आपदा हो या भूकंप, इससे बचा नहीं जा सकता। लेकिन इससे बचाव और राहत कैसे मिले, इस दिशा में भी काम करना होगा। हां, यह भी जरूरी है कि आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए! क्योंकि इससे नुकसान होगा। आपदा प्रबंधन को सशक्त कैसे बनाया जाए। इस पर गौर करने की जरूरत है…
रणविजय सिंह
उत्तराखंड सरकार को अब कुंभकर्णी नींद से जागना ही होगा। साथ ही, वैज्ञानिक सुझावों पर विशेष रूप से पैनी नजर रखनी होगी। तभी जाकर जोशीमठ जैसी भयावह स्थिति की पुनरावृत्ति रोकने में कामयाबी मिल सकती है। यह बात सर्वविदित है कि आज जोशीमठ में जो कुछ भी तबाही दिख रही है उसे कम किया जा सकता था। लेकिन यदि उत्तराखंड सरकार पूर्व में दिए गए भू-वैज्ञानिकों के सुझावों पर अमल कर लेती। हां, यह भी सच है कि वर्ष 1970 में भी भू-वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी।
उत्तराखंड सरकार को अब कुंभकर्णी नींद से जागना ही होगा। साथ ही, वैज्ञानिक सुझावों पर विशेष रूप से पैनी नजर रखनी होगी। तभी जाकर जोशीमठ जैसी भयावह स्थिति की पुनरावृत्ति रोकने में कामयाबी मिल सकती है। यह बात सर्वविदित है कि आज जोशीमठ में जो कुछ भी तबाही दिख रही है उसे कम किया जा सकता था। लेकिन यदि उत्तराखंड सरकार पूर्व में दिए गए भू-वैज्ञानिकों के सुझावों पर अमल कर लेती। हां, यह भी सच है कि वर्ष 1970 में भी भू-वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी।
उस समय उत्तराखंड का जन्म नहीं हुआ था। यह पहाड़ी राज्य उत्तर प्रदेश के अधीन ही था लेकिन यूपी सरकार ने भी उस दौरान इस पर्वतीय क्षेत्र की अनदेखी की। उसके बाद उत्तराखंड राज्य भी बना। समय-समय पर जोशीमठ को लेकर भू-वैज्ञानिकों ने सरकार को अपनी रिपोर्ट भी सौंपी। लेकिन न ही भाजपा और न ही कांग्रेस की सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया। नतीजा यह हुआ कि जोशीमठ के हालात निरंतर बिगड़ते ही चले गए और आज 25 हजार की आबादी वाला यह शहर निरंतर भू-धंसाव की चपेट में आ गया है।
भू-वैज्ञानिकों का स्पष्ट मानना है कि चेतावनी के बाद यदि सरकार गंभीरता के साथ दरारों के ट्रीटमेंट में जुट जाती तो हालात आज की तरह बदतर नहीं होते। अतीत गवाह है कि ट्रीटमेंट के बाद उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत भी लगभग दुरुस्त हो गया है। ट्रीटमेंट तो लंबी प्रक्रिया है और इससे सुधार की गुंजाइश तो रहती ही है। लेकिन अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह जोशीमठ पर बेवजह सफाई देने के बजाय धरातल पर काम करे। महज जोशीमठ को लेकर लीपापोती करना वहां के लोगों की भावनाओं के साथ मजाक है।
भू-वैज्ञानिकों का स्पष्ट मानना है कि चेतावनी के बाद यदि सरकार गंभीरता के साथ दरारों के ट्रीटमेंट में जुट जाती तो हालात आज की तरह बदतर नहीं होते। अतीत गवाह है कि ट्रीटमेंट के बाद उत्तरकाशी में वरुणावत पर्वत भी लगभग दुरुस्त हो गया है। ट्रीटमेंट तो लंबी प्रक्रिया है और इससे सुधार की गुंजाइश तो रहती ही है। लेकिन अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह जोशीमठ पर बेवजह सफाई देने के बजाय धरातल पर काम करे। महज जोशीमठ को लेकर लीपापोती करना वहां के लोगों की भावनाओं के साथ मजाक है।
सरकार को जोशीमठ को लेकर विशेष रूप से चौकन्ना रहने की जरूरत है। जोशीमठ को लेकर कई वैज्ञानिक संस्थाएं काम कर रही हैं। ये संस्थाएं अपनी रिपोर्ट भी सरकार को देंगी। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके पहले भी आपदा प्रबंधन से जुड़ी कई शोध संस्थाओं की ओर से रिपोर्ट सरकार को भेजी गई थी। पर रिपोर्ट आज भी नौकरशाहों की टेबल पर धूल फांक रही है।
उत्तराखंड के अधिकतर नौकरशाह सत्ता के करीब पहुंचने के लिए जोड़-तोड़ की आजमाइश में लगे रहते हैं। ऐसे में वे महत्वपूर्ण चीजों को भूल जाते हैं। वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा इसका ज्वलंत प्रमाण है। दो दिनों तक नौकरशाही ने केदारनाथ की ओर ध्यान ही नहीं दिया, जबकि सुरक्षा से जुड़ी तमाम एजेंसियों ने सरकार को सतर्क कर दिया था। फिर भी सरकारी तंत्र खामोश ही रहा। वह दौर काफी महत्वपूर्ण था। यात्रा सीजन चरम पर था। बावजूद सरकार कुंभकर्णी नींद में थी।
उत्तराखंड के अधिकतर नौकरशाह सत्ता के करीब पहुंचने के लिए जोड़-तोड़ की आजमाइश में लगे रहते हैं। ऐसे में वे महत्वपूर्ण चीजों को भूल जाते हैं। वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा इसका ज्वलंत प्रमाण है। दो दिनों तक नौकरशाही ने केदारनाथ की ओर ध्यान ही नहीं दिया, जबकि सुरक्षा से जुड़ी तमाम एजेंसियों ने सरकार को सतर्क कर दिया था। फिर भी सरकारी तंत्र खामोश ही रहा। वह दौर काफी महत्वपूर्ण था। यात्रा सीजन चरम पर था। बावजूद सरकार कुंभकर्णी नींद में थी।
जिसका परिणाम जो कुछ हुआ उससे सभी वाकिफ हैं। केदारनाथ में आई तबाही के मंजर से सरकार ने अब तक सबक नहीं लिया है। यदि सरकार ने केदारनाथ आपदा से सीख ली होती तो तब कम से कम जोशीमठ में आई दरारों का ट्रीटमेंट शुरू कर दिया गया होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। ठीक है जोशीमठ में कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई है। लेकिन तबाही तो हुई है। इसको सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है। हमें लोगों की भावनाओं को समझना होगा। जिनके घर उजड़ गए हैं, उनकी स्थिति को समझना होगा।
सरकार कमजोर भवनों को उजाड़ रही हैं। ठीक है सरकार पुनर्वास की व्यवस्था करेगी। या यूं कहा जाए कि सरकार कर रही है। यह तो अच्छी बात है। सरकार को करना भी चाहिए। मुआवजा भी दे रही है। लेकिन भू-धंसाव ने वहां के बाशिंदों को उजाड़ ही दिया है। वर्षों पहले जोशीमठ के लोगों ने रहने के लिए मकान बनाया था, आज सब कुछ स्वाहा हो गया है।
सरकार कमजोर भवनों को उजाड़ रही हैं। ठीक है सरकार पुनर्वास की व्यवस्था करेगी। या यूं कहा जाए कि सरकार कर रही है। यह तो अच्छी बात है। सरकार को करना भी चाहिए। मुआवजा भी दे रही है। लेकिन भू-धंसाव ने वहां के बाशिंदों को उजाड़ ही दिया है। वर्षों पहले जोशीमठ के लोगों ने रहने के लिए मकान बनाया था, आज सब कुछ स्वाहा हो गया है।
अब धीरे-धीरे विस्थापित लोगों का पुुनर्वास किया जाएगा जिसमें समय भी लगेगा। हां, सरकार ने जोशीमठ के लोगों को यह जरूर दिलासा दिया है कि उन्हें हर तरह की सरकारी सुविधाएं दी जाएंगी। सरकार इस दिशा में प्रयास भी कर रही है। लेकिन सरकार को बचे हुए जोशीमठ की सुरक्षा की दिशा में कार्य करना होगा। इसके लिए हवाई किले बनाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। मौजूदा परिस्थितियों में ठोस व्यवस्था किस तरह से की जाए, हमें इस दिशा में सोचने की दरकार है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जोशीमठ को लेकर बेहतरीन काम करेगी जो भू-वैज्ञानिकों द्वारा सुझाया गया है। या फिर जो रिपोर्ट भू-वैज्ञानिक सरकार को देंगे। आपदा हो या भूकंप उत्तराखंड इससे बच नहीं सकता है। क्योंकि यह राज्य शुरू से ही संवेदनशील जोन में आता है। आपदा से बचाव और राहत कैसे मिले, इस दिशा पर भी काम करना होगा। हां, यह भी जरूरी है कि आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए! क्योंकि इससे नुकसान होगा। आपदा प्रबंधन को सशक्त कैसे बनाया जाए। इस पर गौर करने की जरूरत है।
फिलहाल, यह विभाग मुख्यमंत्री के पास है। लेकिन मुख्यमंत्री के पास पहले ही कई अहम काम होते हैं। क्योंकि पूरे राज्य की ही जिम्मेदारी उनके पास रहती है। ऐसे में इस विभाग को किसी और मंत्री के पास दिया जाना चाहिए। यही वक्त की जरूरत है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी भी किसी कर्मठ सचिव के हाथों में सौंपना चाहिए। जो यहां की समस्याओं से वाकिफ हो। साथ ही, आपदा प्रबंधन को मजबूत करने की दिशा में कार्य कर सके।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जोशीमठ को लेकर बेहतरीन काम करेगी जो भू-वैज्ञानिकों द्वारा सुझाया गया है। या फिर जो रिपोर्ट भू-वैज्ञानिक सरकार को देंगे। आपदा हो या भूकंप उत्तराखंड इससे बच नहीं सकता है। क्योंकि यह राज्य शुरू से ही संवेदनशील जोन में आता है। आपदा से बचाव और राहत कैसे मिले, इस दिशा पर भी काम करना होगा। हां, यह भी जरूरी है कि आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए! क्योंकि इससे नुकसान होगा। आपदा प्रबंधन को सशक्त कैसे बनाया जाए। इस पर गौर करने की जरूरत है।
फिलहाल, यह विभाग मुख्यमंत्री के पास है। लेकिन मुख्यमंत्री के पास पहले ही कई अहम काम होते हैं। क्योंकि पूरे राज्य की ही जिम्मेदारी उनके पास रहती है। ऐसे में इस विभाग को किसी और मंत्री के पास दिया जाना चाहिए। यही वक्त की जरूरत है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी भी किसी कर्मठ सचिव के हाथों में सौंपना चाहिए। जो यहां की समस्याओं से वाकिफ हो। साथ ही, आपदा प्रबंधन को मजबूत करने की दिशा में कार्य कर सके।