युवा और भारतीय संस्कृति बदलते आयाम

डा रवि शरण दीक्षित

भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में अपनी समृद्धि और चिंतन को जहां प्रसारित कर रही है और जहां पूरा विश्व उस संस्कृति धरोहर को और नेतृत्व को पहचान रहा हैl इतिहास गवाह है, कि प्राचीन समय में सामाजिक धार्मिक राजनीतिक और आर्थिक आधार पर विश्व गुरु का स्थान रहा है और उसी स्थान चिंतन में वसुधैव कुटुंबकम का भाव पैदा किया है किया था 20 वी शताब्दी के मध्य से भारत फिर उस स्थान को ग्रहण करने के लिए आगे बढ़ा और 21वीं शताब्दी में वह बहुत तेजी से प्राचीन स्थान को प्राप्त करने के लिए आगे चल रहा है पिछले कुछ समय में ही जनसंख्या आबादी की दृष्टि से भारत चीन को पछाड़कर जनसंख्या दृष्टि से विश्व में प्रथम हो गया है महत्वपूर्ण विषय यह है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा जो लगभग वर्ष 65% है उम्र में 15 से 64 के मध्य है वर्तमान परिवेश में इस युवा शक्ति क्षमता को निर्माण भी करना है और निर्माण के साथ ही साथ इस बात के लिए भी तैयार करना है, बढ़ती जान बढ़ती जनसंख्या और उसका आर्थिकी मे योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण होगा अगर युवा शक्ति उस सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़े क्योंकि वर्तमान में भारत पूरे विश्व के लिए एक बड़े व्यापार केंद्र के रूप में उभर रहा है इस सभी क्षमताओं को शक्ति को संयोजित करके अपने योगदान से विश्व को नेतृत्व प्रदान कर सकें और साथ ही विकास को राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक दिशा को लेकर आगे बढ़ पाए l शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे परिवर्तन इस दिशा में और आगे बढ़ने में आधार बनेंगे आवश्यकता इस युवा वर्ग की शिक्षा पद्धति को विकसित करना है जिससे कि उद्यम विकसित करने की सोच अपने आप को सबल करने की सोच राष्ट्र निर्माण की सोच विश्व गुरु बनाने में भारत का सहायक होगा राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में काम कर रही है और उसके परिणाम आने में भी अभी समय लगेगा आवश्यकता यह है कि युवा वर्ग अपनी क्षमताओं को पहचाने अपने कौशल को पहचाने और उसको सही तरीके से प्रबंधित कर आगे बढ़े शिक्षा पद्धति में आवश्यकता कुछ और गुणात्मक सुधारों की है जिसमें शिक्षकों को भी इस चिंतन के साथ तैयार करने की आवश्यकता है जो युवाओं को आगे खड़ा कर सके जो समाज में सहायक हो निर्माण में सहायक हो नेतृत्व करने की क्षमता रखते हो रोजगार की अपेक्षा न रखते हुए उद्यम विकसित करने की क्षमता रखते हो भारतीय सोच का स्वरूप आज भी पूरे विश्व में दिख रहा है जहां विश्व में कई बड़ी संस्थानों के बड़े अधिकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय मूल के हैं आवश्यकता इसको ग्रहण करने की है और युवाओं की शक्ति को संचित कर समग्र विकास हेतु आगे बढ़ाने की है जो अवश्य ही आगामी 25 वर्षों में भारत को विश्व गुरु के रूप में पुनः स्थापित करने में सहायक हो l।

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