नयी दिल्ली। विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने रवांडा में तुत्सी समुदाय के विरुद्ध नरसंहार की 29वीं वर्ष गांठ पर राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम कहा कि इतिहास में भारत अनेक नरसंहारों को झेला है, हमारा देश सदैव मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देता आया है।
तुत्सी समुदाय के खिलाफ 1994 के नरसंहार पर अंतरराष्ट्रीय चिंतन दिवस के अंतर्गत इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में श्रीमती लेखी ने कहा,‘‘रवांडा मे हुए भीषण नरसंहार से हम भारतीय परिचित रहे हैं।
1990 मे कश्मीर मे हुआ नरसंहार भी इसका एक उदाहरण है भारत सदैव विकास और मानवीय मूल्यों के प्रसार को बढ़ावा देता आया है। विदेश राज्य मंत्री ने कहा कि इतिहास मे भारत ने अनेकों नरसंहार को झेला है और देश में जजिया आदि के नाम पर अनेक आक्रांताओं ने संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा कि जुलाई 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने अपनी रवांडया की यात्रा में वहां सद्भाव व विकास पर बल दिया था।
इससे पहले वर्ष 1994 से 1996 के दौरान भारतीय सेना ने संयुक्त राष्ट्र की शांति सेवा के रूप में रवांडा में शांति एवं सद्भावना के लिए काम किया। श्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि गांधी मण्डेला फाउण्डेशन महात्मा गान्धी व नेल्सन मण्डेला के शांति पथ पर चलकर विश्व मे सद्भावना का प्रसार कर रहा है। यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्री, भारत में रवांडा राजदूत मुकंगिरा जैकलीन, गांधी मंडेला-फाउंडेशन के सेक्रेटरी जनरल नंदन झा तथा 50 से भी अधिक देशों के प्रतिनिधि मौजूद उपस्थित थे।
रवांडा के उच्चायोग, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं गांधी मण्डेला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार शाम आयोजित कार्यक्रम मे उपस्थित अतिथियों द्वारा क्विबुका गीत के साथ 29 मोमबत्तियां जलाकर तुत्सी समुदाय के लोगों को याद करते हुए एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि प्रदान की गई ।
वहां विद्यार्थियों द्वारा बनायी गई रवांडा नरसंहार की निर्ममता को व्यक्त करती हुई पेंटिग की प्रदर्शनी लगायी गयी, जिसे वीडियो के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। इस दौरान विद्यार्थियों द्वारा एमवाकिरे इंडियाबो ( फूल प्राप्त करे) नाटक का भावप्रद मंचन तथा डॉक्यूमेंट्री फिल्म: द जेनोसाइड अगेंस्ट तुत्सी का प्रसारण किया गया।
गांधी मंडेला फाउंडेशन के महासचिव नंदन झा ने कहा,‘‘रवांडा में 1994 में केवल एक सौ दिनों में आठ लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई, जिसके निशान आज भी हमें परेशान करते हैं।