया गया।

गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा साहब इन सांसदों से उनके दौरों का फीडबैक ले रहे थे। पूर्वी यूपी के एक ‘यू-टर्न’ चर्चित सांसद हैं। ये एक दिन के ऐतिहासिक मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
अब दलबदल शिरोमणि का नाम लेने की जरूरत नहीं है। आप में से काफी लोगों ने उनकी पहचान समझ ली होगी। ‘पाठशाला’ में सवाल हुआ कि आप दस दिन में कहां-कहां गए थे? सांसद जी पूरी तैयारी से आए थे। डायरी देखकर एक सांस में ही बहुत कुछ कह गये। पूछे जाने पर बता गए कि उनकी नुक्कड़ सभाओं में पांच सौ से दस हजार तक लोग थे। कुछ के उन्होंने डिजिटल सबूत भी सामने रखे। ये रिपोर्ट 3 दिन पहले लिखित में दे चुके थे। उन्हें एसी में भी पसीना आ रहा था। पूछताछ पुलिसिया अंदाज में शुरू हुई। सवाल कड़क थे।
सूत्रों के अनुसार, पूछा गया, जो हमें परोसा है, इसमें तो काफी कुछ पुराना है। छह-आठ महीने पहले का है। नया काम कहां है? इस तारीख को तो आप वहां गए ही नहीं। घर में ही पड़े रहे। संकेत साफ था कि पार्टी नेतृत्व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। डिजिटल जासूसी से अपनों की भी निगरानी हो रही है। सांसद जी का भी ‘फेंकूपन’ पकड़ा गया, तो पसीना और तेज हुआ। नड्डा जी ने उन्हें दो गिलास पानी पिलाया। उनसे कहा गया कि आपको पार्टी टिकट नहीं दे, तो आपकी जगह किसको दे? कोई दो नाम सुझाएं। नेता जी और बेचैन हुए। उन्होंने इस ‘पाठशाला’
के बाद ताबड़तोड़ दौरे शुरू कर दिए। इनमें सरकार की उपलब्धियों का बखान कम, मोदी-शाह की चरण वंदना ज्यादा रहती है। ऐसे ही तमाम किस्से स्वनाम धन्य और सांसदों के बारे में तैर रहे हैं। कुछ किस्से तो बहुत दिलचस्प हैं। कई सांसद तो एआई डिजीटल तकनीक को कोस रहे हैं। इनमें से तमाम को टिकट कटने का डर सता रहा है। दरअसल, पार्टी ने पिछले तीन महीने में दो बार आंतरिक चुनावी सर्वे कराए हैं। इसी आधार पर आकलन चल रहा है। क्योंकि टीम मोदी 2024 के लिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। यूपी-उत्तराखंड के 40 सांसदों की टिकट कटने का शिगूफा फैला है।
कर्नाटक परिणाम के बाद समय से पहले चुनाव कराने की सुगबुगाहट और तेज हो गई। क्योंकि पांच चुनावी राज्यों से पार्टी के लिए अच्छा फीडबैक नहीं आ रहा। खासतौर पर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से। पार्टी को सबसे ज्यादा उम्मीद राजस्थान से रही है। वैसे भी यहां चुनावी रवायत रही है कि हर चुनाव में सरकार बदल जाती है। इस हिसाब से भी वहां जीत की पारी इस बार भाजपा की मानी जाती है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सालों से झगड़ा चल रहा है। पायलट का प्रभाव सजातीय गुर्जर बिरादरी में है। इसी बल पर पायलट मुख्यमंत्री का चेहरा बनना चाहते हैं। पहले भी वह ब्लैकमेलिंग के स्तर पर जाकर ‘विद्रोह’ का बिगुल बजा चुके हैं। लेकिन हिम्मत इतनी भी नहीं हुई कि भाजपा का सीधे दामन थाम ले। अब कांग्रेस हाई कमान ने उन्हें संदेश दिया है कि पार्टी अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए रखेगी। उन्हें 2024 के चुनाव का इंतजार करना चाहिए इसके बाद ही कुछ हो पाएगा।
इस लंबी खींचतान के चलते गुर्जर वोट बैंक में भी पायलट की पकड़ ढीली पड़ रही है। इधर, गहलोत ने कई कल्याणकारी लुभावनी योजनाओं का पिटारा खोल दिया है। ऐसे में उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
संघ परिवार के ताजा आंतरिक चुनाव सर्वेक्षण में भी यही सामने आया है कि अशोक गहलोत की स्थिति काफी मजबूत है। पायलट का इस्तेमाल भी भाजपा के रणनीतिकारों के ज्यादा काम नहीं आ रहा। यदि पायलट अलग नया राजनीतिक कुनबा बनाकर चुनाव मैदान में आते हैं, तो इसमें कांग्रेस को और लाभ मिलेगा। क्योंकि राजस्थान में गुर्जर वोट बैंक पहले से ही भाजपा के पाले में रहा है। ऐसे में पायलट अपने झंडे के साथ उतरे, तो भी भाजपा के घर में ही सेंध लगा देंगे। दूसरी तरफ, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ‘कोप भवन’ में बैठी है। सूत्रों के अनुसार, उनका दबाव है कि उन्हें ही ‘सीएम चेहरा’ घोषित किया जाए। जबकि वे मोदी-शाह की पसंद नहीं हैं। वसुंधरा अपने कड़े तेवरों के लिए जानी जाती हंै। उनके मुख्यमंत्री गहलोत से बहुत अच्छे रिश्ते हैं। माना जा रहा है कि यदि वसुंधरा की शर्त नहीं मानी गई तो वे ‘हिडेन एजेंडा’ के तहत अपने मित्र अशोक गहलोत की ही अप्रत्यक्ष मदद करेंगी। यह रणनीति भाजपा के लिए घातक हो सकती है। अब देखना ये है कि मोदी-शाह की जोड़ी वसुंधरा के सामने समर्पण करती है? या जोखिम लेना पसंद करती है। फिलहाल, राजस्थान को जीतने का उनका हसीन सपना टूटता नजर आ रहा है।
महाराष्ट्र और बिहार की सियासत भी भाजपा के लिए सिरदर्द बनी हुई है। वहां के नए चुनावी समीकरण भाजपा को डरा रहे हैं। अभी के हालात में इन दो राज्यों में भाजपा को कम से कम 50 सीटों का झटका लग सकता है। 28 मई को नई संसद का भव्य उद्घाटन हुआ था। तमाम घेराबंदी के बावजूद कांग्रेस सहित 19 दलों ने कार्यक्रम का बायकॉट किया था। यह कदम विपक्षी एकता का मजबूत संकेत रहा है। इसके एक दिन पहले ही नीति आयोग में पीएम की अध्यक्षता में मुख्यमंत्रियों की एक बैठक आयोजित की गयी थी। इसमें भी विपक्षी दलों के 11 मुख्यमंत्री नदारद रहे थे। इसे भी लामबंदी का हिस्सा माना गया।
दस जून को महाराष्ट्र की सियासत में एक नया मोड़ आ गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस के सुप्रीमो शरद पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार को किनारे लगा दिया है। उन्होंने अपनी पुत्री सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है। इस दांव से भाजपा को ज्यादा झटका लगा है। क्योंकि अजित पवार भाजपा से मिलकर नया ‘खेल’ करने वाले थे। कद्दावर नेता शरद पवार ने अपने दांव से भाजपा के मंसूबों पर भी पानी फेर दिया। इस तरह शिवसेना (ठाकरे गुट), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठबंधन और मजबूत हो गया है।
विपक्ष की चैतरफा घेराबंदी के चलते भाजपा नेतृत्व ने कभी एनडीए में रहे तमाम बिछड़े दलों से फिर संपर्क करना शुरू कर दिया है। जबकि शिवसेना, जनता दल (यू) और अकाली दल समेत कई दल भाजपा से दूर हो चुके हैं। हालात नाजुक देखकर भाजपा नेतृत्व ने टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, वाई एस जगन मोहन रेड्डी व एआईडीएमके नेताओं से संपर्क तेज कर दिए हैं। अकाली दल से भी बात चलाई जा रही है। यानी भाजपा नेतृत्व को अभी से 2024 के हालात बहुत मजबूत नहीं लग रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की अकेले 303 सीटें आ गई थीं। इसी के चलते उसने अपने सहयोगी दलों से दादागिरी शुरू की थी। इनकी मुश्किल है कि जब तक जनता दल (यू) के नीतीश कुमार पाले में नहीं लौटते, तब तक पूरी बात नहीं बनती।
दूसरी तरफ, नीतीश कुमार बदली भूमिका में टीम मोदी के कटु आलोचक बन गए हैं। वे विपक्षी एकता की भी धुरी बन रहे हैं। नीतीश भले पुराने समाजवादी हैं लेकिन सियासत में वे ‘पलटूराम’ माने जाते हैं। कई बार पलट चुके हैं। खबर यह भी है कि एक बार फिर भाजपा के लोग ‘पटाओ’ अभियान में लगे हैं। जदयू के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नीतीश जी फिर कभी भाजपा से हाथ नहीं मिलाने वाले। लेकिन आज की राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। राहुल गांधी का राजनीतिक कद लगातार बढ़ रहा है। उनका ताजा अमेरिकी दौरा काफी सफल रहा है। वहां उन्होंने मोदी जी की चमक को काफी ‘फीका’ कर दिया है। ऐसे में नवंबर-दिसंबर में लोकसभा चुनाव हो जाएं तो हैरान न हों। क्योंकि पांच राज्यों के अलग से चुनाव पीएम मोदी टीम को डरा रहे हैं।

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