धर्मपाल धनखड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए 400 सीट जीतने और पचास फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती थी। और उसके सहयोगी दलों ने 50 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पिछले चुनाव में मिली जीत के आंकड़ों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की धुंआधार प्रचार शैली व अमित शाह के चुनाव प्रबंधन कौशल को देखते हुए चार सौ सीट जीतने का लक्ष्य बड़ा छोटा लगता है। आइए! बीजेपी के टारगेट को एक बार हकीकत की जमीन पर परखते हैं। सबसे पहले जम्मू कश्मीर की बात करते हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करके जम्मू और कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से दो लोकसभा जम्मू और लद्दाख सीटों पर जीत हासिल की थी। विपक्षी दलों की एकता हुई तो आगामी चुनाव में भी जम्मू-कश्मीर में दो से ज्यादा सीटें भाजपा के खाते में जाने की उम्मीद ना के बराबर है। अब आते हैं, हिमाचल प्रदेश में। यहां की चार में से तीन लोकसभा सीट बीजेपी ने जीती थीं। उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी। अब कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में बीजेपी के लिए तीनों सीटे दोबारा जीतना संभव नहीं दिखता। यानी यहां भी 2024 में बीजेपी की सीटें घट सकती हैं। अब बात करते हैं पंजाब और हरियाणा की। पंजाब में बीजेपी का अपना कभी कोई आधार नहीं रहा। 2019 में अकाली दल के साथ गठबंधन के चलते 13 में से दो सीटें बीजेपी ने जीती थीं। अब अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के लिए पंजाब में कोई स्कोप नहीं बचा है। हरियाणा में दस की दस सीटों पर बीजेपी काबिज है। अब दस साल की एंटी इनकम्बेंसी के चलते इस लय को बरकरार रखना संभव नहीं दिखता। यानी यहां कम से कम पांच सीटों का नुक़सान अवश्यंभावी है। उत्तराखंड की पांच की पांच सीटें बीजेपी के पास हैं। यहां भी बढ़ने की कोई संभावना नहीं, कम होने की आशंका जरूर है। अब तक जिन पांच प्रदेशों की चर्चा हमने की है, उनमें लोकसभा की कुल 38 सीटें हैं। इनमें से 20 सीटों पर भाजपा काबिज है। इन राज्यों में सीटें घट सकती हैं, बढ़ने की कतई गुंजाइश नहीं हैं।
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। जहां से होकर दिल्ली की सत्ता का रास्ता जाता है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। 2019 में बीजेपी ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा और 62 सीटोंं पर जीत हासिल की। सपा और बसपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। बसपा को दस और सपा को पांच सीटें मिली थीं। एक तरह से देखा जाये तो यहां भी बीजेपी के लिए सेचूरेशन प्वाइंट आ चुका है। बेशक हाल में संपन्न हुए निकाय चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार से भी ज्यादा रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव में बाकी दल जीरो हो जायेंगे, इसकी संभावना नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और राष्ट्रीय लोकदल का प्रदर्शन अच्छा रहा था। उसको देखते हुए बीजेपी को बढ़त की संभावना कम है। बेशक 2024 की शुरूआत में राम मंदिर बनकर तैयार हो जायेगा। और भाजपा खूब माहौल बनायेगी। लेकिन कर्नाटक में बीजेपी की हार के बाद विपक्षी एकता संभावनाएं काफी बढ़ गयी हैं। ऐसे में बीजेपी की सीटें कम होना लाजिमी है। जातिगत जनगणना और सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे प्रभावी हो सकते हैं।
राजस्थान की 25 की 25 लोकसभा सीटों पर बीजेपी काबिज हैं। आगामी चुनाव में इसे बनाये रखना, बीजेपी के लिए कठिन होगा। इसी तरह बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में 17 बीजेपी और 16 जेडीयू ने जीती थीं। दोनों का गठबंधन था, जो अब टूट गया है। महागठबंधन में जेडीयू के शामिल होने के बाद राज्य के समीकरण बदल गये हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संयुक्त विपक्ष का प्रमुख चेहरा बनने, जातिगत जनगणना का मसला और ओल्ड पेंशन स्कीम के मुद्दे बीजेपी पर भारी पड़ेंगे। झारखंड की 14 में से 11 लोकसभा सीटें बीजेपी के पास हैं। यहां भी बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। 2019 में पश्चिमी बंगाल की कुल 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर बीजेपी जीतीं थी। विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी 77 सीटें जीत पायी थी। राज्य में तीसरी बार टीएमसी की सरकार है। लोकसभा चुनाव में यदि विपक्ष ने गठबंधन में चुनाव लड़ा, जिसकी प्रबल संभावना है, तो बीजेपी की सीटें बढ़ने का कोई चांस नहीं। घट जरूर सकती हैं।
असम की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 9 बीजेपी के पास है। पूरी ताकत लगाने पर एकाध सीट बीजेपी की बढ़ सकती है। नार्थ-ईस्ट की सेवन सिस्टर्स स्टेट में कुल 11 लोकसभा सीटें हैं। अरुणाचल और त्रिपुरा में दो-दो सीटें हैं। और ये चारों सीटें बीजेपी के पास है। मणिपुर की दो सीटों में से एक पर बीजेपी और दूसरी पर उसकी सहयोगी पार्टी काबिज है। इसी तरह मेघालय में दो सीटें हैं, जिनमें से एक महज तकनीकी रूप से ही कांग्रेस के पास है और दूसरी बीजेपी गठबंधन की पार्टनर एनपीएफ के पास है। मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में एक-एक सीट हैं और इन पर बीजेपी गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के सांसद हैं। इस तरह इन सातों राज्यों में बीजेपी को इससे ज्यादा बढ़ने को जमीन ही नहीं बची है। मणिपुर में आरक्षण को लेकर हुई हिंसा के बाद, बीजेपी के विधायक भी बगावत पर उतारू हैं। ये बीजेपी के लिए शुभ संकेत, तो बिल्कुल नहीं है। कहने का तात्पर्य ये हैं कि नोर्थ-ईस्ट में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों की सीटें कम हो सकती हैं, बढ़ नहीं सकती।
राजस्थान की 25 में से 24 और मध्यप्रदेश की 29 में से 28 सीट बीजेपी के पास हैं। जाहिर है इन दोनों राज्यों में बीजेपी को झटका लगा तो भरपाई कहां से होगी? ये बड़ा सवाल है। इसी तरह छत्तीसगढ़ की 11 में से नौ सीटों पर बीजेपी काबिज है। यानी यहां भी सेचुरेशन प्वाइंट पर पहुंच चुकी है। महाराष्ट्र में 2019 में भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और 48 में से 41 सीट गठबंधन ने जीती थीं। अब वहां राजनीतिक हालात बदल चुके हैं। शिवसेना शिंदे गुट और बीजेपी की सांझा सरकार है। दूसरी तरफ शिवसेना ठाकरे गुट, एनसीपी और कांग्रेस का महा विकास अघाड़ी संगठन विपक्ष में है। यदि ये गठबंधन बना रहा तो यहां भी बीजेपी की राह आसान नहीं होगी। गुजरात में 26 लोकसभा सीटें हैं और सारी की सारी सीटें बीजेपी के पास हैं। यहां भी चरम बिन्दु पर है। गौरतलब है कि बीजेपी बिहार और महाराष्ट्र में बदले हुए राजनीतिक हालात के चलते चिंतित हैं। ऐसे में उत्तर भारत में बीजेपी को जो नुकसान दिख रहा है, उसकी भरपाई दक्षिण से करना चाहती है। लेकिन कर्नाटक में हार से बीजेपी की दक्षिण भारत में अपना वर्चस्व बढ़ाने की मुहिम को जबरदस्त झटका लगा है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 में से 25 सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं। तेलंगाना में 17 में से चार सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं। कुल मिलाकर दक्षिण के पांच राज्यों में 129 सीटें हैं, जिनमें से 29 सीटें बीजेपी के पास हैं। इसके अतिरिक्त दो लोकसभा सीट गोवा की हैं। ऐसे में दक्षिणी राज्यों में बीजेपी की सेंध लगाने की रणनीति कारगर होती नहीं दिख रही। उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और केरल में भाजपा के प्रयास फलीभूत होंगे। इसकी संभावना ना के बराबर है।
ऐसे में जब उत्तर भारत और नोर्थ-ईस्ट में बीजेपी चरम पर है और कई राज्यों में आगामी लोकसभा चुनाव में उसे झटका लगने की आशंका है, तो इसका भरपाई कहां से और कैसे पूरी होगी। बीजेपी के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी का जादू भी उतार पर है। बेशक मोदी का जादू गुजरात में कायम है और यूपी में योगी और मोदी की धाक है। लेकिन इन दोनों राज्यों में भाजपा का ग्राफ पहले ही पीक पर है। राजनीतिक प्रेक्षकों का अनुमान है कि यदि विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़ा, तो बीजेपी दो सौ सीटों से नीचे रह सकती है। इसी अनुपात में एनडीए गठबंधन में शामिल पार्टियों की सीटें भी घटने का अनुमान है। ऐसे में महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी की मार झेल रही जनता कब तक राममंदिर और हिंदू-मुस्लिम जैसे मुद्दों पर बीजेपी का साथ देती रहेगी? इसलिए 2024 की डगर बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए आसान तो बिल्कुल नहीं होगी। बेशक लक्ष्य 400 सीटों का रखा है।