दीर्घकालिक समाधान की जरूरत

  • मैतेई-कुकी बातचीत के बजाय बंदूक-बम से हमले कर दे रहे जवाब
  • राज्य के बजाय केंद्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दोनों पक्षों की टिकी निगाहें

ममता सिंह, पूर्वोत्तर मामलों की जानकार

मणिपुर में जातीय हिंसा के साथ ही सशस्त्र विद्रोही संगठनों और सेना के बीच जारी झड़पें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। केंद्र सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद पूर्ण शांति बहाल करने में सफल नहीं हो पा रही है। आने वाले दिनों में हिंसा यदि थम जाए तो भी जिस तरह से सदियों से साथ रहने वाले कुकी और मैतेई के बीच नफरत की दीवार हर दिन और चैड़ी होती जा रही है, ऐसी स्थिति में फिर से उस भरोसे को कायम करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि दोनों ही तरफ से अब तक कोई बातचीत नहीं हो रही, बल्कि बंदूक-बम से हमले हो रहे हैं।

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट में इन गुटों के लोगों ने याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं जिसकी सुनवाई भी हो ही रही हैं। यानी दोनों ही गुटों की हर संभव कोशिश है कि समस्याओं का हल राज्य के बजाय केंद्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट ही निकाले।
मणिपुर की हिंसा को उदीप्त करने वाले एक नहीं, बल्कि कई कारक बताए जा रहे हैं लेकिन उन सबका गहन अध्ययन करने के बाद कुछ बातें जेहन में आती है कि आखिर वजहें वाकई वहीं हैं जो सार्वजनिक हो रही हैं।

क्योंकि सरकार तो दावे कर रही है कि वहां संचार और परिवहन व्यवस्थाएं पूरी तरह ठप हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल यही है कि खबरों की ग्राउंड रिपोर्टिंग तो नहीं हो रही, लेकिन यदि सोशल मीडिया को देखें तो उसमें भी दोनों ही समुदाय के कुछ लोग एक-दूसरे के खिलाफ पोस्ट डाल रहे हैं। जिसे देख कर तो यही लगता है कि कहीं न कहीं चूक अवश्य हो रही है।

इस बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि सरकार के पास तकनीक का बड़ा नेटवर्क है। बावजूद इसके जिस तरह से खतरनाक वीडियो और तमाम टिप्पणियां जारी हो रही हैं, वह न केवल मणिपुर, बल्कि देश के अन्य राज्यों में रह रहे मणिपुर के लोगों को और अधिक उद्वेलित कर रही हैं, इस दिशा में भी केंद्र सरकार को संज्ञान लेने की जरूरत है।
दूसरा सवाल यह उठ रहा है कि हथियारों से लैस होकर प्रभावित जनपदों में लोग कैसे घूम रहे हैं? इसको भी परखने और समझने की जरूरत है। यह काम मैतेई और कुकी का नहीं है, यह जिम्मेदारी मणिपुर में तैनात उन तमाम सुरक्षा एजेंसियों की है जिनको पल-पल की रिपोर्ट संग्रह कर राज्य और केंद्र सरकार को भेजना होता है।

हालांकि, यह देश की सुरक्षा से जुड़ा प्रकरण है, इसलिए सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही हैं, इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। लेकिन भरोसेमंद सूत्रों ने दावा किया है कि मणिपुर के हालात सीरिया से भी बदतर हो सकते हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट पर यकीन करें तो उनकी रिपोर्ट केंद्र तक पहुंच गई हैं। अब केंद्र इस पर क्या कार्रवाई करता है, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन संवेदनशील मामला होने के कारण केंद्र भी अपनी गोपनीय रणनीति को अंजाम दे ही रहा होगा। सबसे अहम बात यह है कि दोनों ओर के सशस्त्र विद्रोही संगठनों के पास से चीन निर्मित अत्याधुनिक मशीन गनें मिली हैं। यहां बताते चलें कि चीन अपने पुराने हथियार म्यांमार भेजा है, जहां से न केवल मणिपुर, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर के विद्रोही संगठन हथियारों की खरीद-फरोख्त करते हैं। दर्जनों बार सैन्य कार्रवाई के दौरान चीन निर्मित हथियार पाए गए हैं जो वाकई में चिंता का विषय है।

तीसरा सवाल यह है कि गोलीबारी मणिपुर में रुक क्यों नहीं रही है? दोनों ओर के सशस्त्र विद्रोही संगठन हिंसा फैलाने से नहीं चूक रहे हैं और वे आम आदमी को भी निशाना बना रहे हैं। यह भी खबरें हैं कि कुछ जगहों पर आम नागरिक भी बंदूक लेकर घूम रहे हैं। अचरज की बात यह भी है कि भारी सुरक्षा के बीच कैसे हथियार लूटे गए? मौजूदा समय में सेना के कैंप में रहने वाले लोग भी सुरक्षित नहीं हैं।

वहां आम तो आम, अब खास आदमी को भी विद्रोही संगठन निशाना बनाने लगे हैं। उनके हौसले इतने बुलंद हैं कि वे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और स्थानीय नेताओं के आवास को भी निशाना बना चुके हैं। हमले की शुरुआत कुकी विधायक से हुई जो आज भी दिल्ली में जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं।
चौथा सवाल उठ रहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह बीते कई माह से ये संकेत दे रहे हैं कि घुसपैठियों की पहचान कर ली गई है और जरूरत पड़ी तो उन्हें डिपोर्ट भी किया जाएगा। वो यह भी कहते आए हैं कि लोगों को गलतफहमी हो गई है कि मणिपुर में मैतेई-कुकी में लड़ाई हो रही है, जबकि सरकार की प्राथमिकता घुसपैठ पर लगाम लगाना है। वहीं, पार्टी के ही अपने विधायक बागी बने हुए हैं और मिजोरम में डेरा डाले हुए हैं। दरअसल, लब्बोलुआब यह है कि जनजातीय विधायक अपना ही मुखिया बदलना चाहते हैं, जबकि उन्हें यह भी अच्छी तरह पता है कि सीएम यदि बदला जाएगा तो भी मुख्यमंत्री का पद उनके हिस्से में नहीं आएगा।

इधर, कुकी समुदाय भी खुलकर केंद्रीय गृह मंत्री की इस बात की आलोचना की है कि राज्यपाल की अगुआई में बनी पीस कमेटी में मुख्यमंत्री को शामिल किया जाना सही नहीं था।
वहीं, 5वां सवाल यह है कि एक तरफ मणिपुर ने घुसपैठियों के खिलाफ कड़ा अभियान छेड़ रखा है, वहीं पड़ोसी राज्य मिजोरम 2021 से ही उन्हें अपना सजातीय कह कर षरण दिए हुए है। साथ ही, मानवता की दुहाई देकर केंद्र से रार लिए बैठा है। हालांकि, मणिपुर के 5-6 विधायक भी करीब 12 हजार विस्थापित नगा-कुकी के साथ मिजोरम में ही जमे बैठे हैं।

यानी घुसपैठ को लेकर दोनों ही राज्यों में इतना बड़ा टकराव भविष्य में किसी किसी अनहोनी का संकेत तो नहीं? इस बात को बल तक मिला, जब मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह ने मिजोरम के सीएम जोरमथांगा को मैत्री संबंधों को बनाए रखने की अपील की थी। इसके पीछे एक वजह और भी है कि मिजोरम में 5 से 7 हजार के बीच मैतेई समुदाय के लोग सदियों से रहते आए हैं। ऐसे में यदि वहां भी हालात बिगड़ते हैं तो मुश्किल और अधिक बढ़ सकती है। यानी हिंसा का समाधान दूरदर्षी सोच के हिसाब से ही लिए जाने की जरूरत है।
बहरहाल, उक्त सवालों के जवाब भी खोजे जाने चाहिए, ताकि समस्या के समाधान की कोई तो राह निकले। इस जातीय हिंसा के बीच इंफाल से लेकर दिल्ली तक सियासत भी तेज है। अब तो देश के अन्य प्रांतों में बसे पूर्वोत्तर के लोग खासकर छात्र मणिपुर में शांति बहाली को लेकर धरना प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यहां यह बताना भी जरूरी है कि कुकी महिलाएं सर्वप्रथम केंद्रीय गृह मंत्री के आवास पर अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर चुकी हैं। केंद्र ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को मणिपुर में शांति प्रयासों के जरिए हर पक्ष से वार्ता कर समाधान निकालने को कहा है लेकिन अब तक मैतई और कुकी से जुड़े विद्रोही संगठनों की आवाज थमी नहीं है।

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