मथुरा कान्हा की नगरी मथुरा के वृन्दावन में कात्यायनी सिद्ध पीठ के शताब्दी समारोह के दौरान धार्मिक नगरी के कण कण में भक्ति की धारा बह रही है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार देवी भागवत पुराण में 108, कलिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51 , दुर्गा सप्तसती और तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है, हालांकि सामान्यत: 51 शक्तिपीठ ही माने जाते हैं। ब्रहृम वैवर्त पुराण, आद्या स्त्रोत एवं आर्यशास्त्र में वृन्दावन की कात्यायनी शक्ति पीठ का वर्णन मिलता है।
शक्ति पीठ के बारे में कात्यायनी ट्रस्ट के सचिव रवि दयालश्री ने बताया कि महादेव शिवजी की पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नही कर पाईं और यज्ञ के हवनकुण्ड में कूद कर भस्म हो गईं। सती के भस्म होने का पता चलने पर भगवान शिव कुपित हो गये और अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञस्थल को तहस नहस करवा दिया और राजा दक्ष का सिर भी धड़ से अलग करा दिया।
शिव सती के मृत देह को लेकर विलाप करते हुए पूरी पृथ्वी पर विचरने लगे। इस दौरान जहां जहां मां सती के केश या आभूषण गिरे वे शक्तिपीठ बन गए। जिस स्थान पर आज कात्यायनी पीठ है वहां पर भी माता के केश गिरे थे इसलिए कात्यायनी शक्ति पीठ की गणन 51ं शक्ति पीठों में होती है।
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को पाने की लालसा में ब्रज की गोपियों ने राधाबाग में कात्यायनी देवी का पूजन किया था। श्री दयालश्री ने बताया कि सिद्ध संत श्यामाचरण लाहिड़ी महराज के शिष्य योगी स्वामी केशवानन्द ब्रह्चारी महराज ने अपनी कठोर साधना तथा भगवती के आदेशानुसार वृृन्दावन के राधाबाग क्षेत्र में कात्यायनी मन्दिर को बनवाया था। मन्दिर एक फरवरी 1923 को बनकर तैयार हुआ था। इस मन्दिर का विगृह सिद्ध है और इसी कारण ब्रजवासियों का इस मन्दिर में आगमन अनवरत होता रहता है।
ट्रस्ट के पूर्व सचिव नरेश दयाल ने बताया इस मन्दिर की गणपति महराज की मूर्ति अंग्रेज डब्ल्यू आर यूल की पत्नी लंदन ले गई जहां कुछ अंग्रेजों ने प्रतिमा की खिल्ली उड़ाई। अंग्रेज अधिकारी की पत्नी द्वारा इसका प्रतिरोध न करने पर मूर्ति ने अपना असर दिखाया और उसकी बेटी को उसी रात न केवल तेज बुखार हुआ बल्कि उसके ठीक होने के लाले पड़े तो उसने मूर्ति को वापस भारत भेज दिया।
स्वामी केशवानन्द ब्रह्चारी महराज इसे कलकत्ता से वृन्दावन लाए तथा इसकी प्राण प्रतिष्ठा मन्दिर में कर दी। इस विगृह के भी चमत्कार आये दिन सुनने और देखने को उसी प्रकार मिलते हैं जिस प्रकार अष्टधातु की कात्यायनी देवी के देखने और सुनने को मिलते हैं।
पिछली 29 जनवरी को प्रारंभ हुए शताब्दी समारोह के अन्तर्गत वर्ष पर्यन्त धार्मिक कार्यों का आयोजन किया जाएगा। पहले चरण में नित्य सिद्धपीठ की विशेष पूजा के साथ साथ श्रीमदभागवत ज्ञान यज्ञ ब्रज संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान एवं राधारमण मन्दिर के सेवायत आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी द्वारा किया जा रहा है।