राम को आत्मसात करने से ही मुक्ति

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
‘राम ‘ नाम मे अदभुत शक्ति है।’रा’ का बार बार उच्चारण करने से सामान्य से कम रक्तचाप बढ़ जाता है तो ‘म’ का उच्चारण करने से सामान्य से अधिक रक्तचाप कम हो जाता है,जबकि अगर ‘राम’ नाम का उच्चारण किया जाए तो रक्तचाप सामान्य रहता है।वही ‘राम’ शब्द में जो शांति है,जो सुख है ,जो सन्तुष्टि है।ऐसी किसी अन्य शब्द में नही हो सकती।राम सिर्फ दशरथ पुत्र राम ही नही, अपितु उस परमात्मा का भी नाम है, जिनकी आराधना स्वयं दशरथनन्दन भी करते है।यानि राम परमसत्ता है तो एक आदर्श का प्रतिरूप भी।

तभी तो ‘राम’ हर किसी के रोम रोम में बसा है।आज से ही नही,बल्कि युगों युगों से राम की महिमा गाई जाती है।सबुरी राममय हुई तो ‘राम’सबुरी के हो गए और सबुरी के झूठे बेर तक खा लिए। आज सबुरी जैसी आस्था कम ही देखने को मिलती है। हालांकि ‘राम’ का मंदिर बनने से असीम उत्साह हर उस व्यक्ति में है जिसके घट में ‘राम’ है। राम मंदिर मुद्दा कानून की चौखट से होते हुए कानून की ही बदौलत निर्माण तक आ गया है।मंदिर जितना बड़ा और भव्य बन रहा है, उतना ही राम के भक्तो में हर्ष की अनुभूति होगी।

लेकिन आवश्यक है कि हम राम को आत्मसात भी करे।राम मर्यादा पुरुषोत्तम है, तो हम भी राम का आदर्श स्थापित करे।राम के उच्च चरित्र को दर्शाती ‘रामायण’ हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक धरोहर है परंतु ‘रामायण’ को बार बार पढ़ने के बावजूद भी उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पा रही है। हम राम के नाम रूप पर तो बहस करते रहते हैं लेकिन राम को अपनाने की कभी कौशिश नही करते। रामायण को जीवन मूल्यों के रूप में समझने की आवश्यकता हैं। ताकि रामायण में लिखी हर बात आज के समय में प्रासंगिक सार्थक सिद्ध हो सके ।
रामायण महर्षि बाल्मीकी के द्वारा लिखित एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है । महर्षि बाल्मीकी ने आध्यात्मिक जागृति व ईश्वरीय अनुभूति के द्वारा दिव्य व महान ग्रन्थ रामायण को रचा था, जिससे वे स्वयं भी महान हो गए।वह व्यक्ति दूसरों का शुभचिंतक हो जाता है,जो स्वयं की अनुभूतियों को समाज कल्याण हेतु प्रयोग कर लोगों में एक नई सोच फैलाने का कार्य करता है। स्वयं का जीवन परिवर्तन होने पर महर्षि बाल्मीकी ने समाज में आध्यात्मिक जागृति लाने का अभियान चलाया ।

मोह माया में फँसें लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान रोचक लग सके ,इसके लिए उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को एक रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया। जिसमें मुख्य नायक व नायिका राम और सीता को रखा गया ।उसी प्रकार महाकवि तुलसी दास ने ‘राम चरित मानस’ के माध्यम से राम को आदर्श व मर्यादा का पर्याय सिद्ध किया। महर्षि बाल्मीकी ने त्रेता युग के बाद समाज में आध्यात्मिक क्रांति लाने हेतु राम व सीता का नाम व चरित्र समाज के सामने प्रस्तुत किया। तभी तो वे संसार के प्रेरक बन गए । हम रामायण के सभी पात्रों को उसी तरह से स्वीकार करते हैं जैसे रामायण को पढ़ने पर जान पडता है ।

परन्तु इस तरह से तो रामायण में दर्शाए गए पूर्णतः अहिंसक पात्र भी हिंसक नज़र आते हैं जैसे राम के द्वारा रावण का वध करना, भगवान की परिभाषा को खंडित करता है ,राम यदि भगवान हैं तो वह हिंसक हो ही नहीं सकते और राम यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर है तो उनकी सीता को एक दैत्य ( रावण ) कैसे उठाकर ले जा सकता है ? इसलिए कहीं न कहीं रामायण को किसी और परिपेक्ष में देखने की आवश्यकता है। रामायण का वास्तविक़ अर्थ जानने के लिए रामायण के विभिन्न पात्रों को निम्नलिखित रूप में समझ कर पढ़ें तो आपको उसमें लिखा एक एक आध्यात्मिक बिंदु समझ आ आएगा ।

राम वास्तव में परमात्मा ही है जो संगम युग में धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछड़ी हुई सीता ( सतयुगी आत्मा ) को रावण ( विकारों ) के चंगुल से छुड़ाने आते है ।सीता, हर वह आत्मा जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फँसी होने के कारण संताप झेल रही है । रावण ,पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही रावण है जिसमें फँसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है ।

पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं ।हनुमान , वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा ही हनुमान हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं ( सीता ) को धरा पर आए ईश्वर ( राम ) का संदेश देने के निमित बनती है, वह भी हनुमान की तरह ही है ।
वानर सेना ,साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्माएँ ईश्वर ( राम ) को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पूरानी दुनियाँ या रावण राज्य ( पतित सोच पर आधारित दुनिया ) को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की 33 करोड़ आत्माएँ ही वानर सेना है ।
लंका ,पुरानी पतित दुनियाँ जहाँ हर कार्य देहभान में किया जाता है ,वही रावण की नगरी लंका है ।आज हमें इसी सत्यता को आत्मसात कर विकर्मों को त्याग कर राम की तरह पवित्र बनना है और राममय होकर राम को जीवन मे अपनाना है।तभी इस राम नवमी के पर्व को सार्थक किया जा सकता है।

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