राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गुटबाजी के पीछे वर्तमान कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव कहीं न कहीं खड़े होते जरूर दिखाई पड़ते हैं। बीते विधान सभा चुनाव में उन्होंने यदि ईमानदार भूमिका निभाई होती तो आज कांग्रेस उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होती या फिर विपक्ष में भी होती तो कांग्रेस काफी सशक्त स्थिति में होती…
रणविजय सिंह
उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। हालात यह है कि गुटबाजी के ग्राफ में निरंतर इजाफा हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गुटबाजी के पीछे वर्तमान कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव कहीं न कहीं खड़े होते जरूर दिखाई पड़ते हैं।
बीते विधान सभा चुनाव में उन्होंने यदि ईमानदार भूमिका निभाई होती तो आज कांग्रेस उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होती या फिर विपक्ष में भी होती तो कांग्रेस काफी सशक्त स्थिति में होती।
बीते विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के हार के लिए यहां के वरिष्ठ नेता कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव को जिम्मेदार मान रहे हैं। विधान सभा चुनाव संपन्न होने के बाद हरीश रावत एवं प्रीतम सिंह जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने देवेंद्र यादव के सिर पर पार्टी की हार का न केवल ठीकरा फोड़ा, बल्कि कांग्रेस हाईकमान से भी प्रभारी देवेंद्र यादव की शिकायत की।
उसके बाद भी वे उत्तराखंड में बतौर प्रभारी जमे रहे। हालांकि, कांग्रेस हाईकमान को काफी पहले ही देवेंद्र यादव को प्रभारी के पद से हटा देना चाहिए था लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने हरीश रावत और प्रीतम सिंह के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण है कि देवेंद्र यादव बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद भी उत्तराखंड में जमे रहे। अब संभवतः वे प्रभारीे पद से हटाए जा सकते हैं।
जानकार बताते हैं कि कांग्रेस हाईकमान ने देवेंद्र यादव को लेकर बड़ा निर्णय ले लिया है।
उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो कांग्रेस हाईकमान को यह निर्णय काफी पहले ही ले लेना चाहिए था। देवेंद्र यादव के बारे में यह माना जाता है कि जबसे उन्हें प्रभारी का दायित्व हाईकमान ने सौंपा है, तब से उत्तराखंड कांग्रेस की हालत काफी कमजोर हुई है। खासकर, जबरदस्त गुटबाजी भी बढ़ी है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और प्रभारी देवेंद्र यादव के बीच शीतयुद्ध काफी लंबे समय से चल रहा है। देवेंद्र यादव के प्रभारी पद से हटाए जाने पर प्रीतम सिंह सहित उत्तराखंड कांग्रेस के दिग्गज नेता काफी खुश हैं। प्रीतम सिंह का साफ कहना है कि वे किसी की दया पर विधायक नहीं बने हैं। चकराता की जनता उन्हें 6 टर्म से विधायक बना रही है।
इसमें देवेंद्र यादव की कोई भूमिका नहीं रही है। हरीश रावत तो देवेंद्र यादव की शिकायत सोनिया और राहुल गांधी से भी कर चुके हैं। खैर, जो हो अब देर-सबेर देवेंद्र यादव की उत्तराखंड से विदाई तो तय है। लेकिन गुटबाजी का ठीकरा केवल देवेंद्र यादव पर फोड़ना भी ठीक नहीं है।
उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी राज्य गठन के बाद से ही है। तभी तो कांग्रेस लोकसभा और विधान सभा की कई सीटों का नुकसान भी गुटबाजी की वजह से उठा चुकी है। अब यदि कांग्रेस को फिर से खड़ा करना है तो यहां के स्थानीय नेताओं को गुटबाजी के खात्मे की दिशा में कार्य करने होंगे।
कांग्रेस के लिए यह अब बेहद जरूरी है। इतना तो तय है कि यहां की जनता सत्ता पक्ष के समर्थन में कदापि नहीं है। लेकिन क्या करे, कांग्रेस की दिशा और दशा इतनी बदतर हो गई है कि लोग चुनाव के समय भाजपा के पक्ष में आ जाते हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं पर खर्च करती है। भाजपा में लगातार कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं, ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल कम नहीं हो सके।
लेकिन कांग्रेस में ऐसा कुछ भी नहीं है। कांग्रेस में तो पिछले कई सालों से यही देखा जा रहा है कि राष्ट्रीय नेता के साथ किस गुट के नेता ने मंच साझा किया है। इस गुटबाजी ने ही तो कांग्रेस की लुटिया डुबोई है। इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को गुटबाजी खत्म करने की दिशा में कार्य करने होंगे।
गुटबाजी को खत्म करने के लिए यहां के नेताओं को ही प्रयास करने होंगे। इसके लिए हाईकमान की अनुमति की जरूरत नहीं है। आलाकमान तो चाहता ही है कि उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो। कांग्रेस के हर गुट के नेताओं को आपस में बैठकर आपसी द्वंद्व को खत्म करना चाहिए। तभी जाकर कार्यकर्ताओं में यह मैसेज जाएगा कि उनका शीर्ष नेतृत्व एक है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आज कांग्रेस के पास जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की कमी है। बीते विधानसभा चुनाव में तो बूथ पर बैठने तक के लिए कार्यकर्ता नही मिल रहे थे। जैसे-तैसे तो विधानसभा चुनाव निपटा। यदि गुटबाजी खत्म करने की दिशा में अभी से प्रयास नहीं किए गए तो वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने कार्यकताओं की कमी हो जाएगी। कांग्रेस का संगठन पहाड़ी जनपदों में काफी कमजोर है।
ऐसे में संगठन को मजबूत करने की दिशा में कांग्रेस के स्थानीय शीर्ष नेताओं को आगे आना होगा, तभी जाकर कांग्रेस भविष्य में उत्तराखंड में कुछ खास करने की स्थिति में हो सकती है। बहरहाल कांग्रेस के नेता गुटबाजी खत्म करने की दिशा में तुरंत कार्य करें। और यदि वाकई में कांग्रेस के दिग्गज ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो भविष्य में उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए विजय का द्वार फिर से खुल सकता है और कांग्रेस को चहुंओर कामयाबी मिल सकती है।
कांग्रेस का संगठन शुरू से ही काफी ताकतवर रहा है। अब कांग्रेस को पुनः इस दिशा में कार्य करने होंगे। इसके लिए सभी नेताओं को एक मंच के नीचे आना होगा।