- आर्टिकल 371-सी में मिली छूट के तहत मिले असीमित अधिकारों का गलत फायदा उठा रहे कुछ जनजातीय लोग
- खुफिया सूत्रों कि मानें तो हजारों-हजार हैक्टेयर वनक्षेत्र की सफाई कर धड़ल्ले से हो रही खेती
ममता सिंह, नार्थ ईस्ट एक्सपर्ट
कुकी से जुड़े तमाम विद्रोही संगठनों का साल 2016 से ही पूरा फोकस अफीम की खेती पर है। इसके लिए उन्होंने आर्टिकल 371-सी में मिली छूट के तहत जल, जंगल और जमीन को लेकर मिले असीमित अधिकारों का गलत फायदा उठाना शुरू कर दिया। खुफिया सूत्रों कि मानें तो हजारों-हजार हैक्टेयर वनक्षेत्र की सफाई कर धड़ल्ले से अफीम की खेती हो रही है। हालांकि, इससे जनजातीय किसानों की आय बढ़ी है और नशे के सौदागरों की तो पौबारह है। आज उनके पास पैसे हैं, जमीनें हैं, अपने लोग हैं, देश-विदेश के विद्रोही संगठनों और नशे के सौदागरों का साथ है। और अकूत धन-दौलत भी जिसकी बदौलत वो जरूरत पड़ी तो अत्याधुनिक हथियारों के बल पर पारंपरिक शत्रुता को निर्णायक स्थिति तक पहुंचाने में भी देर नहीं करेंगे।
वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि वनों का अंधाधुंध दोहन का ही नतीजा है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मणिपुर की आबोहवा में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं।
‘ड्रग लॉर्ड्स’ के रूप में उभर रहे!
विस्तार से समझें तो मणिपुर के समूचे क्षेत्रफल का तकरीबन एक तिहाई भाग पहाड़ी क्षेत्र है, जो जैव विविधता से संपन्न है। जहां, दुर्लभ वन्यजीव, बेशकीमती पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां, बांस और बेंत के जंगल से लेकर कमाई करने और पेट पालने के तमाम साधन व्याप्त हैं। लेकिन जानकारों के मुताबिक, बीते कुछ वर्षों में बाहरी देशों के नशे के सौदागरों और आतंकियों के प्रभाव और समर्थन की वजह से कुकी का एक तपका जंगलों का सफाया करके अफीम पोस्त की खेती कर रहे हैं। यही वजह है कि बहुत कम समय में ही इन्हें ‘ड्रग लॉर्ड्स’ या अफीम का देवता जैसे नामों से भी पुकारा जाने लगा है। हालांकि, इस जनजाति के लोगों में उक्त नाम को लेकर खासी नाराजगी है। वैसे सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो केवल कुकी ही नहीं, बल्कि अन्य जनजातियां भी अफीम की खेती से जुड़ी हैं।
मणिपुर की पीपुल एलायंस फार पीस एंड प्रोग्रेस ( पीएपीपीएम ), मणिपुर की मानें तो सिर्फ अफीम की तस्करी और खेती से हर महीने 2 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई कुकी का एक तपका कर रहा है। जो भारत के कई छोटे राज्यों के सालाना बजट से भी ज्यादा है। यानी अफीम के कारोबार में लिप्त कुकी समुदाय से जुड़े सशस्त्र विद्रोहियों के पास इतनी अकूत धन-संपत्ति है कि उसे अपने लोगों के लिए भारत सरकार या प्रदेश सरकार से किसी भी तरह की मदद की दरकार ही नहीं है।
2021 के बाद हालात बदले
म्यांमार और अफगानिस्तान के ड्रग्स के सबसे बड़े सप्लायरों के लिए साल 2021 के बाद का समय अच्छा नहीं चल रहा है। तालिबान जहां अफगान अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहा है, वहीं म्यांमार सैन्य शासन आंदोलन को कुचलने में लगा है। ऐसे में ड्रग्स माफियाओं के लिए दोनों देशों में कोई रास्ता नहीं बचा है। और हर निर्माता को एक बिचौलिया की भी जरूरत होती है। जैसे अफगानिस्तान के लिए बिचौलिया पाकिस्तान है लेकिन पाकिस्तान भी अब दाने-दाने को मोहताज है। ऐसे में मणिपुर भविष्य के गोल्डन ट्रायंगल की तर्ज पर उभर रहा है।
क्या है ‘गोल्डन ट्राईएंगल’
ये वो इलाका है, जहां थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं लगती हैं और कभी यही से म्यांमार दुनिया की 80 फीसद अफीम से बने हेरोइन का उत्पादन करता था। उत्पादन के बाद हेरोइन की तस्करी लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और भारत के रास्ते अमेरिका, ब्रिटेन और चीन में की जाती रही है। लेकिन अब म्यांमार में सिविल वार के बाद हालात बदल गए हैं। इसलिए विद्रोही संगठन और नशे के कारोबारियों की नजर मणिपुर की विशाल जनजातीय भूमि पर है जहां पहले ही इसकी खेती होती आई है।